बात अपना दल से। उप्र में अपना दल एकमात्र पार्टी है जिसके साथ भाजपा ने समझौता किया है। 2014 के चुनाव मेें भी अपना दल एस भाजपा के साथ थी। तब पार्टी ने दो सीटें मिर्जापुर और प्रतापगढ़ जीती थीं। इस बार भी अपना दल को भाजपा ने दो सीटें ही दी हैं। मिर्जापुर सीट से पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं। जबकि, राबट्र्सगंज में पकौड़ी कौल को टिकट मिला है। पूर्वांचल में पटेल यानी कुर्मी और इनकी उपजातियों की संख्या बड़ी तादात में है। यहां पटेल किसान और खेतिहर मजदूर हैं। कमेरों, पिछड़ों और पटेलों को एकजुट करने के लिए 1994 में सोने लाल पटेल ने अपना दल की स्थापना की थी। सोने लाल की 2009 में मौत हो गयी तो पार्टी की कमान उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के हाथ में आ गयी। महत्वाकांक्षाओं की टकराहट में मां से बेटी की तकरार हुई और अपना दल सोनेलाल के नाम से नयी पार्टी बन गयी। कृष्णा पटेल ने कांग्रेस के साथ समझौता किया है। उनके भी उम्मीदवार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। मां-बेटी की इस जंग में कुर्मी मत किधर जाएगा यह नहीं मालूम, लेकिन यह चुनाव तय करेगा अनुप्रिया पिछड़ों की नई नेता का खिताब कायम रख पातीं है या नहीं।
छठे और सातवें चरण के रण में पूर्वी उप्र में मठ की ताकत का भी इम्तहान होना है। यूं तो गोरखपुर और इसके आसपास के इलाके घोसी, महाराजगंज और संतकबीर नगर जैसी संसदीय सीटें दिमागी बुखार के लिए बदनाम हैं। जिसकी वजह से हर साल बरसात के मौसम में हजारों मासूमों की मौत हो जाती है। लेकिन, पूर्वी यूपी का यह इलाका मठ की हुकूमत के लिए भी जाना जाता है। लगभग तीन दशक से सरकार चाहे जिसकी हो, लेकिन इन तीन-चार सीटों पर बादशाहत मठ की ही रही है। पहले महंत अवैधनाथ और अब योगी आदित्यनाथ के बिना यहां राजनीति की बात बेमानी है। लेकिन 2017 में विपक्ष ने इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी जाति निषाद-मल्लाह को एकजुट कर बाबा को पराजित कर दिया। नदियों के किनारे रहने वाली निषाद-मल्लाह जातियां पूर्वांचल की 25 से 30 सीटों पर प्रभाव डालती हैं। राज्य में इनकी आबादी 14 से 17 फीसदी है। इन जातियों की फसल काटने के लिए यहां निषाद पार्टी का उदय हुआ। इसके कर्ताधर्ता हैं डॉ. संजय निषाद। इनके बेटे प्रवीण निषाद को सपा ने उपचुनाव में गोरखपुर से खड़ा किया था और चुनाव जीत लिया था। योगी की प्रतिष्ठा को धक्का लगा तो रणनीतिक कौशल के तहत निषाद पार्टी को भाजपा से जोड़ दिया। अब प्रवीण भाजपा के टिकट पर संत कबीर नगर से चुनाव लड़ रहे हैं। गोरखपुर से भाजपा से भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रविकिशन भाजपा उम्मीदवार हैं। यहां से सपा ने राम भुवाल निषाद को उतारा है। प्रवीण की जीत तय करेगी निषादों का क्षत्रप कौन होगा।
शिवसेना के उद्धव ठाकरे की तरह ओमप्रकाश राजभर योगी आदित्यनाथ सरकार के सबसे बड़े आलोचक हैं। सरकार में रहकर भी वह सरकार से बैर लेते रहे हैं। सरकार से इस्तीफा देने के बावजूद ओमप्रकाश सरकार में बने हुए हैं। जाति आधारित राजनीति के अगुवा ओमप्रकाश सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी एसबीएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। एसबीएसपी की स्थापना 2002 में हुई थी। 2017 में विधानसभा की छह सीटें जीतकर ओमप्रकाश योगी सरकार में मंत्री बने। दो साल से यह सरकार को गाली देते हुए भी सरकार में हैं। इस बार 39 सीटों पर इन्होंने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। पूर्वांचल में राजभर वोट बैंक की एकजुटता इनकी ताकत है। यहां की करीब 26 सीटों पर 50 हजार से सवा दो लाख तक राजभर जाति की वोट हैं। 13 लोकसभा सीटों पर तो राजभर एक लाख से ज्यादा हैं। इनमें घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अम्बेडकर नगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर व भदोही जैसी सीटें शामिल हैं। ओमप्रकाश की प्रतिष्ठा इस चुनाव से जुड़ी है। उनकी पार्टी जीतती है तो राजभर सरकार में बने रहेंगे। हारी तो ओमप्रकाश का मंत्री पद भी जाएगा और राजभरों के क्षत्रप का खिताब तो छिनेगा ही।