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आईसीआईसीआई की प्रमुख कोचर ने बेटी को लिखा भावुक पत्र

Published: Apr 15, 2016 08:53:00 am

दुख है कि तुम्हें स्कूल अकेले जाना पड़ा खुशी है कि तुम आत्मनिर्भर बन गई, मेरी कमी कभी महसूस नहीं होने दी

मुंबई। मुझे याद है तुम्हारी बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होने वाली थीं और मैंने काम से छुट्टी ले रखी थी। ताकि मैं तुम्हें परीक्षा हाल तक खुद लेकर जा सकूं। जब तुम्हें यह पता चला तो तुमने बताया कि कैसे तुम सालों तक अपने आप अकेले ही एक्जाम हॉल तक जाती रही हो। यह सुन मुझे दु:ख हुआ लेकिन मैंने यह भी सोचा कि एक कामकाजी मां होने के नाते मैंने तुम्हें कम उम्र में ही आत्मनिर्भर बना दिया। तुम न सिर्फ आत्मनिर्भर हुई बल्कि अपने छोटे भाई का ख्याल भी रखा और उसे मेरी कमी महसूस नहीं होने दी। इस वजह से मैंने तुम पर विश्वास और भरोसा किया और अब तुम एक अद्भुत आत्मनिर्भर महिला हो।

यह भावुक लाइनें देश की प्रमुख बैंकिंग एवं वित्तीय सेवा संस्थान आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ और एम डी चंदा कोचर की हैं। जो उन्होंने अपनी बेटी आरती को एक खत के जरिए जाहिर किया है। खत में कोचर ने बेटी को सफलता के कुछ मंत्र भी बताए हैं। चंदा का यह पत्र सुधा मेनन की संकलित किताब अपनी बेटियों के लिए प्रख्यात माता-पिता से विरासत पत्र में छपा है। इस पत्र में चंदा कोचर ने बेटी आरती पर नाज होने की बात कही है। साथ ही अपनी जिंदगी के कई सारे अनुभव भी बेटी के साथ साझा किए हैं।

बेटी के खत का जिक्र


चंदा ने लिखा, जब तुम यूएस में पढ़ाई कर रही थी और मुझे आईसीआईसीआई का सीईओ बनाया गया था। कुछ दिनों बाद तुम्हारा मेल आया, जिसमें लिखा था कि आपने कभी महसूस नहीं होने दिया कि आप सफल महिला हो और तनावपूर्ण करियर के बाद भी हमें संभाला।

ईमानदार रहो

चंदा ने लिखा कि, आरती जिंदगी में कुछ हासिल करने की इच्छा दिल में हमेशा रहनी चाहिए। इन सबके बीच जरूरी है कि आप जो भी कर रहे हो उसके लिए ईमानदार रहो, कभी समझौता मत करो आसपास के लोगों की भावनाओं का भी ध्यान में रखो।

बच्चे माता-पिता को ही देखकर सीखते हैं

चंदा ने इस खत में कहा है कि माता पिता के बनाए अनुशासन उनके जीवन में बहुत काम आए और उसी की बदौलत वह सफलता की ओर कदम बढ़ा पाईं। चंदा ने लिखा है कि प्रिय आरती आज मुझे तुमको आगे बढ़ते देख बहुत गर्व हो रहा है। तुम्हारी कामयाबी ने मुझे अपने पुराने दिन याद दिला दिए हैं। चंदा ने कहा है कि तुम में भी वो सारी खूबियां हैं जो मुझे मेरे परिवार से विरासत में मिलीं थीं। मुझे पता है बच्चे मां बाप को ही देखकर सीखते हैं। ‘तुम्हारे नाना-नानी ने हम दोनों बहनों और भाई की एक जैसी परवरिश की और सभी को एक जैसे संस्कार दिए हैं।
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