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World AIDS Day 2025 : एड्स का दर्द झेलते बच्चों की कहानी, कहा- “HIV Positive में भी जाति खोजते हैं…”

World AIDS Day 2025 Real Story : एचआईवी संक्रमण\एड्स का दर्द झेल रहे बच्चों के साथ पत्रिका की टीम ने बातचीत की है। इन बच्चों ने एड्स के दर्द को शेयर किया है।

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भारत

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Ravi Gupta

Nov 30, 2025

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एचआईवी संक्रमणएड्स संक्रमित बच्चों के साथ जैकी श्रॉफ व विवेक ओबेरॉय की फाइल फोटो | Photo - RAYS NGO

World AIDS Day 2025 Special : एचआईवी संक्रमण\एड्स का दर्द क्या होता है। इसको यूं समझिए कि "अबूझ पहेली" के साथ जीवन बिताना है। शारीरिक पीड़ा के साथ-साथ सामाजिक भेदभाव का भी सामना करना है। हम उन बच्चों की कहानी (HIV Positive Children Story) बताने जा रहे हैं जिनको इस संक्रमण की ABCD तक नहीं पता। एड्स पीड़ित कुशल गौर कहते हैं कि बचपन में ये कैसे हुआ नहीं पता, अब 18 साल से अधिक उम्र का हो चुका है। असल, दर्द अब समझ में आता है जब कोई साथ खाता-पीता नहीं, उठता-बैठता तक नहीं और क्या-क्या बताएं आपको… इस संक्रमण के साथ-साथ जाति का दंश भी झेलना होता है।

बात सिर्फ कुशल की नहीं है ऐसे कई बच्चों से पत्रिका के रवि कुमार गुप्ता ने बातचीत की, जो गुरिंदर वृक के रेज- आशा की किरण (NGO) में रह रहे हैं। आप या हम इनकी कहानी पढ़कर शायद थोड़े संवेदनशील होंगे और उम्मीद है कि इनके दर्द को कम करें ना करें, लेकिन इनकी तकलीफ को बढ़ाने का काम तो ना ही करें!

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HIV Positive Children | एड्स पीड़ितों को सशक्त बनाने की पहल

एनजीओ के सचिव गुरिंदर वृक ने कहा, "हम एचआईवी संक्रमण झेल रहे बच्चों को पढ़ाने-लिखाने, सशक्त बनाने का काम कर रहे हैं। कोशिश है कि ऐसे बच्चों को एक सुरक्षित जगह दे पाएं ताकि ये जीवन में सफल हों। इसी भावना के साथ काम कर रहे हैं। हम अपील भी करते हैं कि लोग आगे आकर बच्चों को सपोर्ट करें। साथ ही गर्भधारण के बाद एचआईवी टेस्ट कराएं और ऐसे भी समय पर इसकी जांच कराएं ताकि कोई बच्चा इस संक्रमण के साथ जन्म ना ले। हमारे यहां पर फिलहाल 156 एचआईवी संक्रमित बच्चे (102 लड़के व 54 लड़कियां) हैं।"

HIV Positive Children Real Story | सदमे में गुजरता बचपन

कुशल बताते हैं, "ये क्यों हो गया, कैसे हो गया, ये है क्या, क्यों ठीक नहीं हो जाता… हमारा बचपन इस सदमे के साथ गुजरता है। इन सवालों के जवाब शायद ही कोई दे पाए और कोई दे भी तो क्या हमारा दर्द कम करा सकेगा?"

HIV पार्टनर खोजो और फिर अगर जाति नहीं मिली तो…

वो आगे कहते हैं, अब मैं 18 से अधिक उम्र का हो चुका हूं। पार्टनर की तलाश कर रहा हूं। हमने शादी के लिए लड़की भी देखी। हमारे लिए ये सब इतना आसान नहीं। पहले एचआईवी पार्टनर खोजो और फिर अगर जाति नहीं मिली तो वहीं रिजेक्ट हो जाते हैं। मुझे तो समझ नहीं आता यहां पर भी जात-पात और इतना सबकुछ है कि बता पाना मुश्किल है। मैं अपने दोस्तों को भी इसी जाति वाली दर्द के साथ जीते देख रहा हूं। जब एचआईवी वायरस ने जाति नहीं देखी तो फिर हम क्यों देख रहे हैं, हमारे माता-पिता या अभिभावक को यहां पर जात के आधार पर ही शादी करानी है। ये वाकई हमारे लिए दर्दनाक अनुभव है। पता नहीं, कोई हमें समझ क्यों नहीं पा रहा।

कुशल कहते हैं कि तलाश जारी है, उम्मीद है कि कोई ना कोई हमारे हाथ को थामेगा। जैसे कि बचपन से गुरिंदर सर ने थामा और हमें काबिल बनाने का काम किया। दुनिया में अच्छे लोग भी हैं बस उनके मिलने तक की देरी है।

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इससे बड़ा जीवन का कोई तोहफा नहीं!

एक बच्ची (उम्र कम होने कारण नाम नहीं प्रकाशित कर रहे) ने बताया, हमें एड्स है इसकी जानकारी मिल गई। सबसे तकलीफ इस बात की है कि ये संक्रमण खाने-पीने, साथ उठने-बैठने से नहीं फैलती फिर भी पढ़े-लिखे लोग तक हमसे दूर भागते हैं। ये दर्द तभी दूर होगा जब लोग हमें अपना लेंगे। साथ ही एक प्रार्थना हमेशा करती हूं कि इसकी दवा बन जाए और ये ठीक हो जाए। काश! ऐसा हो जाता तो इससे बड़ा जीवन का कोई तोहफा ना होता!

डिस्क्लेमर -एचआईवी संक्रमण\एड्स पीड़ित बच्चे भेदभाव का शिकार होते हैं। इसलिए, कई बच्चों के नाम व फोटो को उजागर नहीं किया जा रहा है। यहां पर दिए गए नाम भी उनकी मर्जी के साथ प्रकाशित कर रहे हैं। फीचर फोटो रेज- आशा की किरण (NGO) से ली गई है जो पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है।