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पूर्वांचल के रण में तीन नए क्षत्रपों का इम्तहान, योगी को अपने भगवा गढ़ को बचाने के लिए बदलनी पड़ी रणनीति

locationलखनऊPublished: May 08, 2019 07:45:24 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

-जात-जात में बिछी पूर्वी उप्र की बिसात-अपना दल, सुभासपा और निषाद पार्टी को वजूद बचाने की चिंता-यूपी के दो पुराने सिपहसालार भाजपा को दे रहे हैं कड़ी चुनौती-योगी को अपने भगवा गढ़ को बचाने के लिए बदलनी पड़ी रणनीति

Yogi Akhilesh

Yogi Akhilesh

पत्रिका इन्डेप्थ स्टोरी.
महेंद्र प्रताप सिंह.

लखनऊ. यूपी में लोकसभा चुनाव के पांच द्वार भेदे जा चुके हैं। अवध से होकर लड़ाई अब पूर्वांचल की ओर बढ़ चली है। यहां 12 मई को छठें द्वार को भेदने के लिए रोमांचक रण होगा। इस रण में 14 संसदीय सीटों के लिए जंग होगी। सातवां और अंतिम रण 19 मई को है। इस युद्ध का प्रमुख केंद्र काशी होगा। इसमें 13 लोकसभा सीटों को फतह करने के लिए चुनावी युद्ध लड़ा जाएगा। इन दोनों ही चरणों के रण में तीन नए क्षेत्रीय क्षत्रपों के रण कौशल का फैसला होना है। भाजपा और उसके सहयोगी क्षत्रप अपना दल और निषाद पार्टी को पूर्वांचल में सूबे को दो पुराने क्षत्रप समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। रण में भाजपा के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी विभीषण की भूमिका में है। योगी सरकार में रहकर भी योगी-मोदी के लिए ओमप्रकाश राजभर ने ऐसी व्यूह रचना की है जिससे 27 सीटों को भेदना भाजपा के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है।
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उप्र की राजनीति में पूर्वांचल की सियासत अहम स्थान रखती है। चुनावी जंग जीतने के लिए यहां धर्म, जाति और व्यक्तिगत निष्ठा अहम हथियार हैं। गोरखपुर गोरखनाथ पीठ का भगवा गढ़ है। बलिया जैसी सीट भी है। जहां कभी व्यक्तिगत निष्ठा के कारण पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ताउम्र अजेय रहे। आजमगढ़ संसदीय सीट जातिगत राजनीति का बिरला उदाहरण है जहां पार्टियां कोई भी हों लेकिन, पिछले 35 सालों से यादव जाति ही राज करती रही है।
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राजनीति की इन तीन धाराओं से उर्वर पूर्वांचल की धरती पर इस बार जातियों के बीच युद्ध है। यह कहना गलत नहीं होगा। 27 सीटों के लिए निषाद, कुर्मी और राजभर जातियों की अपनी पार्टियां चुनाव मैदान में हैं। देश में शायद ही कोई ऐसा इलाका हो जहां जातिगत श्रेष्ठता साबित करने के लिए एक साथ कई-कई क्षत्रप मैदान हैं।
कुर्मी-पटेल मतों को सहेजने के लिए अपना दल से गठजोड़-
बात अपना दल से। उप्र में अपना दल एकमात्र पार्टी है जिसके साथ भाजपा ने समझौता किया है। 2014 के चुनाव मेें भी अपना दल एस भाजपा के साथ थी। तब पार्टी ने दो सीटें मिर्जापुर और प्रतापगढ़ जीती थीं। इस बार भी अपना दल को भाजपा ने दो सीटें ही दी हैं। मिर्जापुर सीट से पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं। जबकि, राबट्र्सगंज में पकौड़ी कौल को टिकट मिला है। पूर्वांचल में पटेल यानी कुर्मी और इनकी उपजातियों की संख्या बड़ी तादात में है। यहां पटेल किसान और खेतिहर मजदूर हैं। कमेरों, पिछड़ों और पटेलों को एकजुट करने के लिए 1994 में सोने लाल पटेल ने अपना दल की स्थापना की थी। सोने लाल की 2009 में मौत हो गयी तो पार्टी की कमान उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के हाथ में आ गयी। महत्वाकांक्षाओं की टकराहट में मां से बेटी की तकरार हुई और अपना दल सोनेलाल के नाम से नयी पार्टी बन गयी। कृष्णा पटेल ने कांग्रेस के साथ समझौता किया है। उनके भी उम्मीदवार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। मां-बेटी की इस जंग में कुर्मी मत किधर जाएगा यह नहीं मालूम, लेकिन यह चुनाव तय करेगा अनुप्रिया पिछड़ों की नई नेता का खिताब कायम रख पातीं है या नहीं।
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यूपी की सियासत में मठ की ताकत का इम्तहान
छठे और सातवें चरण के रण में पूर्वी उप्र में मठ की ताकत का भी इम्तहान होना है। यूं तो गोरखपुर और इसके आसपास के इलाके घोसी, महाराजगंज और संतकबीर नगर जैसी संसदीय सीटें दिमागी बुखार के लिए बदनाम हैं। जिसकी वजह से हर साल बरसात के मौसम में हजारों मासूमों की मौत हो जाती है। लेकिन, पूर्वी यूपी का यह इलाका मठ की हुकूमत के लिए भी जाना जाता है। लगभग तीन दशक से सरकार चाहे जिसकी हो, लेकिन इन तीन-चार सीटों पर बादशाहत मठ की ही रही है। पहले महंत अवैधनाथ और अब योगी आदित्यनाथ के बिना यहां राजनीति की बात बेमानी है। लेकिन 2017 में विपक्ष ने इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी जाति निषाद-मल्लाह को एकजुट कर बाबा को पराजित कर दिया। नदियों के किनारे रहने वाली निषाद-मल्लाह जातियां पूर्वांचल की 25 से 30 सीटों पर प्रभाव डालती हैं। राज्य में इनकी आबादी 14 से 17 फीसदी है। इन जातियों की फसल काटने के लिए यहां निषाद पार्टी का उदय हुआ। इसके कर्ताधर्ता हैं डॉ. संजय निषाद। इनके बेटे प्रवीण निषाद को सपा ने उपचुनाव में गोरखपुर से खड़ा किया था और चुनाव जीत लिया था। योगी की प्रतिष्ठा को धक्का लगा तो रणनीतिक कौशल के तहत निषाद पार्टी को भाजपा से जोड़ दिया। अब प्रवीण भाजपा के टिकट पर संत कबीर नगर से चुनाव लड़ रहे हैं। गोरखपुर से भाजपा से भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रविकिशन भाजपा उम्मीदवार हैं। यहां से सपा ने राम भुवाल निषाद को उतारा है। प्रवीण की जीत तय करेगी निषादों का क्षत्रप कौन होगा।
शिवसेना के उद्धव ठाकरे हैं ओमप्रकाश, योगी की आलोचना के बाद भी मंत्री
शिवसेना के उद्धव ठाकरे की तरह ओमप्रकाश राजभर योगी आदित्यनाथ सरकार के सबसे बड़े आलोचक हैं। सरकार में रहकर भी वह सरकार से बैर लेते रहे हैं। सरकार से इस्तीफा देने के बावजूद ओमप्रकाश सरकार में बने हुए हैं। जाति आधारित राजनीति के अगुवा ओमप्रकाश सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी एसबीएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। एसबीएसपी की स्थापना 2002 में हुई थी। 2017 में विधानसभा की छह सीटें जीतकर ओमप्रकाश योगी सरकार में मंत्री बने। दो साल से यह सरकार को गाली देते हुए भी सरकार में हैं। इस बार 39 सीटों पर इन्होंने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। पूर्वांचल में राजभर वोट बैंक की एकजुटता इनकी ताकत है। यहां की करीब 26 सीटों पर 50 हजार से सवा दो लाख तक राजभर जाति की वोट हैं। 13 लोकसभा सीटों पर तो राजभर एक लाख से ज्यादा हैं। इनमें घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अम्बेडकर नगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर व भदोही जैसी सीटें शामिल हैं। ओमप्रकाश की प्रतिष्ठा इस चुनाव से जुड़ी है। उनकी पार्टी जीतती है तो राजभर सरकार में बने रहेंगे। हारी तो ओमप्रकाश का मंत्री पद भी जाएगा और राजभरों के क्षत्रप का खिताब तो छिनेगा ही।
बहरहाल, इन तीनों नए क्षत्रपों को यूपी के दो पुराने धुरंधरों से जूझना पड़ रहा है। पिछड़ों की राजनीति करने वाले यह तीनों नेता जातीय राजनीति के नए खिलाड़ी हैं। जबकि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती भी पिछड़ों और दलितों की राजनीति के पर्याय माने जाते हैं। जब एक ही लक्ष्य के लिए एक नहीं पांच-पांच धुरंधर जूझेंगे तो तय है कि जीत तो उसे ही मिलेगी जो संगठित होकर धारदार हथियारों से जंग लड़ेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वांचल के किले को जीतने के लिए किसके हथियार भोथरे हैं और किसके धारदार।

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