रस्सी व बांस के सहारे खतरनाक स्टंट दिखाकर लोगों के आगे हाथ फैलाकर पैसे मांगना अब नीयति बन गई है। यह कहानी उन कुनबों के मासूमों की है जो छत्तीसगढ़ से आकर कुशीनगर के पडरौना रेलवे स्टेशन के समीप डेरा डाले हुए है। पडरौना कस्बे से थोड़ी दूर एनएच 28 बी के किनारे रस्सी पर साईकिल के व थाली के सहारे 7 वर्ष की मासूम शांति को खतरनाक करतब दिखाते देख लोग ठहर जा रहे थे और फिर इस बच्ची के भाग्य व सरकारी व्यवस्था को कोसते हुए आगे बढ जा रहे थे। करतब दिखाने बाद शांति हाथ में वही थाली ,जिससे करतब दिखा रही थी, लेकर लोगों से पैसे मांगने लगती है।
7 वर्ष के उम्र में ही ” पापी पेट का सवाल है” जैसा जुमला सीख चुकी शांति बताती है, कि वह कभी स्कूल नहीं गई। छोटे पर से ही करतब सिखाया जाना लगा। रोज सुबह वह और उसका भाई प्रीतम रस्सी और बांस लेकर निकल पड़ते हैं और फिर खतरनाक खेल दिखाकर लोगों के आगे हाथ फैलाकर पैसे मांगना शुरू कर देते हैं। तीन- चार जगह करतब दिखाने के बाद दोनों भाई- बहन करीब 150 रुपये कमा लेते हैं। भूख के चलते 11 वर्ष की उम्र में ही सयाना हो चुका प्रीतम बताता है वह और उसके गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते। गरीबी के कारण सभी लोग अपने बच्चों को करतब सिखाते हैं और देश में भ्रमण कर पेट पालते है। इनका भविष्य रस्सी और बांस के सहारे चल रही है। इन बच्चों को तो यह भी नहीं पता कि सरकार क्या है और उनके लिए योजनाएं क्या है। इन बच्चों को बाल दिवस के बारे भी नही पता जो सिर्फ बच्चों को ही समर्पित किया गया है।
input- एके मल्ल