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समोसे बेचने वाले बच्चे ने मांगा अपना उधार, तो मिली मौत

locationलखीमपुर खेरीPublished: Dec 09, 2017 07:50:05 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

ऐसे में एक उधार खाऊ व्यक्ति से पैसे मांगने पर आदित्य की बदनसीबी मौत बन गई।

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लखीमपुर-खीरी. देने वाले किसी को गरीबी न दे मौत दे दें, मगर बदनसीबी न दें। इसी बदनसीबी ने इस कहावत को यथार्थ कर दिया। आदित्य की मौत इसी का प्रमाण बन गई है। घर के बाहर पिता के साथ टिक्की समोसे बेचकर अपने परिवार की बदनसीबी को दूर करने का हर रोज प्रयास करता था आदित्य। ऐसे में एक उधार खाऊ व्यक्ति से पैसे मांगने पर आदित्य की बदनसीबी मौत बन गई। युवक द्वारा चाकू के कई प्रहार से आदित्य गंभीर रूप से घायल हो गया। इलाज के लिए जिला अस्पताल से लखनऊ रेफर कर दिया गया। जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आदित्य (15) पुत्र ललित कश्यप निवासी भुईफोरवानाथ, तेलियाना कोतवाली सदर को मोहल्ले में ही रहने वाले सुरेंद्र (25) पुत्र बाबूराम ने बीती शुक्रवार को करीब दोपहर दो बजे चाकू मारकर घायल कर दिया। आनन-फानन में परिवारीजन उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल लेकर पहुंचा, जहां गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उसे लखनऊ रेफर कर दिया। लखनऊ में इलाज के दौरान ही दूसरे दिन शनिवार की सुबह आदित्य ने दम तोड़ दिया। इस घटना के पीछे का कारण बेहद चैकाने वाला है।
आपको बता दें कि आदित्य के पिता अपने घर के बाहर एक खोखा रखकर टिक्की-समोसा बेचता है और उसी से अपनी पत्नी व चार बच्चों का पेट पालता है। इसी दुकान में आदित्य भी अपने पिता का साथ देता है। पता चला कि सुरेंद्र आदित्य से दोस्ती बढ़ाकर आए रोज समोसे और टिक्की उधार खा जाता था और कई बार आदित्य द्वारा पैसे मांगने पर उसे दबंगई दिखाता था। शुक्रवार की दोपहर भी यही हुआ। पैसे की जरूरत से जूझ रहे परिवार को कुछ राहत देने के लिए आदित्य ने सुरेंद्र से पैसे मांगने की जिद की। बस फिर क्या था सुरेंद्र ने ताबड़-तोड़ चाकुओं से कई प्रहार कर आदित्य को मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया। मामले की जानकारी पुलिस को दी गई, तो पुलिस ने भी सिर्फ और सिर्फ औपचारिकता निभाई, न आरोपी को पकड़ सकी और न ही आरोपी के परिवार के किसी सदस्य को हिरासत में ले पाई। कुल मिलाकर कोतवाली पुलिस ने अपने दायित्वों का निर्वाहन नहीं किया। ऐसे में आदित्य के परिवार को न्याय किससे मिलेगा।
गरीबी ने छुड़वा दी आदित्य की पढ़ाई-

गरीब परिवार में जन्में आदित्य के दो बड़े भाई और एक छोटी बहन है। पिता जैसे-तैसे समोसे-टिक्की बेंचकर परिवार के खाने का प्रबंध तो कर लेता है परंतु इस दुकान से बच्चों के स्कूल की फीस नहीं आती। शायद यही कारण रहा कि आदित्य ने पढ़ाई तो शुरू की लेकिन दो-चार साल में ही उसे अपनी पढ़ाई छोड़कर पिता की मद्द करने के लिए दुकान पर बैठना पड़ा। इस अलावा अपने परिवार की मद्द को आदित्य कई छोटे-छोटे काम करता था, जिनमें से एक काम था शिवरात्रि में शिव मंदिर के आगे बेलपत्र बेंचना। हालांकि इन कामों से इतने पैसे नहीं मिलते थे कि वह अपने भाई-’बहनों को स्कूल भेज सकें। इस परिवार को देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा है कि देश में सर्व शिक्षा अभियान जैसा भी कोई अभियान भी चल रहा है।
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