पशुपालकों के लिए जरूरी जानकारी, पशुओं को ऐसे बनाएं सेहतमंद
पशुपालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है...

लखीमपुर खीरी. पशुओं के पारंपरिक आहार की बढ़ती कीमतें और उपलब्धता की कमी की वजह से पशुपालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पशुओं को खिलाने के लिए बहुत से आहार उपलब्ध हैं। ये आहार उपयोग में ला कर खर्च तो कम किए ही जा सकता है। साथ ही पशुओं का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है। इसमें से कई पशु आहार ऐसे हैं। जो पशु आहार के रूप में प्रयोग नहीं होते हैं। इसमें मुख्य रूप से फसलों के अवशेष पत्तियों तथा बीजों से बने आहार चाय की पत्तियां के अवशेष आम की गुठली और पशुओं से प्राप्त कार्बनिक अवशेष आते है। हरा चारा रसीला स्वादिष्ट और स्वस्थ होता है। पशुपालन विभाग किसानों को इसके लिए प्रेरित कर रहा है। ताकि पशुओं का आहार मौसम में पौष्टिक आहार उपलब्ध हो सके। इसमें खलीफा के दौरान मक्का ज्वार बाजरा और नेपियर घास आदि है। यह फसलें जुलाई से अक्टूबर तक होती है। रबी की फसल में किसान बरसीम,जेई,सरसों और नेपियर घास की बोआई कर सकते हैं। यह फसल नवंबर से महा मार्च तक होती है। ज्यादा मक्का ,चरी, बाजरा ,ज्यार और लोबिया की फसलें की बुवाई किसान कर सकते हैं। पशुपालक अपने पशुओं को दिन में ही 8 से 10 घंटे के अंतराल में चारा दें। इससे पशुओं की जुगाली करने का पर्याप्त समय मिल सकेगा। और खाए हुए हार को पचा भी सकेंगे।
अरहर का भूसा
बरसीम की तरह अरहर भी दलहनों की श्रेणी में आती है। इसका भूसा भी भूसा पुआल की अपेक्षा बहुत ही पौष्टिक होता है। इसमें लगभग 10 से 11 प्रतिशत प्रोटीन और 50 प्रतिशत पाच्य पदार्थ होते हैं। वहीं मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि धान के चोकर को चावल की भूसी भी कहा जाता है। यह प्रोटीन और ऊर्जा की अच्छी स्रोत है। तेल निकाल चावल का चौकर बाजार में उपलब्ध होता है। इसमें 15 से 16 प्रतिशत प्रोटीन रहती है। हरे चारे की कमी को पूरा करने के लिए पशुपालकों के लिए यह बेहतर विकल्प है। बरेली क्षेत्र में कई किसान नेपियर घास को अपने पशुओं के को खिला रहे हैं। एक बार इस घास को लगने पर चार पांच साल तक हरा चारा मिलता है। इसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर कोई पशुपालक इस घास को खरीदना चाहता है। तो वह आईवीआरआई इज्जतनगर बरेली से खरीद सकता है।
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