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मोबाइल फोन में उलझा बच्चों का भविष्य, भूल गए बचपन की कहानियां

locationलखीमपुर खेरीPublished: Aug 13, 2018 03:36:01 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

अब दादी दादा के मुंह से 5 से 10 साल की उम्र के बच्चे कहानियां सुनकर नहीं सोते बल्कि अब उनको सोने के लिए एंड्राइड मोबाइल ही रास आता है।

Children entangled Future in mobile phones

मोबाइल फोन में उलझा बच्चों का भविष्य, भूल गए बचपन की कहानियां

लखीमपुर खीरी. एक वक्त था जब बच्चों को दादा-दादी और नानी के मुंह से कहानी सुने बिना बच्चों को नींद नहीं आती थी। जिसको लेकर बच्चों को कभी-कभी अपने माता-पिता की डॉट और मार का भी सामना करना पड़ता था। मगर अब बच्चों के जिद के आगे उनके मां बाप बेबस हैं। अब दादी दादा के मुंह से 5 से 10 साल की उम्र के बच्चे कहानियां सुनकर नहीं सोते बल्कि अब उनको सोने के लिए एंड्राइड मोबाइल ही रास आता है।

बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है फोन

इतना ही नही अब तो बच्चों के मोह में मां- बाप भी जकड़े हैं। वहीं डॉक्टर इसे बच्चों के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं। विशेषज्ञों की नजर में इसमें कई गंभीर खतरे भी हैं। लेकिन इस भागम-भाग जिंदगी में इसकी परवाह करने की जहमत कोई नहीं उठा रहा है। इस मंहगाई इस दौर में अक्सर बच्चों के माता-पिता उनके बेहतर भविष्य के लिए सरकारी व प्राइवेट नौकरी कतरे हैं। इन भर नौकरी करने के बाद शाम को भी अपने बच्चों को वक्त नहीं दे पाते हैं। यह भी सबसे बाद चिंता का विषय है। लिहाजा बच्चे अपने अकेले पन को दूर करने के लिए एंड्रॉइड फोन का सहारा लेते हैं और दादा-दादी और नानी की कहानियों को भूल कर एंड्रॉइड मोबाइल की दुनिया मे घूम हो चुके है।

बड़े लोगों ने तो हद ही पार कर दी

यह हाल सिर्फ बच्चो का ही नही। यहां तो बड़े लोगों ने तो हद ही पार कर दी है। पहले लोग अपनी समस्यओं को अपने परिवार से साझा करते थे। पूरा परिवार मिल कर उसकी समस्या का समाधान निकलते थे। लेकिन आज किसी को किसी से कोई मतलब नहीं रहा। अगर घर के बुजुर्गों को छोड़ दे। तो अगर घर मे चार लोग है। वो चाहे लड़के हो या लडकियां। अभी एक पास तो होंगे। लेकिन अभी अपने मोबाइल में व्यस्त रहते है। किसी को किसी की समस्या तकलीफ से कोई मतलब नहीं होता। बस एंड्रॉइड मोबाइल ही उनकी जिंदगी बन कर रह गया है।

टूटता जा रहा सामाजिक सरोकारों से नाता

यह हाल शहर का नहीं अब तो गांव देहात का हाल इससे भी बुरा है। यहां भी छोटे -बड़ों पर मोबाइल क्रांति का रुप ले चुकी है। देश वीर शहीदों की बात और कहानी सुनने की जगह बच्चे मोबाइल में नए नए ऐप डाउनलोड करते हैं। इतना ही नहीं बच्चों ने घरों से निकलना बंद कर दिया है। खेल के मैदानों पर पसीना बहाना भी बंद कर दिया है। जिससे उनका सामाजिक सरोकारों से नाता टूटता जा रहा है।

वहीं मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर दिनेश दुआ का कहना है कि यह चलन बचपन छीन रहा है और बीमारियां दे रहा है क्योंकि अकेलेपन की प्रवृत्ति को बढ़ावा बढ़ा रहा है। बच्चों को संस्कारों से दूर कर रहा है। मां-बाप की यह जिम्मेदारी है कि बच्चों को वयस्क होने तक एंड्राइड फोन न देें। छोटे बच्चे का कदमाग कच्चा होता है। यह उनके दिमाग में एक बात अगर घर कर जाती है। तो फिर जल्दी निकलती नहीं है। यह गंभीर विषय है। इस पर सभी को ध्यान देना चाहिए। साथ ही सतर्क भी रहना चाहिए।

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