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बढ़ रही लागत, घट रही कमाई

locationकुचामन शहरPublished: Jan 23, 2018 10:44:39 am

Submitted by:

Kamlesh Kumar Meena

घाटे का सौदा साबित हो रही खेती, सिंचित क्षेत्र होने के बावजूद स्थिति खराब

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कमलेश मीना
कुचामनसिटी. क्षेत्र में खेती घाटे का सौदा भी साबित हो रही है। एक ओर फसल को तैयार करने में लागत बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलने से किसानों की कमाई निरंतर घटती जा रही है। ये स्थिति सिंचित क्षेत्र होने के बावजूद है। पत्रिका ने मामले की पड़ताल की तो चौंकाने वाली स्थिति सामने आई। किसान फसल की लागत भी नहीं निकाल पा रहे। जितनी आमदनी फसल से होती है, उतनी तो उस पर ही खर्च हो रही है। कुचामन ब्लॉक में रबी की फसलों में जहां किसान गेहूं, चना, जौ व सरसों में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। वहीं खरीफ की फसलों में मूंग, मोठ, बाजरा, मूंगफली प्रमुख फसलें होती हंै। लेकिन गत वर्षों में फसल को तैयार करने में निरंतर लागत बढ़ती गई। जिन किसानों ने पिछले वर्ष प्याज की बुआई की, उनका खर्चा तक नहीं निकल पाया। इसके अलावा पानी की कमी के कारण कुछ क्षेत्रों में किसान सिंचित क्षेत्र में भी एक ही फसल ले पा रहे हैं। राजपुरा, चारणपुरा, मंगलपुरा, करखेड़ी, सबलपुरा, प्रेमपुरा, शिव सहित कई ग्राम पंचायतों में पानी की विकट समस्या है। चितावा क्षेत्र में जरूर थोड़ी पानी की स्थिति ठीक है। कुकनवाली, लालास, टोडास, घाटवा सहित कुछ पंचायतों में जलस्तर में थोड़ा सुधार है। कुचामन ब्लॉक में रबी की फसलों में इस वर्ष सबसे ज्यादा गेहूं की बुआई 10 हजार 943 हैक्टेयर में हुई। इसके बाद चना 9 हजार 440, जौ 3528 तथा सरसों 3489 हैक्टेयर क्षेत्र में बोई गई। गौरतलब है कि कुचामन क्षेत्र में गेहूं की सिंचाई पांच-छह बार करनी पड़ती है, तब जाकर फसल तैयार होती है। गेहूं की एक बीघा फसल तैयार करने में चार से पांच हजार रुपए का खर्चा आ जाता है।
इस तरह होता है आंकलन
कृषि अधिकारी (फसल) शिशुपाल कांसोटिया के अनुसार फसल की लागत का आंकलन विभिन्न प्रकार से किया जाता है। सबसे पहले जमीन खुद की होनी चाहिए। यदि जमीन बंटाईपर ली हुई है तो उसका मूल्य अलग से चुकाना पड़ता है, जिससे लागत और बढ़ जाएगी। इसके अलावा पानी, बीज, देसी खाद, उर्वरक, पौध संरक्षण रसायन, खेत की हंकाई, बुआई, निराई-गुड़ाई, कटाई, गहाई आदि आदि का खर्च किसान को उठाना पड़ता है। वर्तमान में फसल तैयार करने के दौरान मजदूरों की जरूरत पड़ती है। एक मजदूर ही 300-350 रुपए मजदूरी लेता है। जबकि फसल को तैयार करने में ज्यादा व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है।
इतना खर्च तो आसानी से
किसान सबसे पहले बीज को बोने से पहले खेत को तैयार करते हैं। इसके लिए उनको हंकाई की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही जमीन का लेवलिंग कार्य भी करना पड़ता है। इसके बाद बुआई, बीज आदि पर खर्चा करना होता है। वर्तमान में एक बीघा की हंकाई कराने पर करीब 350 रुपए का खर्च आता है। इसी तरह लेवलिंग के करीब 400 रुपए प्रति बीघा तथा बुआई के 250 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से किसान को खर्चा करना पड़ता है। इसके अलावा परिवार के तीन-चार सदस्यों का श्रम भी फसल को तैयार करने में लगता है। अन्य खर्च भी समय-समय पर उठाने पड़ते हैं।
प्याज ने किया निराश
पिछले वर्ष प्याज के सीजन में किसानों को प्याज का उचित मूल्य नहीं मिल पाया। किसनों को सिर्फ 5.7 रुपए किलो के भाव में ही संतोष करना पड़ा, जिससे फसल का खर्चा भी नहीं निकल पाया। हालांकि वर्तमान में जरूर प्याज के अच्छे भाव है, लेकिन ये भाव सीजन के समय तक रहेंगे ये तो समय ही बताएगा। सहायक कृषि अधिकारी श्रवण कुमार ने बताया कि प्याज की तैयारी में सर्वप्रथम पौध को तैयार किया जाता है। इसके बाद खेत को तैयार कर हाथों से पौध की रोपाई की जाती है। इसके इसके बाद निराई-गुड़ाई, फसल को बाजार तक ले जाने में काफी खर्च का सामना करना पड़ता है। प्याज की फसल को हर दूसरे दिन पानी जरूरत होती है।
कुछ फसलों में किसानों का खर्च भी नहीं निकल पाता। इसका प्रमुख कारण उचित भाव नहीं मिलना है। फसल को तैयार करने की लागत बढ़ती जा रही है। जबकि इसकी तुलना में भाव नहीं मिल पा रहे हैं। इसके अलावा कुचामन ब्लॉक में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में कुछ क्षेत्रों में तो बुआई भी नहीं हो पाती।
– भंवरलाल बाजिया, सहायक निदेशक (कृषि विस्तार), कुचामनसिटी

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