स्थानीय लोगों का मानना है कि मार्च में पड़ी भीषण गर्मी की वजह से जंगल में आग लगी है, लेकिन इस आग ने वन विभाग के सभी इंतजामों की पोल खोलकर रख दी है। आग का विकराल रूप देखकर आस-पास के करीब 50 गांवों के लोग मौके पर हैं। इस भीषण आग को देखते हुए गांव वालों को आशंका है कि जंगल से यह आग कहीं उनके खेतों तक न पहुंच जाए। लोगों में डर का माहौल बढ़ता जा रहा है। पिछले साल जून में भी दुधवा टाइगर रिजर्व की किशनपुर सेंक्चुरी के कोरजोन की मड़हा बीट में भीषण आग लगी थी। तब करीब 70 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर राख हो गया था।
गांव वालों को आशंका है कि जंगल से यह आग कहीं उनके खेतों तक न पहुंच जाए। खेतों में गेहूं की तैयार फसल खड़ी है। अगर आग लगी तो फसल बर्बाद हो जाएगी। गांव वाले बताते हैं कि दो घंटे से ज्यादा का समय हो गया है पर फायर ब्रिगेड मौके पर नहीं पहुंची है। जंगल में फैली यह आग इतनी तेज से बढ़ी की जंगल में आग की कहावत चरितार्थ नजर आई। किसानों का कहना है कि अगर खेतों तक आग पहुंच गई तो उनकी फसल खाक हो जाएगी और वह बर्बाद हो जाएंगे। जंगल में लगी इस आग ने वन विभाग के इंतजामों को भी उजागर कर दिया। हर साल जंगल में आग धधकती है, हर साल विभाग आग से बचाव के लिए इंतजाम की बात कहता है लेकिन इंतजाम ढाक के तीन पात नजर आ रहे हैं। विभाग फायर लाइन बनाने की बात कहता है लेकिन कहीं भी फायर लाइन नजर नहीं आई।
पिछले वर्ष भी लगी थी आग
पिछले साल जून में भी दुधवा टाइगर रिजर्व की किशनपुर सेंक्चुरी के कोरजोन की मड़हा बीट में भीषण आग लगी थी। जिसमें करीब 70 हेक्टेयर से अधिक जंगल जलकर राख हो गया था। बड़े पेड़ों को तो अधिक नुकसान नहीं पहुंचा है, लेकिन ग्राउंड फ्लोरा पूरी तरह तहस-नहस हो गया था। कुछ सूखे पेड़ों के भी जलने की सूचना थी। हर साल गर्मी में यहां आग लग जाती है। वन विभाग आग लगने के कारणों का खुलासा ही नहीं कर पाता है। जानवरों के मरने का तो अब तक ब्योरा ही सामने नहीं आ सका है।