scriptआनुवांशिकी प्रदूषण से बचाव, नेपाल के नेपोलियन से दुधवा में 37 साल बाद बदली गैंडों की नस्ल | The breed of rhinos changed after 37 years in Dudhwa | Patrika News

आनुवांशिकी प्रदूषण से बचाव, नेपाल के नेपोलियन से दुधवा में 37 साल बाद बदली गैंडों की नस्ल

locationलखीमपुर खेरीPublished: Jun 04, 2021 04:17:48 pm

Submitted by:

Karishma Lalwani

धवा (Dudhwa National Park) के नेशनल पार्क में 37 साल बाद गैंडों की नस्ल बदली है। अब तक यहां सभी गैंडे एक ही नस्ल (नर गैंडे बांके) के थे। आनुवांशिक प्रदूषण के खतरे के चलते नस्ल सुधार के लिए गैंडा पुनर्वास की नई परियोजना शुरू की गई थी।

Rhinoceros

Rhinoceros

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

लखीमपुर खीरी. दुधवा (Dudhwa National Park) के नेशनल पार्क में 37 साल बाद गैंडों की नस्ल बदली है। अब तक यहां सभी गैंडे एक ही नस्ल (नर गैंडे बांके) के थे। आनुवांशिक प्रदूषण के खतरे के चलते नस्ल सुधार के लिए गैंडा पुनर्वास की नई परियोजना शुरू की गई थी। पहली बार दो गैंडा शिशुओं का जन्म हुआ जो कि बिलकुल नई नस्ल के थे। कल्पना और रोहिणी नाम की मादा गैंडों ने दो शिशुओं का जन्म दिया है। गैंडा परिवार में संख्या बढ़कर 44 पहुंच गई है, जो कि पहले 35 थी।
चार गैंडों की मौत

दक्षिण सोनारीपुर रेंज में 27 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है। दुधवा में असोम से पांच गैंडों को दुधवा लाया गया। लेकिन बीते कुछ वक्त में अचानक गैंडों की मौत होने लगी। सिर्फ दो नर गैंडे राजू और बांके जीवित बचे। इसके बाद गैंडों का वंश बढ़ाने के लिए नेपाल के चितवन राष्ट्रीय निकुंज से चार मादा गैंडा लाई गईं। 35 साल बाद गैंडों की तादाद बढ़कर 31 पहुंच चुकी थी। मगर तब आंशुवांशिक प्रदूषण के चलते दुधवा के गैंडों में प्रदूषण का खतरा बनने का डर जताया गया। चार की रहस्यमयी तरीके से मौत भी हो गई। ऐसे में गैंडों में किसी बीमारी के फैलने की आशंका जताई गई थी। इसलिए गैंडों की नस्ल सुधार पर जोर दिया गया।
गैंडों को आनुवांशिक प्रदूषण से बचाने के लिए वर्ष 2018 में गैंडा परियोजना फेज दो की शुरुआत की गई। इसमें तीन मादा गैंडा शिफ्ट की गईं। वर्ष 2016 में नेपाल से भागकर दुधवा आए गैंडे नेपोलियन को भी वहीं रखा गया। इस फेज में पहली बार सकारात्मक नतीजा सामने आया। कल्पना और रोहिणी नाम की मादा गैंडों ने दो शिशुओं का जन्म दिया है। गैंडा परिवार में अब संख्या बढ़कर 44 पहुंच गई है।
कैमरा ट्रैपिंग से निगरानी

नेपोलियन को परियोजना फेज टू में शामिल किया गया है। गैंडा पुनर्वास परियोजना फेज दो की शुरुआत ही गैंडों में आनुवंशिक प्रदूषण के खतरे के मद्देनजर की गई थी। इस परियोजना की सफलता के बाद दोनों गैंडा शिशु की कैमरा ट्रैपिंग से निगरानी की जा रही है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो