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राष्ट्रपति ने दी इनसॉल्वेंसी कोड संशोधन अध्यादेश को मंजूरी, डिफॉल्‍टर्स पर होगी सख्‍त कार्रवाई

locationनई दिल्लीPublished: Nov 23, 2017 03:58:53 pm

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को दिवालिया एवं दिवालियापन संहिता में बदलाव लाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी।

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नई दिल्ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को दिवालिया एवं दिवालियापन संहिता में बदलाव लाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज यह जानकारी दी। उल्‍लेखनीय है कि मंत्रिमंडल ने बुधवार को इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी। जेटली ने बुधवार को बताया था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अध्यादेश में बदलाव के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए उनके पास भेजा है।
लोन नहीं चुकाने वाले पर बढ़ेगी सख्ती


जानकारों का कहना है कि इस अध्‍यादेश को मंजूरी मिलने के बाद लोन नहीं देने वालों पर सख्‍त कार्रवाई की जाएगी। विलफुल डिफॉल्टर उन्हें कहते हैं, जो आर्थिक हैसियत होने के बावजूद बैंकों का कर्ज नहीं चुकाते या जिन्होंने बैंकों से लिए फंड की हेराफेरी की हो। इस कानून से एक समयसीमा के भीतर कर्ज की वसूली का रास्ता साफ हो जाएगा।

शीतकालीन सत्र में पेश होगा ध्‍यादेश


राष्‍ट्रपति से मिलने के बाद अब इसको संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। गौरतलब है कि संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से 5 जनवरी तक चलेगा। नए इनसॉल्वेंसी कोड के तहत अभी तक करीब 400 से ज्‍यादा केस इस कोड के तहत दर्ज हो चुके हैं। इनको नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्‍यूनल (एनसीएलटी) इस कोड के तहत मंजूरी दे चुका है। इसकी मंजूरी के बाद ही इस कोड के तहत मामला चलाया जाता है।

डिफॉल्‍ट करने वाली कंपनियों की खैर नहीं


जानकारों का कहना है कि अध्‍यादेश को मंजूर मिलने के बाद यह तय हो गया है कि वैसी कंपनियां जो जानबूझकर डिफॉल्‍ट करती हैं या प्रमोटर्स के बुरे दिन आने वाले हैं। आने वाले समय में वे दोबारा कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं खरीद पाएंगे। नए कानून से सरकारी बैंकों को बड़ा फायदा होगा। उनपर एनपीए का बोझ कम होगा। वहीं, डिफॉल्‍ट करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई में तेजी आएगी।
एनसीएलटी के पास 400 मामलें


करीब 400 कंपनियों के मामलों को बैंकरप्सी कानून के तहत सुलझाने के लिए नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) के पास भेजा गया है। आरबीआई ने 12 बड़ी कंपनियों के लोन डिफॉल्ट मामले को बैंकरप्सी कोर्ट के पास रेफर किया था। इनमें से 11 मामले दिवालिया अदालत के पास हैं। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से अधिकतर कंपनियों के प्रमोटर अपनी कंपनी के लिए लगाई जाने वाली बोली में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं ताकि वे कम कीमत पर उसे खरीद सकें।

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