रोजाना सुबह से शाम तक का सफर हर रोज उन्हें वोट मांगने के लिये अपने लाव लश्कर के साथ निकलना ही पड़ता है। यही नहीं सुबह लाव लश्कर के साथ निकलने के बाद उनकी वापसी शाम को ही होती है। हम बात कर रहे हैं ऐसी ही महिला प्रत्याशी बहूओं की जिनका इससे पहले राजनीति से कोई नाता ही नहीं रहा। इनमें से कोई पूर्व विधयक की पत्नी है तो कोई सोने का व्यापार करने बाले व्यवसाई की पत्नी। कोई पूर्व में नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव हारने वाले की पत्नी, तो कोई कन्या विवाह कराने वाले समाज सेवी की पत्नी। इनके अलावा भी कई ऐसी महिलाएं चुनावी मैदान में हैं, जिन्हें पता ही नहीं कि अगर हम चुनाव जीते तो हमें क्या करना होगा।
परिवार से राजनीति तक अब तक वह अपने परिवार की सारी जिम्मेदारी उठा रही थीं। घर पर समय से खाना बनाने से लेकर सभी सदस्यों की देखभाल करने जैसे काम को बखूबी निभाती रहीं और उनमें से बचा हुआ समय वे टीवी, मोबाइल, शॉपिंग और कुछ अन्य काम में व्यतीत करती थीं। वहीं अब परिवार से मिली ऐसी जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई है जिसको वे खुद ही एक महिला उम्मीदवार के रूप में निभा रही है। चेहरे पर बिना किसी थकान के वे महिलाओं से वोट मांगने की अपील कर रही हैं। शहर की जनता से ने एक मौका देने की गुजारिश कर रही हैं। चुनाव में राजनीतिक दल से मिली जिम्मेदारी को भी वह बखूबी निभा रही हैं। अब अगर उनको कुछ याद है तो बस इतना ही कि अगले दिन किस वार्ड में निकलना है।
सियासी गु्णा-गणित से नहीं कोई नाता इसी तरह से और बड़े सियासी दल के बारे में बात करें तो इन बहुओं का इससे पहले सियासी गुणा- गणित से कोई नाता नहीं था। हालांकि राजनीति में लंबे अरसे से जुड़े हैं। लेकिन आरक्षण के चलते पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना उनके लिए भी जरूरी हो गया है। अब इन बहूरानियों के लिये सुबह से लेकर शाम तक केवल प्रचार और प्रसार जिंदगी का हिस्सा बन गया है। सुबह से चुनाव के लिए काम करना पड़ता है। संगठन से मिलने वाले अगले दिन का कार्यक्रम ही उनको याद रहता है। चुनाव के परिणाम के लिए सभी बहुएं चुनाव मैदान में जी जान से जुटी हुई हैं।