रोजगार के विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं 90 फीसदी से अधिक कामगार अनौपचारिक रूप से देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान कर रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने बेरोजगारी के वास्तविक आंकड़े पेश करने में असमर्थता दिखाई। इस पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने एक साक्षात्कार में कहा कि बेरोजगारी पर वास्तविक आंकड़ों के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण करना होगा और 2011 के बाद से अभी तक ऐसा कोई सर्वेक्षण नहीं किया जा सका है। उन्होंने कहा कि अगर कंपनी के आधार पर रोजगार के आंकड़े तैयार किए जाते हैं जोकि अर्थव्यवस्था का सिर्फ एक ही हिस्सा होता है। इस साक्षात्कार में उन्होंने जोर देकर कहा, अगर वह कहते हैं कि रोजगार निर्माण से वह खुश हैं तो वह झूठ बोल रहे हैं और अगर इससे दुखी हैं तो इसका कोई आधार नहीं है।
बेरोजगारी लंबे वक्त तक देश में रोजगार की समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है, इसका अंदाजा इस साल मार्च में रेलवे में 90 हजार पदों के लिए आमंत्रित आवेदन से लगाया जा सकता है। इन पदों के लिए देश भर से 2.8 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। विश्व बैंक के एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री और भारतीय मामलों के विशेषज्ञ एजाज घानी ने आशंका जताई है कि भारत में रोजगार की समस्या लंबे समय तक बनी रहने वाली है। उन्होंने इसकी भी चिंता जताई कि संभवत: भारत भी वैश्विक चलन संरक्षणवाद को अपना सकता है जिसके कारण निर्माण और तकनीकी बढ़ोतरी पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसके अलावा डिजिटल तकनीकी के दौर में कम दक्ष और श्रमिक आधारित रोजगार कम होंगे।