जनपद के स्कूलों में तैनात अध्यापक स्कूल ही नहीं जाना चाहते बल्कि वह अपने स्थान पर गांव की ही दो लड़कियों को दो हजार महीने पर रखकर बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा सौप देते हैं तो कहीं किसी स्कूल में महिला अध्यापक द्वारा स्कूल के बच्चों से अपने बच्चों का पालना झुलवाया जाता है।
ये है पूरा मामला
हाल ही में ताजा मामला विकासखंड तालबेहट के ग्राम चुनगी के पूर्व माध्यमिम विद्यालय में सामने आया। जहां स्कूल में एक अध्यापक आलोक गुप्ता एक सहायक अध्यापक अश्वनी चौबे व एक महिला अनुदेशक मंजू लता सिहारे तैनात है। मगर अध्यापक आलोक गुप्ता रजिस्टर पर अपनी उपस्तिथि दर्ज करने कभी कभी स्कूल आते हैं व अनुदेशक महीने में एक बार स्कूल आकर पूरे महीने की अपनी दैनिक उपस्तिथि लगाकर चली जाती है। कुल मिलाकर स्कूल में 3 अध्यापक तैनात हैं मगर तीनों अध्यापकों ने मिलकर एक षड्यंत्र रचा और गांव की ही 2 प्राइवेट कॉलेज में पढ़ने वाली सपना व जयदेवी लड़कियों को स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए दो – दो हजार रुपया प्रति महीने के हिसाब से स्कूल में तैनात कर दिया जो शासनादेशों को स्पष्ट रूप से ठेंगा दिखा रहा है।
इस स्कूल में तैनात अध्यापकों को न तो शासन के अधिकारियों की परवाह है और न ही शासनादेशों की। स्कूल में तैनात दोनों ही प्राइवेट टीचर सपना व जयदेवी लड़कियों ने बताया कि स्कूल के अध्यापक आलोक ने उन्हें स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए 2000 प्रति महीने के हिसाब से रखा है तो वहीं स्कूल में तैनात सहायक अध्यापक अश्विनी का कहना यह है कि इस मामले में मैं कुछ नहीं कह सकता लड़कियों के बारे में आलोक सर बताएंगे। यह मामला जब जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह के संज्ञान में लाया गया तो उन्होंने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी मायाराम को पूरे मामले की जांच के आदेश दिए जिलाधिकारी के आदेश पर मायाराम जब स्कूल पहुंचे तो वहां पर यही हाल नजर आया।
शिकायत सही पाई गई
बेसिक शिक्षा अधिकारी मायाराम ने बताया कि जो शिकायत मिली थी वह सही पाई गई। इस मामले में अध्यापक दोषी पाए गए हैं जिसकी जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी को प्रेषित कर दी गई है। जबकि जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह पहले ही कह चुके हैे कि मामले में जांच रिपोर्ट आने के बाद दूसरी अध्यापकों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी अब इस मामले में देखने वाली बात यह होगी कि वह दोषी अध्यापकों के खिलाफ जिला प्रशासन क्या कड़ी कार्रवाई करता है।
अध्यापक बच्चों को पढ़ाना ही नहीं चाहते
अगर जनपद के स्कूलों में यही हाल रहा तो आप सोच सकते हैं कि स्कूल मैं पढ़ने वाले बच्चों कि शिक्षा का स्तर कैसा होगा क्योंकि स्कूल में तैनात अध्यापक बच्चों को पढ़ाना ही नहीं चाहता आमतौर पर स्कूलों में तैनात महिला टीचरों द्वारा अपने बच्चों को स्कूल ले जाया जाता है और वहां पर पढ़ने वाले छात्रों को न पढ़ाकर उनसे अपने बच्चों का पालना झुलवाया जाता है या फिर महिला अध्यापक अपने बच्चों में ही उलझी रहती हैं। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों पर ध्यान ही नहीं दे पाती और यही हाल सुदूर अंचलों से तैनात अध्यापकों का है जो अपने घर से ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के लिए तैयार नहीं मगर सरकार द्वारा तय सदा सैलरी उन्हें समय पर चाहिए।