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रेवेन्यू बढ़ने के बाद भी जबर्दस्त नुकसान में हैं ई-कॉमर्स कंपनियां

Published: Dec 19, 2016 01:20:00 pm

इंडस्ट्री ने ब्रैंडिंग, प्रमोशन और डिस्काउंट ऑफर्स आदि पर जमकर खर्च किया है, जिसके चलते रेवेन्यू में तो जबर्दस्त इजाफा देखने को मिला, लेकिन नेट प्रॉफिट के मामले में कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ा है…

E Commerce

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नई दिल्ली. सरकारी नियमों में ढील के बावजूद ई-कॉमर्स कंपनियों का नुकसान बढ़ गया है। इंडस्ट्री ने ब्रैंडिंग, प्रमोशन और डिस्काउंट ऑफर्स आदि पर जमकर खर्च किया है, जिसके चलते रेवेन्यू में तो जबर्दस्त इजाफा देखने को मिला, लेकिन नेट प्रॉफिट के मामले में कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ा है। कुछ कंपनियों को तो पिछले साल की तुलना में दोगुना नुकसान हुआ है। हालांकि, ऑनलाइन इंडस्ट्री की ग्राहक संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ है, ऐसे में लॉन्ग टर्म में कंपनियों को इसका फायदा होगा।

रेवेन्यू दोगुना, नुकसान चौगुना

नोटबंदी के के मौके को जबर्दस्त तरीके भुनाने वाली डिजिटल पेमेंट कंपनी पेटीएम के रेवेन्यू में इस साल 200 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, लेकिन कंपनी का नुकसान भी चार गुना बढ़ गया है। इसी तरह चालू वित्त वर्ष में फूड पांडा का रेवेन्यू महज 38 करोड़ रुपए रहा, जबकि नुकसान बढ़कर 143 करोड़ रुपए हो गया। कंपनी ने प्रमोशनल वाउचर्स पर करीब 56 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसी तरह फर्नीचर वेंचर पेपरफ्राई का रेवेन्यू चौगुना हो गया, जबकि नुकसान भी बढ़कर लगभग डबल हो गया है। कंपनी को सबसे ज्यादा खर्च डिलीवरी में उठाना पड़ा है।

आधी हुई फंडिंग

नुकसान बढ़ने के चलते निवेशक भी इन कंपनियों से कतराते नजर आ रहे हैं। एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी से नवंबर के दौरान इन कंपनियों में करीब 250 अरब रुपए का निवेश हुआ है, जबकि समान अवधि में 2015 में यह आंकड़ा 500 अरब रुपए से ज्यादा था। निवेशकों का आकर्षण घटने के संकेत कंपनियों की वैल्यूएशन में हुई गिरावट से भी मिलता है। फ्लिपकार्ट की वैल्यू जून 2015 में करीब 1015 अरब रुपए थी, जो घटकर महज 375 अरब रुपए रह गई है। हालांकि, इस सबके बावजूद फ्लिपकार्ट का खर्च एक साल में 381 करोड़ से बढ़कर 923 करोड़ रुपए हो गया है।

नियमों में मिली छूट

मार्च 2016 में डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन ने गाइडलाइंस जारी करते हुए ई-कॉमर्स कंपनियों को एफडीआई के जरिये आर्थिक सहायता लेने की अनुमति दी थी। हालांकि, ऑफलाइन बाजार का संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार ने कीमतों में समझौते की अनुमति नहीं दी थी। ई-कॉमर्स कंपनियों को उनके प्लेटफॉर्म पर किसी भी एक विक्रेता को उसकी कुल बिक्री का 25 फीसदी से ज्यादा बेचने की अनुमति नहीं है।
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