ये है पूरा मामला दरअसल इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार एफडीआई वॉच के धर्मेंद्र कुमार ने एक आरटीआई के जरिए आरबीआई से फ्लिपकार्ट-अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से ग्राहकों से नकदी कलेक्ट कर मर्चेंट्स में बांटने को लेकर पूछा था। धर्मेंद्र ने पूछा था कि क्या ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से अपनाई जा रही यह प्रक्रिया पेमेंट्स सेटलमेंट्स सिस्टम्स ऐक्ट, 2007 के तहत आती है। इसके जवाब में आरबीआई ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है। आरबीआई का कहना है कि इस प्रकार के लेन-देन को लेकर नियम तय नहीं किए गए हैं और न ही इस संबंध में कोई खास निर्देश दिया गया है। आपको बता दें कि इंडिया एफडीआई वॉच ट्रेड एसोसिएशंस, यूनियन, स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज और किसानों के समूह का एक ग्रुप है।
कानून में नहीं है Cash On Delivery का जिक्र इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार Cash On Delivery को लेकर पेमेंट्स ऐंड सेटलमेंट्स सिस्टम्स एक्ट, 2007 में कोई खास नियम नहीं है। इस एक्ट में सिर्फ इलेक्ट्रोनिक और ऑनलाइन पेमेंट को लेकर ही नियम हैं। हालांकि जानकारों का मानना है कि Cash On Delivery को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है। आपको बता दें कि देश की अधिकांश ई-कॉमर्स कंपनियों का कारोबार Cash On Delivery पर ही निर्भर है।