इनका कहना है
अक्टूबर माह में मूंग की खरीद शुरू हो गई थी। अब तक काफी मूंग की खरीद की जा चुकी है। खरीद केन्द्र पर उपज बेचने के लिए पुरानी व्यवस्था लागू की गई। इसके साथ ही 30 नवम्बर से मूंगफली की खरीद भी शुरू कर दी है। अभी तक खरीद में कोई परेशानी नहीं आई है।
– लालाराम चौधरी, मुख्य प्रबंधक, खरीद केन्द्र, कुचामनसिटी
अक्टूबर माह में मूंग की खरीद शुरू हो गई थी। अब तक काफी मूंग की खरीद की जा चुकी है। खरीद केन्द्र पर उपज बेचने के लिए पुरानी व्यवस्था लागू की गई। इसके साथ ही 30 नवम्बर से मूंगफली की खरीद भी शुरू कर दी है। अभी तक खरीद में कोई परेशानी नहीं आई है।
– लालाराम चौधरी, मुख्य प्रबंधक, खरीद केन्द्र, कुचामनसिटी
इधर, पानी की मात्रा कम होने से आधा रह गया प्याज का रकबा
कुचामनसिटी. मीठे प्याज के लिए प्रसिद्ध कुचामन क्षेत्र में पानी की कमी के कारण प्याज का रकबा सिमटता जा रही है। स्थिति यह है कि तीन साल पहले जहां प्याज की रोपाई पांच-छह हजार हैक्टेयर में होती थी, अब वह ढाई से तीन हजार हैक्टेयर तक सिमट कर रह गई है। जानकारों की माने तो प्याज की खेती में पानी की ज्यादा आवश्यकता रहती है। वहीं दूसरी ओर पानी की मात्रा कम होती जा रही है। जहां पानी की उपलब्धता है, वहां पानी की गुणवत्ता सही नहीं है। ऐसे में किसानों के हाथ में निराशा के अलावा कुछ नहीं है। कृषि विभाग के मुताबिक कुचामन क्षेत्र में खरीफ व रबी दोनों सीजनों में प्याज की खेती की जाती है। हालांकि रबी के प्याज का चलन धीरे-धीरे काफी कम हो गया है। क्षेत्र में खरीफ के प्याज की रोपाई ही ज्यादा होती है। वर्तमान में खरीफ के प्याज की रोपाई के कार्य की तैयारियां जोरों पर चल रही है। खरीफ के प्याज की दिसम्बर, जनवरी माह में रोपाई की जाती है। बाद में अप्रेल-मई तक यह फसल तैयार हो जाती है। इसी तरह रबी के प्याज की रोपाई जुलाई-अगस्त में होती है। यह प्याज नवम्बर, दिसम्बर तक तैयार हो जाता है। गौरतलब है कि कुछ वर्षों पहले मौलासर में प्याज का उत्पादन बहुत ज्यादा पैमाने पर होता था, लेकिन अब लगभग खत्म सा हो गया है। इसके पीछे जानकार पानी की कमी को ही मानते हैं। पानी की कमी के कारण रोपाई में ५० प्रतिशत की गिरावट आ गई है।
कुचामनसिटी. मीठे प्याज के लिए प्रसिद्ध कुचामन क्षेत्र में पानी की कमी के कारण प्याज का रकबा सिमटता जा रही है। स्थिति यह है कि तीन साल पहले जहां प्याज की रोपाई पांच-छह हजार हैक्टेयर में होती थी, अब वह ढाई से तीन हजार हैक्टेयर तक सिमट कर रह गई है। जानकारों की माने तो प्याज की खेती में पानी की ज्यादा आवश्यकता रहती है। वहीं दूसरी ओर पानी की मात्रा कम होती जा रही है। जहां पानी की उपलब्धता है, वहां पानी की गुणवत्ता सही नहीं है। ऐसे में किसानों के हाथ में निराशा के अलावा कुछ नहीं है। कृषि विभाग के मुताबिक कुचामन क्षेत्र में खरीफ व रबी दोनों सीजनों में प्याज की खेती की जाती है। हालांकि रबी के प्याज का चलन धीरे-धीरे काफी कम हो गया है। क्षेत्र में खरीफ के प्याज की रोपाई ही ज्यादा होती है। वर्तमान में खरीफ के प्याज की रोपाई के कार्य की तैयारियां जोरों पर चल रही है। खरीफ के प्याज की दिसम्बर, जनवरी माह में रोपाई की जाती है। बाद में अप्रेल-मई तक यह फसल तैयार हो जाती है। इसी तरह रबी के प्याज की रोपाई जुलाई-अगस्त में होती है। यह प्याज नवम्बर, दिसम्बर तक तैयार हो जाता है। गौरतलब है कि कुछ वर्षों पहले मौलासर में प्याज का उत्पादन बहुत ज्यादा पैमाने पर होता था, लेकिन अब लगभग खत्म सा हो गया है। इसके पीछे जानकार पानी की कमी को ही मानते हैं। पानी की कमी के कारण रोपाई में ५० प्रतिशत की गिरावट आ गई है।