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ग्लोबलाइजेशन के बाद सबसे बुरे दौर में पहुंची देसी कंपनियां

locationनई दिल्लीPublished: Aug 26, 2019 01:00:25 pm

Submitted by:

Ashutosh Verma

उदारीकरण के बाद घरेलू कंपनियों के लिए पिछला पांच साल सबसे खराब रहा।
मुनाफे, टैक्स से लेकर कर्मचारियों के वेतन तक में रिकॉर्ड गिरावट।
वैश्विक मंदी के दौर में भी नहीं था इतना बुरा हाल।

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नई दिल्ली। आर्थिक मंदी से निपटने के लिए अभी सरकार ने कुछ जरूरी कदम उठाया ही था कि अब देसी कंपनियों को लेकर एक रिपोर्ट ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013-14 से लेकर 2017-18 के दौरान भारत के कॉरपोरेट सेक्टर के लिए बीते 25 साल का सबसे बुरा दौर रहा है।

भारत में मौजूद विदेशी कंपनियों पर खास असर नहीं

इस दौरान कंपनियों के सेल्स ग्रोथ, मुनाफे, टैक्स से लेकर कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन तक पर असर पड़ा है। चौंकाने वाली बात है कि यह पब्लिक सेक्टर की कंपनियों से लेकर प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों तक पर लागू होता है। विदेशी मालिकाना वाली कंपनियों के लिए यह पैटर्न थोड़ा अलग है।

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औसतन सालाना सेल्स रेवेन्यू मात्र 6 फीसदी

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के डेटा से पता चलता है कि इन कंपनियों का औसतन सालाना सेल्स रेवेन्यू केवल 6 फीसदी ही रही है। साल 1993-1994 के बाद पांच साल की अवधि में यह सबसे न्यूनतम सेल्स ग्रोथ है।

वित्त वर्ष 2002-03 और 2007-08 के दौरान इन कंपनियों का औसतन सेल्स रेवेन्यू 21.2 फीसदी रहा था, जोकि उदारीकारण के बाद सबसे अधिक सेल्स ग्रोथ रहा। पिछले पांच साल में सरकारी कंपनियों का सेल्स ग्रोथ 2.1 फीसदी के साथ सबसे न्यूनतम रहा है। इस दौरान घरेलू प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों की सालाना सेल्स ग्रोथ 6.5 फीसदी रहा है। इस तुलना में विदेशी कंपनियों का सेल्स ग्रोथ 13.6 फीसदी रहा।

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विदेशी कंपनियों की तुलना में घटा देसी कंपनियों का मुनाफा

बीते पांच साल में टैक्स के बाद प्रॉफिट औसतन हर साल 4.7 फीसदी लुढ़का है। 2007-08 से लेकर 2012-13 के बीच इसमें 1.1 फीसदी सालाना ग्रोथ देखने को मिला था। याद दिला के ये वो दौर था वैश्विक बाजार मंदी की मार से जूझ रहा था। भारत में मौजूद विदेशी कंपनियों का मुनाफा 12.2 फीसदी सालाना दर से बढ़ा। वहीं, सरकारी कंपनियों को सबसे अधिक नुकसान हुआ।

कर्मचारियों के वेतन में भी रिकॉर्ड गिरावट

कर्मचारियों के वेतन की बात करें तो पिछले पांच साल में इसमें भी गिरावट देखने को मिली है। साल 1992-93 के बाद इसमें सालाना बढ़त 12.2 फीसदी ही रही है। आर्थिक उदारीकरण के ठीक पांच साल के दौरान यानी साल 1992-93 से लेकर 1997-98 के बीच में यह सबसे अधिक 18.4 फीसदी रहा था।

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