सांभर झील में पक्षियों की मौत FLEMINGO BIRDS खारे पानी के लिए विश्व में विख्यात सांभर झील पिछले दिनों पचास हजार से अधिक पक्षियों की मौत हो गई। जिसमें फ्लेमिंगो के साथ-साथ करीब 12 प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों की मौत हो गई। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर सांभर झील में पहुंचने वाले हजारों पक्षी अकाल ही मौत का ग्रास बन गए। यहां पक्षियों की जिंदगी बचाने के लिए सरकारी इंतजाम फेल नजर आए। इस घटना के बावजूद राजस्थान सरकार व केन्द्र सरकार दोनों ही अब तक पक्षियों की सुरक्षा को लेकर विशेष इंतजाम नहीं कर पाई है।
विश्व के बड़े पक्षियों में शुमार है ग्रेटर फ्लेमिंगो ग्रेटर फ्लेमिंगो (राजहंस) पक्षियों की सभी प्रजातियों में बड़ा पक्षी माना जाता है। गुलाबी रंग वाले फ्लेमिंगो अफ्रीका और पूर्वी भारत में रहते हैं। एशिया में ग्रेटर फ्लेमिंगो कई स्थानों पर प्रवास करते है। बारिश के मौसम में यह फ्लेमिंगो खारे पानी की सबसे बड़ी सांभर झील में हजारों की संख्या में प्रवास करते है। इसी झील में इन पक्षियों का प्रजननकाल होता है। प्रजनन के बाद जब बच्चे उडऩे के तैयार होते है और सर्द मौसम के अंतिम दिनों में यह पक्षी पलायन कर जाते है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण उनका प्रवासन पैटर्न कम और कम होता जा रहा है।
ऐसा होता है हमारा शुभंकर फ्लेमिंगो-
नर ग्रेट फ्लेमिंगो की लंबाई 6 1 इंच तक हो सकती है जो कई मनुष्यों से अधिक है। वे केवल लगभग 8 पाउंड वजन के होते हैं जो एक पक्षी के लिए इतनी लंबाई होने के बावजूद बेहद हल्का है । उनके पंख गहरे गुलाबी रंग से चमकीले लाल रंग के होते हैं। यह पक्षी उन स्थानों का आनंद लेते हैं, जहां पानी में भरपूर नमक पाया जाता है। फ्लेमिंगो की यह प्रजाति अच्छी तरह तैरने में सक्षम है। उनकी गर्दन की वक्र बहुत लचीली होती है। इनकी काली चोंच की बनावट बहुत ही अनोखी है। फ्लेमिंगो मुख्य रुप से मछलियों का लार्वा और पानी पर जमा होने वाला शैवाल खाते है।
पहचान के लिए नहीं हुए प्रयास सरकार ने अलग-अलग जिलों के शुभंकर तो घोषित करवा दिए लेकिन इसके बाद इनकी पहचान के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए। पक्षीप्रेमियों का कहना है कि जिले में फ्लेमिंगो पक्षी की पहचान व प्रचार के लिए जिला प्रशासन को प्रयास करने चाहिए। इसके लिए सांभर झील क्षेत्र में बर्ड फेयर का आयोजन किया जाना चाहिए और बड्र्स के बारे में बच्चों व नागरिकों को अवगत कराया जाना चाहिए। आम जन जब पक्षियों से जुड़ेंगे तो लोगों में भी पक्षियों के प्रति लगाव होगा और सामाजिक संगठन भी पक्षियों की सुरक्षा के लिए आगे आऐंगे।
कुरजां का नागौर प्रवास नागौर जिला यूं तो सूखे जिलों की श्रेणी में आता है लेकिन इसके बावजूद यहां पर पक्षियों का प्रवास होता है। जिले में प्रवासी पक्षी डेमोइसेल क्रेन को स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हैं। कुरजां यूं तो अधिकतर बीकानेर संभाग और जोधपुर संभाग के गांवों में तालाबों पर पानी पीने के लिए आती हैं। लेकिन नागौर जिले के नागौर और मूण्डवा क्षेत्र में भी यह पक्षी प्रवास पर आता है। ये पक्षी साइबेरिया से ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों से होते हुए भारत में आते हैं। छापर का तालाब और घना पक्षी विहार भरतपुर में इनका सर्वाधिक प्रवास होता है।
कुचामन में तोते मशहूर जिले में शहरी क्षेत्र में निवास करने वाले पक्षियों में कुचामन शहर में सर्वाधिक पक्षी है। यहां पर पक्षी प्रेमियों का मानना है कुचामन शहरी क्षेत्र इन पक्षियों के सबसे सुरक्षित स्थान है। यह पक्षी सुबह सूर्योदय के साथ ही गांवों की ओर पलायन कर जाते है और शाम ढलने के साथ ही वापस कुचामन आ जाते है। यह पक्षी पेड़ों के साथ-साथ बस स्टेण्ड के आस-पास क्षेत्र में बिजली के तारों पर ठहरते है। इसका मुख्य कारण यह है कि कुचामन के आस-पास अच्छी खेती है जिसमें सब्जियों की खेती भी शामिल है। तोते मुख्यतया सब्जियों को अपना भोजन बनाते है।
इनका कहना-
सांभर झील क्षेत्र व डीडवाना क्षेत्र में जहां फ्लेमिंगो का प्रवास होता है उसे भी सरकार सुरक्षित नहीं रख पा रही है। सरकार के साथ-साथ सामाजिक संगठनों को भी इन पक्षियों के लिए आगे आना चाहिए। जिससे युवाओं व बच्चों में भी पक्षियों के लिए प्रेम बढ सके।
डॉ. अरुण व्यास
प्रोफेसर, बांगड कॉलेज डीडवाना