कितना सीखें, जितना सीखा वही बहुत- अक्सर लोग यह कहते पाए जाते हैं कि ज्ञान अथाह है। वाकई ज्ञान अथाह है और जैसे-जैसे हम किसी चीज के बारे में सीखना शुरू करते हैं उसके नए नए दायरे सामने आते चले जाते हैं। हर दायरा हमें ज्ञान की एक नई दुनिया में ले जाता है। ऐसे में व्यक्ति अन्ततः थक कर सोचने लगता है कि कितना सीखें, जितना सीखा वही बहुत हुआ।
असफलता के कारण विमुखता- अक्सर लोग सीखने में विफल होने पर निराश हो कर सीखना छोड़ देते हैं। जैसे यदि आप शतरंज खेलना सीखेंगे तो आप शुरुआत में बार बार हारेंगे, फिर जब थोड़ा सीख जाएंगे तो भी आप हारेंगे। वास्तव में आपको लगेगा कि आप कितना भी अच्छा खेलना सीख लेंगे आप हारेंगे ही। ऐसा होता भी है। ऐसा केवल खेलों में ही नहीं बल्कि भाषाओं, अकादमिक विषयों में भी होता है। कई बार बीच के छोटे रास्ते भी होते हैं जब आप बार बार असफल नहीं होते और छोटी सफलताएँ अर्जित करने लगते हैं, पर तब आप वास्तव में ज्यादा सीख नहीं रहे होते हैं।
अनिश्चय की स्थिति – मानव अनिश्चय की स्थितियों को पसंद नहीं करता। अधिकांशतया हम हर बात में पहले से निश्चित परिणाम पाना चाहते हैं। हम अनिश्चय से डरते हैं पर जब आप एक नए कौशल को सीखने के लिए आगे बढ़ते हैं तो परिणाम पूरी तरह से अनिश्चित होता है। आप नई सीखी चीजों को भूल जाते हैं, आपको नई बातें समझ नहीं आतीं। और जब आपको लगता है कि आपने कुछ सीख लिया है आप उसका अभ्यास करने जाते हैं तो परिणाम नकारात्मक आता है। और आपको लगता है कि आपने कुछ नहीं सीखा। और आप सीखना छोड़ देते हैं।
तो यह तो थीं वो तीन बातें जिन पर पार लेंगे तो आप आसानी से नई चीजें सीख लेंगे और जीवन में एक कामयाब शख्स बन कर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाएंगे।