इसलिए रुझान ज्यादा
कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार ईसबगोल के पौधे में बीमारी कम लगती है। वहीं पानी भी कम चाहिए। भाव अच्छे मिलने के साथ फसल को तैयार करने में मेहनत भी कम होती है। आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इसकी विशेष मांग होती है। इसकी पैदावार एक बीघा में दो क्विंटल तक होती है। फसल चार-पांच माह में तैयार हो जाती है।
कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार ईसबगोल के पौधे में बीमारी कम लगती है। वहीं पानी भी कम चाहिए। भाव अच्छे मिलने के साथ फसल को तैयार करने में मेहनत भी कम होती है। आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इसकी विशेष मांग होती है। इसकी पैदावार एक बीघा में दो क्विंटल तक होती है। फसल चार-पांच माह में तैयार हो जाती है।
2005 से हुई शुरुआत
कुचामन क्षेत्र में ईसबगोल की खेती की शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी। इससे पहले इस फसल को कोई जानता तक नहीं था। क्षेत्र में पानी की कमी को देखते हुए किसानों ने इस फसल की तरफ रुख किया। पिछले पांच-छह सालों में ईसबगोल के रकबे में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई।
कुचामन क्षेत्र में ईसबगोल की खेती की शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी। इससे पहले इस फसल को कोई जानता तक नहीं था। क्षेत्र में पानी की कमी को देखते हुए किसानों ने इस फसल की तरफ रुख किया। पिछले पांच-छह सालों में ईसबगोल के रकबे में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई।
मिलता है अच्छा मुनाफा
ईसबगोल की फसल की पैदावार प्रति बीघा दो क्विंटल तक होती है। वर्तमान में ईसबगोल के भाव 9000-10000 प्रति क्विंटल है। ऐसे में एक बीघा में 15 से 20 हजार रुपए का लाभ किसान प्राप्त कर लेते हैं। हालांकि कुछ सावधानी भी बरतनी पड़ती है। क्योंकि पकाव के समय वर्षा हो जाए तो बीज झड़ जाता है तथा छिलका फूल जाता है। इससे बीज की गुणवत्ता व पैदावार दोनों पर असर पड़ता है।
ईसबगोल की फसल की पैदावार प्रति बीघा दो क्विंटल तक होती है। वर्तमान में ईसबगोल के भाव 9000-10000 प्रति क्विंटल है। ऐसे में एक बीघा में 15 से 20 हजार रुपए का लाभ किसान प्राप्त कर लेते हैं। हालांकि कुछ सावधानी भी बरतनी पड़ती है। क्योंकि पकाव के समय वर्षा हो जाए तो बीज झड़ जाता है तथा छिलका फूल जाता है। इससे बीज की गुणवत्ता व पैदावार दोनों पर असर पड़ता है।
भाव अच्छे मिलने व पानी की कमी के चलते कुचामन क्षेत्र की तहसीलों में किसानों का ईसबगोल की खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है। हालांकि मौलासर व निमोद क्षेत्र में अब फसल नहीं हो रही है। इस फसल में बीमारी भी कम लगती है।
– भंवरलाल बाजिया, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, कुचामनसिटी
– भंवरलाल बाजिया, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, कुचामनसिटी