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भरत ने शुरु की चक्रवर्ती बनने के लिए अपनी दिग्विजय यात्रा, युद्ध में विजयी होने के बाद उतपन्न हुआ बैराग्य

locationललितपुरPublished: Sep 30, 2017 12:42:40 pm

बाहुबली ने यात्रा को रोककर भरत को ललकारा युद्ध के लिए

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ललितपुर. क्या कभी सुना है कि किसी चक्रवर्ती राजा ने पूरा विश्व जीतने के बाद यूं ही राजपाठ छोड़ दिया हो या फिर चक्रवर्ती राजा बनने के बाद इस संसार से बैराग्य उत्पन्न हो गया हो, तो इसका उत्तर शायद नहीं में आएगा मगर यह सच हे। जनदर्शन के अनुसार यह सब सच है बाहुबली ने अपने भाई को हराकर चक्रवती पद तो पालिया मगर मन ही मन उन्हें संसार से बैराग उत्पन्न हो गया और वह भोग भूमि कुछ छोड़कर तपोभूमि की ओर प्रस्थान कर गए।

 

यह नाटिका ललितपुर की श्री 1008 दिगंबर जैन पारसनाथ मंदिर क्षेत्रपाल जी में आयोजित की गई। ऐतिहासिक पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर क्षेत्रपाल जी में अर्हत चक्र समोशरण महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है। यह विधान विश्व में शांति स्थापित करने के लिए किया जा रहा है इस विधान का उद्देश है कि प्राणी मात्र का उद्धार करना। इस विधान के माध्यम से यह शिक्षा दी जाती है कि प्राणी अपने जीवन में सुकर्मों को अपनाकर मोक्ष मार्ग की प्राप्ति कैसे कर सकता है । यह विधान 108 आचार्य श्री विद्यासागर मुनिराज के परम आशीर्वाद तथा 108 पुंगव मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के परम प्रभावी शिष्य धर्मगुरु 108 अभय सागर जी महाराज 108 प्रभात सागर जी महाराज और तथा 108 पूज्य सागर जी महाराज के सानिध्य में परमपूज्य बाल ब्रह्मचारी प्रदीप भैया जी सुयस के निर्देशन में आयोजित किया जा रहा है। इस विधान के आयोजन के लिए भरत बाहूबली कुबेर तथा इंद्र जैसे पात्रों का भी चयन किया गया था। इस तरह की आयोजन में भगवान आदिनाथ का समोशरण भी सजाया गया है ।

 


मनोहारी है भगवान का समोशरण

इस विधान में भगवान के समोशरण की रचना की गई है । यह रचना बाहर से आए कलाकारों द्वारा कुछ इस तरह की गई है कि मानो ऐसा लगता है कि सभी श्रद्धालु भगवान के समवशरण में बैठे हैं और विश्व शांति के लिए मंत्रों के साथ विधान में अपनी आहुति दे रहे हैं। यह समोशरण भगवान आदिनाथ का है जिसमें भगवान आदिनाथ बैठकर विश्व शांति का संदेश देते हैं। यह समोशरण देखने में इतना मनोहारी है मानो ऐसा लगता है की साक्षात हम स्वर्ग में आ गए हो।


हुआ भारत और बाहुबली का युद्ध

विधान में भगवान ऋषभदेव के दोनों पुत्रों भरत और बाहुबली की अहम भूमिका है । भगवान आदिनाथ को राज पाठ के दौरान जब वैराग्य की प्राप्ति हो जाती है । तो वह अपने दोनों पुत्रों भरत और बाहुबली को अपना राज्य बराबर-बराबर बांट कर वन जाकर तपस्या करने लगते हैं तभी भरत को चक्रवर्ती बनने की सूझती है । और वह समस्त पृथ्वी के राजाओं को जीतकर जब वापस आते हैं तब उन्हें एहसास कराया जाता है कि अभी वह चक्रवर्ती नहीं बने हैं क्योंकि अभी उनके भाई राजा बाहुबली का राजपाट अलग हैं । और जब उन्हें जीतेंगे तब उनकी चक्रवर्ती यात्रा पूरी होगी वह अपने भाई को अपने अधीन होने का संदेश भेजते है मगर बाहुबली उसे मानने से इनकार कर देते हैं तब जाकर वह अपनी दिग्विजय यात्रा प्रारम्भ करते हैं। मगर भाई बाहुबली दिग्विजय यात्रा को बीच में ही रोक देते हैं और भरत को लौट जाने की बात कहटे है मगर भरत को चक्रवर्ती सम्राट बनना था इसलिए उन्होंने बाहुबली को युद्ध के लिए ललकारा।

 

युद्ध की बात सुन कर दोनों की तरफ से सभी लोग चिंतित होने लगे क्योंकि दोनों भाई इतनी बलसा ली थी अगर यह दोनों सालों साल भी लड़े तो इनका हार पाना मुश्किल था इसीलिए कुलगुरु ने आकर दोनों को बिना सेना की लड़ने के लिए कहा और यह तय किया गया कि दोनों के बीच 3 प्रकार की युद्ध होंगे और इस युद्ध में जो विजयी होगा वह चक्रवर्ती सम्राट माना जाएगा । वह तीन युद्ध नेत्र , जल , मल युद्ध हुए और तीनों में बाहुबली ने भरत को हराकर चक्रवती पद पा लिया । मगर जब भरत ने कहा कि मैं हार गया तो बाहुबली ने कहा कि भरत भाई तुम नहीं हारे तुम्हारा घमंड हारा है तुम्हारा अहंकार हारा है । और तब बाहुबली को एहसास हुआ कि मैंने अपने भाई को हरा दिया है और यह एहसास होती ही उन्हें संसार से बैराग उत्पन्न हो जाता है।


विशेष

नाटिका में जो पात्र थे वह स्थानीय थे। मगर इसका मंचन बाहर से आये जैनी कलाकारों द्वारा किया गया। भगवान के शमोशरण में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने धर्म लाभ लिया। ऐसे आयोजन समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते है और विलुप्त होती संस्कृति एवं परंपराओं को जीवित रखने का माध्यम ऐसे ही कार्यक्रम है। जिन के द्वारा समाज की नवयुवा पीढ़ी को धर्मिक व सांस्कृतिक विचारों को संरक्षित रखने का संदेश दिया जा सकता है।

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