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वेटलैण्ड घोषित एक्शन प्लान अधूरा

locationकुचामन शहरPublished: Feb 02, 2020 12:03:19 pm

Submitted by:

Hemant Joshi

हेमन्त जोशी. कुचामनसिटी. Wetland declared action plan incomplete
प्रदेश की सबसे बड़ी वेटलैण्ड भूमि है सांभर झील। 24 हजार हैक्टेयर भूमि वाली इस झील को 1990 में रामसर साइट वेटलैण्ड घोषित किया गया था। इसके अलावा प्रदेश में दूसरी वेटलैण्ड साइट कैलादेव राष्ट्रीय उद्यान है। नियमानुसार जहां 20 हजार से अधिक विदेशी व देशी पक्षियों का प्रवास होता है वहां अंतराष्ट्रीय महत्व दिया जाता है। लेकिन हाल ही में सांभर झील में हुई पक्षी त्रासदी ने सरकार के सभी दावों व वेटलैण्ड संरक्षण के दावों की पोल खोल दी।

कुचामनसिटी. प्रदेश की सबसे बड़ी वेटलैण्ड भूमि सांभर झील।

कुचामनसिटी. प्रदेश की सबसे बड़ी वेटलैण्ड भूमि सांभर झील।

अतंराष्ट्रीय स्तर पर राज्य व केन्द्र सरकार की खूब किरकिरी हुई, इसके बावजूद सरकार सांभर झील के संरक्षण को लेकर अपना एक्शन प्लान तैयार करने में नाकाम है। झील संरक्षण का जिम्मा उठाने वाला सांभर साल्ट लिमिटेड खुद झील के डूब क्षेत्र में नमक के क्यार बनाकर टेण्डर जारी करने की तैयारी में है।
क्या है वेटलैण्ड- Wetland declared action plan incomplete
हमारी राष्ट्रीय वेटलैंड प्रबंधन कमेटी का गठन सन 198 7 में किया गया था। इस कमेटी की ओर से वेटलैण्ड संरक्षण के लिए विभिन्न कार्ययोजनाएं तैयार की गई थी। वेटलैंड में प्राणियों की प्रजातियों की सुरक्षा व जैव विविधता के संरक्षण का जिम्मा तैयार किया गया। वेटलैंड जो किसी प्रजाति विशेष के जल पक्षियों की आबादी को निरंतर संपोषित करता हो जैसे कई मुद्दों पर इस कमेटी की निगरानी व कार्य किया जाता है। प्रत्येक वेटलैंड का अपना पारिस्थितिक तंत्र होता है। जैव विविधता होती है। वानस्पतिक विविधता होती है। ये वेटलैंड जलजीवों, पक्षियों व अन्य प्राणियों के आवास होते हैं।वेटलैंड के जल संरक्षण, जल प्रबंधन के साथ-साथ उनके पारिस्थितिक तंत्र को भी संरक्षण दिया जाना चाहिए।
सांभर झील में पानी की आवक के रास्ते हुए बंद- sambhar lake
हजारों वर्षों का इतिहास रखने वाली यह झील रामसर साइट विश्व धरोहर में शामिल है। इस झील में अंग्रेजी हुकूमत के समय से नमक का उत्पादन किया जा रहा है। आजादी के बाद सरकारों की लापरवाही के चलते झील के केचमेंट एरिया व आस-पास में बांध, एनिकट व अतिक्रमण के कारण नदियों का झील से सम्पर्क टूट गया है। नतीजन हालात यह पैदा हो गए कि पिछले तीस वर्षों में यह झील कभी पूरी नहीं भर सकी। आंकड़े बताते है कि सांभर झील में भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन किए जाने से आस-पास की सैंकड़ों बीघा कृषि भूमि बंजर हो गई है।
सांभर झील पर एक नजर- sambhar lake
कैचमेंट एरिया- 7500 वर्ग किलोमीटर
लंबाई- 35.5 गुणा 9.5 किलोमीटर
बारिश के दौरान- 230 वर्ग किलोमीटर
गहराई- 0.61 मीटर
परिधि- 96 किलोमीटर
फैलाव- जयपुर, अजमेर, सीकर, नागौर तक समुद्र तट से ऊंचाई- 360 से 364 मीटर
झील में आती थी यह मुख्य नदियां- इस झील में मुख्य तौर पर मेंढा, रूपनगढ, खारेन, खंडेल और तुरतमती सहित अन्य कई बरसाती नदियों का पानी इस झील में आता था। लेकिन जगह-जगह बांध व एनिकट बना दिए जाने से झील में पानी की आवक काफी कम हो गई। इसके अलावा झील में जगह-जगह अवैध रुप से अतिक्रमण हो गए और झील का दायरा सिकुड़ कर रह गया। झील क्षेत्र में ट्यूबवैल व बिजली की केबिलों ने भी झील के सौंदर्यकरण को नुकसान पहुंचाया। झील के भूगर्भ जल का अत्यधिक दोहन होने से अब झील की सतह पर महज कुछ महिनों पानी ठहराव होता है और गर्मियों में झील सूखकर वीरान हो जाती है।
सरकार को करना है ठोस प्रबंधन

राज्य सरकार की ओर से सांभर झील को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए कई प्रयास किए गए। झील को वेट लेण्ड घोषित हुए भी बरस बीत गए। लेकिन विदेशी पक्षियों के प्रवास के लिए कोई प्रबंधन नहीं हुआ। हर बार झील से अतिक्रमण हटाने और अवैध बोरवेल हटाने की फौरी कार्रवाई होकर रह गई। इसी पर करोड़ों रुपए खर्च भी हो गए। लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात जैसी है।
नमक ने दिया झील को घाव
जिस झील को खारे पानी के लिए जाना जाता था, वह अब पक्षियों की मौत के लिए जानी जाती है। गत वर्ष नवम्बर माह में इस झील के पानी में हजारों की तादाद में देशी-विदेशी पक्षी और जलमूर्गियां दम तोड़ चुके हैं। झील बचाने के लिए अलग-अलग सरकारों ने कई बार कार्रवाई के आदेश दिए और झील संरक्षण के दावें भी किए लेकिन झील संरक्षण को लेकर कोई एक्शन प्लान तैयार नहीं हो सका। झील के सीने पर लगे बोरवेल हटाने की कार्रवाई भी महज कागजी होकर रह गई। 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने झील को बचाने के लिए आदेश दिए। इन आदेशों के बावजूद भी झील का संरक्षण नहीं हुआ। नमक उत्पादकों के स्वार्थ को पूरे करने के लिए एनजीटी के आदेशों पर फौरी कार्रवाई की गई। नमक में ‘ चांदी की खनक’ के आगे झील संरक्षण के दावे और पक्षियों की मौत भी शांत हो जाती है।
सरकार की लापरवाही के प्रमुख अंश-
* सांभर झील में बिछी केबिलों व अवैध बोरवेल के मुद्दे पर सरकार और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में गलत रिपोर्ट पेश की गई। झील में अब भी करीब 25 किलोमीटर के दायरे में विद्युत केबिलों का जाल- रेस्क्यू टीम के झील में जाने पर विद्युत कटौती की गई थी।
* सांभर झील के जल भराव क्षेत्र में रिफाइनरियों से निकलने वाला अत्यधिक खारा मलबा डाला गया। जिससे झील की सतह पर पानी अत्यधिक खारा हो गया और जगह-जगह मलबे के ढेर लगने से झील क जलस्तर बढा और पानी दूषित हो गया।
* झील में पक्षियों के प्रवास के समय (अगस्त से नवम्बर) के बीच कोई पक्षियों की गणना नहीं करवाई गई और ना ही पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण को लेकर कोई कदम उठाए गए।
* फ्लेमिंगो पक्षियों के प्रजनन के लिए सबसे उपर्युक्त मानी जाने वाली इस झील में श्वान और अन्य तरीकों शिकार भी अहम कारण।
* दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों के बारे में जागरुकता के लिए प्रशासन की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गए।
* सांभर झील के नावां तट पर नगरपालिका का डंपिंग यार्ड और नावां शहर के गंदे पानी की सांभर झील में निकासी।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट-
सांभर झील के संरक्षण के लिए सरकार को झील के भराव क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करने के साथ ही झील में मिलने वाली नदियों के रास्ते खोलने चाहिए। जब झील में अच्छी मात्रा में पानी की आवक होगी और वर्षपर्यन्त झील में पानी भरा रहेगा तो स्वत: ही झील में हो रही गतिविधियां बंद हो जाएगी और झील में पक्षियों का प्रवास भी सुरक्षित हो सकेगा।
डॉ. अरुण व्यास
भूगर्भ विशेषज्ञ, प्रोफेसर बांगड़ कॉलेज डीडवाना
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सांभर झील में अच्छी संख्या में प्रवासी पक्षियों की आवक होती है लेकिन झील में पानी का पर्याप्त भराव नहीं होता है। झील में पानी के दोहन से भी झील के चारों ओर के गांवों का भूगर्भ में पानी सूख गया है। अत्यधिक दोहन के दुष्परिणाम भी सामने आए है। सरकार को झील संरक्षण की ओर विशेष ध्यान देकर कार्रवाई करनी चाहिए।
डॉ. सीमा कुलश्रेष्ठ
प्रोफेसर जूलॉजी, शाकम्भर महाविद्यालय सांभरलेक।
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