इस तरह होता है आंकलन
कृषि अधिकारी (फसल) शिशुपाल कांसोटिया के अनुसार फसल की लागत का आंकलन विभिन्न प्रकार से किया जाता है। सबसे पहले जमीन खुद की होनी चाहिए। यदि जमीन बंटाईपर ली हुई है तो उसका मूल्य अलग से चुकाना पड़ता है, जिससे लागत और बढ़ जाएगी। इसके अलावा पानी, बीज, देसी खाद, उर्वरक, पौध संरक्षण रसायन, खेत की हंकाई, बुआई, निराई-गुड़ाई, कटाई, गहाई आदि आदि का खर्च किसान को उठाना पड़ता है। वर्तमान में फसल तैयार करने के दौरान मजदूरों की जरूरत पड़ती है। एक मजदूर ही 300-350 रुपए मजदूरी लेता है। जबकि फसल को तैयार करने में ज्यादा व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है।
कृषि अधिकारी (फसल) शिशुपाल कांसोटिया के अनुसार फसल की लागत का आंकलन विभिन्न प्रकार से किया जाता है। सबसे पहले जमीन खुद की होनी चाहिए। यदि जमीन बंटाईपर ली हुई है तो उसका मूल्य अलग से चुकाना पड़ता है, जिससे लागत और बढ़ जाएगी। इसके अलावा पानी, बीज, देसी खाद, उर्वरक, पौध संरक्षण रसायन, खेत की हंकाई, बुआई, निराई-गुड़ाई, कटाई, गहाई आदि आदि का खर्च किसान को उठाना पड़ता है। वर्तमान में फसल तैयार करने के दौरान मजदूरों की जरूरत पड़ती है। एक मजदूर ही 300-350 रुपए मजदूरी लेता है। जबकि फसल को तैयार करने में ज्यादा व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है।
इतना खर्च तो आसानी से
किसान सबसे पहले बीज को बोने से पहले खेत को तैयार करते हैं। इसके लिए उनको हंकाई की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही जमीन का लेवलिंग कार्य भी करना पड़ता है। इसके बाद बुआई, बीज आदि पर खर्चा करना होता है। वर्तमान में एक बीघा की हंकाई कराने पर करीब 350 रुपए का खर्च आता है। इसी तरह लेवलिंग के करीब 400 रुपए प्रति बीघा तथा बुआई के 250 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से किसान को खर्चा करना पड़ता है। इसके अलावा परिवार के तीन-चार सदस्यों का श्रम भी फसल को तैयार करने में लगता है। अन्य खर्च भी समय-समय पर उठाने पड़ते हैं।
किसान सबसे पहले बीज को बोने से पहले खेत को तैयार करते हैं। इसके लिए उनको हंकाई की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही जमीन का लेवलिंग कार्य भी करना पड़ता है। इसके बाद बुआई, बीज आदि पर खर्चा करना होता है। वर्तमान में एक बीघा की हंकाई कराने पर करीब 350 रुपए का खर्च आता है। इसी तरह लेवलिंग के करीब 400 रुपए प्रति बीघा तथा बुआई के 250 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से किसान को खर्चा करना पड़ता है। इसके अलावा परिवार के तीन-चार सदस्यों का श्रम भी फसल को तैयार करने में लगता है। अन्य खर्च भी समय-समय पर उठाने पड़ते हैं।
प्याज ने किया निराश
पिछले वर्ष प्याज के सीजन में किसानों को प्याज का उचित मूल्य नहीं मिल पाया। किसनों को सिर्फ 5.7 रुपए किलो के भाव में ही संतोष करना पड़ा, जिससे फसल का खर्चा भी नहीं निकल पाया। हालांकि वर्तमान में जरूर प्याज के अच्छे भाव है, लेकिन ये भाव सीजन के समय तक रहेंगे ये तो समय ही बताएगा। सहायक कृषि अधिकारी श्रवण कुमार ने बताया कि प्याज की तैयारी में सर्वप्रथम पौध को तैयार किया जाता है। इसके बाद खेत को तैयार कर हाथों से पौध की रोपाई की जाती है। इसके इसके बाद निराई-गुड़ाई, फसल को बाजार तक ले जाने में काफी खर्च का सामना करना पड़ता है। प्याज की फसल को हर दूसरे दिन पानी जरूरत होती है।
पिछले वर्ष प्याज के सीजन में किसानों को प्याज का उचित मूल्य नहीं मिल पाया। किसनों को सिर्फ 5.7 रुपए किलो के भाव में ही संतोष करना पड़ा, जिससे फसल का खर्चा भी नहीं निकल पाया। हालांकि वर्तमान में जरूर प्याज के अच्छे भाव है, लेकिन ये भाव सीजन के समय तक रहेंगे ये तो समय ही बताएगा। सहायक कृषि अधिकारी श्रवण कुमार ने बताया कि प्याज की तैयारी में सर्वप्रथम पौध को तैयार किया जाता है। इसके बाद खेत को तैयार कर हाथों से पौध की रोपाई की जाती है। इसके इसके बाद निराई-गुड़ाई, फसल को बाजार तक ले जाने में काफी खर्च का सामना करना पड़ता है। प्याज की फसल को हर दूसरे दिन पानी जरूरत होती है।
कुछ फसलों में किसानों का खर्च भी नहीं निकल पाता। इसका प्रमुख कारण उचित भाव नहीं मिलना है। फसल को तैयार करने की लागत बढ़ती जा रही है। जबकि इसकी तुलना में भाव नहीं मिल पा रहे हैं। इसके अलावा कुचामन ब्लॉक में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में कुछ क्षेत्रों में तो बुआई भी नहीं हो पाती।
– भंवरलाल बाजिया, सहायक निदेशक (कृषि विस्तार), कुचामनसिटी
– भंवरलाल बाजिया, सहायक निदेशक (कृषि विस्तार), कुचामनसिटी