पिछली त्रासदी के बावजूद अस्पताल के हालात किस कदर बिगड़े हुए हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। जच्चा-बच्चा की जीवन रक्षा के लिए राजस्थान पत्रिका ने कई बार अस्पताल के बिगड़े हालात भी दिखाए। यूडीएच मंत्री खुद कई बार अस्पताल की अव्यवस्थाओं को लेकर सख्त निर्देश देते रहे हैं। फिर भी चिकित्सा मंत्री को यहां के बिगड़े हालात का फीडबैक नहीं होना, समझ से परे हैं।
यदि बिगड़े हाल चिकित्सा मंत्री को भी पता थे तो उन्होंने क्या संवेदनशीलता दिखाई, जनता को इसका जवाब भी देना चाहिए। सरकार यह भी जवाब दें कि अस्पताल में मासूमों के उपचार में काम आने वाले कई उपकरण खराब क्यों हैं। नवजात इकाई (एनआईसीयू-नीकू) में ऐसे विकट हालात हैं कि एक वार्मर पर दो-दो नवजात को रखना पड़ रहा है। अस्पताल में नवजात की जीवनरक्षा करने वाली सुविधाएं बढ़ाई क्यों नहीं जा रही। कोरोना महामारी के इस विकट काल में भी बच्चों के इस अस्पताल को सुधारने के प्रति सरकार गंभीरता क्यों नहीं दिखा रही।
अफसरों का बयान भी चौंकाने वाला है कि यह आंकड़े तो सामान्य मौतों के हैं। निश्चित रूप से ऐसे बयान देने वाले अफसर संवेदनशील नहीं हो सकते। क्योंकि मौत तो मौत ही है। यदि लापरवाही से एक भी मौत हो जाएं तो वह किसी जघन्य अपराध से कम नहीं है। वहीं लापरवाही को ढकने के लिए लापरवाह पूर्ण बयान देना भी अपराध ही है। सवाल यह भी है कि हर लापरवाही के बाद आखिर मौत के आंकड़े छिपाने के प्रयास क्यों हो जाते हैं।
इतना कुछ घटित हो जाने के बाद भी अब अस्पताल में और किसी मासूम की मौत लापरवाही से न हो, इसलिए सरकार को सबसे पहले तो अस्पताल की व्यवस्था अविलम्ब सुधारनी चाहिए। जो उपकरण खराब पड़े हैं, उनकी जगह नए उपकरण लगाए जाएं और जीवनरक्षक सभी उपकरणों की उपलब्धता तत्काल करानी चाहिए। उसके बाद सरकार की ओर से लापरवाही की जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।