जिस झील को खारे पानी के लिए जाना जाता था, वह अब पक्षियों की मौत के लिए जानी जाती है। गत वर्ष नवम्बर माह में इस झील के पानी में हजारों की तादाद में देशी-विदेशी पक्षी और जलमूर्गियां दम तोड़ चुके हैं। झील बचाने के लिए अलग-अलग सरकारों ने कई बार कार्रवाई के आदेश दिए और झील संरक्षण के दावें भी किए लेकिन झील संरक्षण को लेकर कोई एक्शन प्लान तैयार नहीं हो सका। झील के सीने पर लगे बोरवेल हटाने की कार्रवाई भी महज कागजी होकर रह गई। 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने झील को बचाने के लिए आदेश दिए। इन आदेशों के बावजूद भी झील का संरक्षण नहीं हुआ। नमक उत्पादकों के स्वार्थ को पूरे करने के लिए एनजीटी के आदेशों पर फौरी कार्रवाई की गई। नमक में ‘ चांदी की खनक’ के आगे झील संरक्षण के दावे और पक्षियों की मौत भी शांत हो जाती है।
* सांभर झील में बिछी केबिलों व अवैध बोरवेल के मुद्दे पर सरकार और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में गलत रिपोर्ट पेश की गई। झील में अब भी करीब 25 किलोमीटर के दायरे में विद्युत केबिलों का जाल- रेस्क्यू टीम के झील में जाने पर विद्युत कटौती की गई थी।
* सांभर झील के जल भराव क्षेत्र में रिफाइनरियों से निकलने वाला अत्यधिक खारा मलबा डाला गया। जिससे झील की सतह पर पानी अत्यधिक खारा हो गया और जगह-जगह मलबे के ढेर लगने से झील क जलस्तर बढा और पानी दूषित हो गया।
* झील में पक्षियों के प्रवास के समय (अगस्त से नवम्बर) के बीच कोई पक्षियों की गणना नहीं करवाई गई और ना ही पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण को लेकर कोई कदम उठाए गए।
* फ्लेमिंगो पक्षियों के प्रजनन के लिए सबसे उपर्युक्त मानी जाने वाली इस झील में श्वान और अन्य तरीकों शिकार भी अहम कारण।
* दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों के बारे में जागरुकता के लिए प्रशासन की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गए।
* सांभर झील के नावां तट पर नगरपालिका का डंपिंग यार्ड और नावां शहर के गंदे पानी की सांभर झील में निकासी।
सांभर झील के संरक्षण के लिए सरकार को झील के भराव क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करने के साथ ही झील में मिलने वाली नदियों के रास्ते खोलने चाहिए। जब झील में अच्छी मात्रा में पानी की आवक होगी और वर्षपर्यन्त झील में पानी भरा रहेगा तो स्वत: ही झील में हो रही गतिविधियां बंद हो जाएगी और झील में पक्षियों का प्रवास भी सुरक्षित हो सकेगा।
डॉ. अरुण व्यास
भूगर्भ विशेषज्ञ, प्रोफेसर बांगड़ कॉलेज डीडवाना
—–
सांभर झील में अच्छी संख्या में प्रवासी पक्षियों की आवक होती है लेकिन झील में पानी का पर्याप्त भराव नहीं होता है। झील में पानी के दोहन से भी झील के चारों ओर के गांवों का भूगर्भ में पानी सूख गया है। अत्यधिक दोहन के दुष्परिणाम भी सामने आए है। सरकार को झील संरक्षण की ओर विशेष ध्यान देकर कार्रवाई करनी चाहिए।
डॉ. सीमा कुलश्रेष्ठ
प्रोफेसर जूलॉजी, शाकम्भर महाविद्यालय सांभरलेक।