राजस्थान किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष बोले- महापड़ाव के नाम पर हुई साजिश
कुचामन शहरPublished: Jan 28, 2017 11:15:00 am
जालोर. राजस्थान किसान संघर्ष समिति जालोर के जिलाध्यक्ष विक्रमसिंह पूनासा ने डाक बंगले में राज्य सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि सरकार किसान हित में यदि माही परियोजना की क्रियान्विति और बिजली की बढ़ी दरों को वापिस नहीं लेती है तो सीएम को जालोर सीमा में घुसने दिया जाएगा।
जालोर. राजस्थान किसान संघर्ष समिति जालोर के जिलाध्यक्ष विक्रमसिंह पूनासा ने डाक बंगले में राज्य सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि सरकार किसान हित में यदि माही परियोजना की क्रियान्विति और बिजली की बढ़ी दरों को वापिस नहीं लेती है तो सीएम को जालोर सीमा में घुसने दिया जाएगा।
उन्होंने 24 और 25 जनवरी के महापड़ाव का हवाला देते हुए कहा कि महापड़ाव में जनप्रनिधियों और प्रशासन ने किसानों के साथ छलावा किया है। उन्होंने कहा कि किसानों की दो मुख्य मांगे माही परियोजना की क्रियान्विति और बिजली की बढ़ी दरों को कम करना था, लेकिन दोनों ही मांगों पर गोलमाल जवाब दिए गए हैं। राजनीतिक उदासीनता पर उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि को जनता चुनकर भेजती है, लेकिन वे सत्ता में आने के बाद खुद को भगवान मान लेते हैं। यही कारण है कि जनता की समस्या ज्यों की त्यो रहती है। जिला सह संयोजक सुरेश कुमार व्यास ने कहा कि संघर्ष समिति का लक्ष्य जालोर को डार्क जोन सेे ग्रे जोन बनाना है। इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। महापड़ाव के दौरान मीडिया को वार्ता से दूर रखने पर जिलाध्यक्ष पूनासा ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को ऐसा लग रहा था कि मीडिया के वार्ता में मौजूद रहने से उनकी चोरी पकड़ में आ जाएगी। इसलिए मीडिया को वार्ता दूर रखा। लिखित समझौते को पूनासा ने ‘जीरोÓ बताते हुए कहा कि मंच पर लिखित समझौते को लहराने से मांगे पूरी नहीं होती। यदि समझौता सही था और सभी मांगों पर अमल हुआ होता तो सभी 22 मांगों और उन पर जवाब को मंच पर पढ़कर सुनाया जाता। ऐसा नहीं करके किसानों के साथ कुठाराघात किया गया है।
राजनीतिक साजिश थी यह
लिखित समझौते को राजनीतिक साजिश करार देते हुए जिलाध्यक्ष ने कहा कि समझौता 24 जनवरी की रात को हो चुका था, लेकिन राजनीतिक वाहवाही लूटने के लिए किसानों के साथ धोखा और गद्दारी की गई। यह सबकुछ इसलिए किया गया ताकि घोषणा नेताओं के मुंह से हो सके। पूनासा ने जिले की राजनीति पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा कि कमजोर राजनीति के कारण यहां की मांगों पर अमल नहीं होता। यहां एक भी ऐसा कद्दावर नेता तक नहीं है जो जिले की मांगों को सरकार तक पहुंचा सके तथा जरूरत के अनुसार बजट का आवंटन करवा सके।
सभी 21 मांगों पर जवाब पर असहमति
किसान महापड़ाव के दूसरे दिन 25 जनवरी को किसानों की 21 सूत्री मांगों पर प्रभारी मंत्री कमसा मेघवाल, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की ओर से दिए गए लिखित जवाब पर किसान संघर्ष समिति ने असहमति जताई। पदाधिकारियों का कहना था कि लिखित सहमति के नाम पर किसानों को मूर्ख बनाया गया। माही परियोजना पर सर्वे पर जिलाध्यक्ष पूनासा का कहना था कि जब पूर्व में दो बाद इस प्रोजेक्ट के लिए सर्वे हो चुका था तो फिर से सर्वे की घोषणा बिल्कुल तर्कसंगत नहीं थी। चूंकि पिछले साल ही 25 फरवरी को इसके लिए हाईलेवल कमेटी का गठन किया जा चुका है। जबकि बिजली की बढ़ी दरों पर जवाब में कहा गया कि किसान पुरानी रेट से बिल भर सकता है। समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि यह लिखित आश्वासन भी छलावा है।क्योंकि यदि बाद में बिजली की दरों पर सहमति नहीं बनती है तो इस बिल के अंतर का भुगतान बाद में भी किसान को करना होगा। यही नहीं रेल सुविधा विस्तार और अरंडी के समर्थन मूल्य निर्धारित करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार का विषय देने पर पदाधिकारियों का कहना था कि चूंकि सांसद केंद्र सरकार के प्रतिनिधि हैं। इसलिए यह जवाब भी तर्कसंगत नहीं है।