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चिकित्सकों का कहना है कि इस रोग से ग्रस्त होने दवाइयां, फि जियोथेरेपी एवं कसरत बीमारी की शुरुआती दौर में काफी फायदेमंद हैं, परंतु ज्यादा घिसे जोड़ में इन उपायों से प्रत्यक्ष प्रभाव या आराम नहीं मिलता। इस अवस्था में जोड़ प्रत्यारोपण ही परिणामदायी इलाज है। हां, बेहतर जीवनशैली-खानपान तथा नियमित व्यायाम से इसे काफी अधिक उम्र तक इससे बचा जा सकता है। व्यवस्थित जीवन जीएं तो 70-75 की उम्र तक बचाव संभव है। कई संयमित जीवन वालों में 80-85 तक दिक्कत नहीं होती।
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यात्रीगण कृपया
ध्यान दें! रेल यात्रियों के लिए एक अच्छी व एक बुरी खबर, जानें इस खबर में कृत्रिम जोड़ों की उम्रकृत्रिम जोड़ प्रत्यारोपण भी आजीवन साथ नहीं देते हैं। एक दशक पहले आने वाले कृत्रिम जोड़ की उम्र 10-12 साल आंकी जाती थी। अब तकनीकी सुधारों के चलते इनकी आयु 20-25 वर्ष आंकी जा रही है। यानी कम उम्र में शिकार हुए तो लाखों का इलाज भी 20 से 25 साल में साथ छोड़ सकता है। लेकिन, सभी मानते हैं कि ईश्वर प्रदत्त जोड़ों का कोई मुकाबला नहीं है।
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इनसे रहें दूरजोड़ एवं प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद इकबाल ने बताया कि घुटनों में दर्द व्यक्ति में एक दम से नहीं होता। धीरे-धीरे इसकी शुरुआत होती है। मरीज को इसकी शुरुआत से ही संभल जाना चाहिए। इससे बचा जा सकता है। घुटनों में हल्का दर्द है तो हल्का व्यायाम करना चाहिए। साइकिलिंग व स्विमिंग सबसे बेस्ट है। वजन नहीं बढऩे दें। खान-पान में प्रोटीन चीजें लें। वसा व चिकनाई युक्त पदार्थों से दूर रहे। योग व ध्यान भी करें।
जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. विश्वास शर्मा का कहना है कि वर्तमान जीवनशैली में खानपान, बढ़ता वजन और कसरत की कमी से 45 से 50 आयु वर्ग में भी इस बीमारी से ग्रस्त हो रहे हंै। काफी केस आने लगे हैं।