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नेहरू चाचा के भतीजों को रोटी के लिए रोज जान की बाजी लगानी पड़ती है

locationकुशीनगरPublished: Nov 13, 2017 03:43:02 pm

रस्सी और बांस के सहारे करते हैं मासूम खतरनाक स्टंट

childrens day special story on Nehru

नेहरू चाचा के भतीजों को रोटी के लिए रोज जान की बाजी लगानी पड़ती है

कुशीनगर. नवम्बर की 14 तारीख को एक बार फिर बाल दिवस मनाया जाएंगा। परंतु आज भी मासूम की एक जमात ऐसी है जिसे रोटी के लिए रोज जान दांव पर लगानी पड़ती है। इस तरह की तस्वीर कुशीनगर जनपद में देखने को मिल रही है। छत्तीसगढ़ से आये मासूम गांवों, शहरों में रोज अपनी जिंदगी दांव पर लगा कर एक वक्त की रोटी का जुगाड़ कर रहें है। पेट भरने के लिए इन बच्चो को खेलने – कूदने की उम्र में ही इन मासूमों को हर दिन खतरनाक करतब दिखाना एक मजबूरी बन गई है। दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में छत्तीसगढ़ से चलकर कुशीनगर जनपद आए इन मासूमों तक आने से पहले ही सारी सरकारी योजनाएं कहीं गुम हो गई है।
रस्सी व बांस के सहारे खतरनाक स्टंट दिखाकर लोगों के आगे हाथ फैलाकर पैसे मांगना अब नीयति बन गई है। यह कहानी उन कुनबों के मासूमों की है जो छत्तीसगढ़ से आकर कुशीनगर के पडरौना रेलवे स्टेशन के समीप डेरा डाले हुए है। पडरौना कस्बे से थोड़ी दूर एनएच 28 बी के किनारे रस्सी पर साईकिल के व थाली के सहारे 7 वर्ष की मासूम शांति को खतरनाक करतब दिखाते देख लोग ठहर जा रहे थे और फिर इस बच्ची के भाग्य व सरकारी व्यवस्था को कोसते हुए आगे बढ जा रहे थे। करतब दिखाने बाद शांति हाथ में वही थाली ,जिससे करतब दिखा रही थी, लेकर लोगों से पैसे मांगने लगती है।
7 वर्ष के उम्र में ही ” पापी पेट का सवाल है” जैसा जुमला सीख चुकी शांति बताती है, कि वह कभी स्कूल नहीं गई। छोटे पर से ही करतब सिखाया जाना लगा। रोज सुबह वह और उसका भाई प्रीतम रस्सी और बांस लेकर निकल पड़ते हैं और फिर खतरनाक खेल दिखाकर लोगों के आगे हाथ फैलाकर पैसे मांगना शुरू कर देते हैं। तीन- चार जगह करतब दिखाने के बाद दोनों भाई- बहन करीब 150 रुपये कमा लेते हैं। भूख के चलते 11 वर्ष की उम्र में ही सयाना हो चुका प्रीतम बताता है वह और उसके गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते। गरीबी के कारण सभी लोग अपने बच्चों को करतब सिखाते हैं और देश में भ्रमण कर पेट पालते है। इनका भविष्य रस्सी और बांस के सहारे चल रही है। इन बच्चों को तो यह भी नहीं पता कि सरकार क्या है और उनके लिए योजनाएं क्या है। इन बच्चों को बाल दिवस के बारे भी नही पता जो सिर्फ बच्चों को ही समर्पित किया गया है।
input- एके मल्ल

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