उन्होंने बताया कि जब सरकार ने जीएसटी लागू किया था तो सरकार ने राज्यों को भरोसा दिया था कि राज्यों में जीएसटी की वसूली में आर्थिक नुकसान की भरपाई केन्द्र सरकार करेगी। मगर केन्द्र सरकार का जो खुद का जीएसटी का कलेक्शन है उसमें लगातार कमी आ रही है। इसी के चलते केन्द्र सरकार राज्यों को उनका बकाया पैसा नहीं भेज सकी है। बजट में इसी कमी को पूरा करना वित्त मंत्री की सबसे बड़ी चुनाती है। उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ये ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रदेश ने इस बार करीब 72 हजार करोड़ का रेवेन्यू टार्गेट (जीएसटी+वैट) रखा है। मगर कारोबार में मंदी के चलते प्रदेश सरकार अपने इस लक्ष्य को पूरा करने की स्थिति में फिलहाल नजर नहीं आ रही। जानकारों के मुताबिक, मार्च तक का जो फाइनल डाटा आएगा उसमें प्रदेश को करीब 12 हजार करोड़ का नुकसान हो सकता है। इसलिए इस बजट में उत्तर प्रदेश को केन्द्र से ज्यादा उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश के जो बड़े प्रोजेक्ट पीपीपी (पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप) मोड में चलते थे, अब उनमें प्राइवेट पार्टनर न मिलने की वजह से इन्हें पूरा करने का बोझ भी राज्य सरकार के कन्धों पर है। जैसे- जेवर का एयरपोर्ट हो या एक्सप्रेस वे और हाईवे हों, इन सभी को अपने संसाधनों से ही बनाने की चुनौती भी राज्य सरकार के सामने है। राज्य इसके लिए बैंकों से लोन ले रही है, जिसका एक मोटा ब्जाय भी सरकार को चुकाना पड़ता है। ऐसे में अगर उत्तर प्रदेश के बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए बजट में कोई अलग से इंतजाम नहीं हुआ तो उत्तर प्रदेश के आर्थिक हालात में सुधार नहीं हो सकता है। इसलिए राज्य सरकार ये उम्मीद कर रही है कि उसे इस बार के बजट में हर बार से ज्यादा मिलना चाहिए, ताकि प्रदेश के विकास की गाड़ी को पटरी पर लाया जा सके।
आयुष्मान भारत से लेकर मनरेगा तक की केन्द्र सरकार की योजनाओं के समकक्ष प्रदेश सरकार भी अपनी योजनाएं चला रही है। जैसे मुख्यमंत्री आरोग्य योजना, मुख्यमंत्री कृषक कल्याण योजना इत्यादि। इस स्थिति में उत्तर प्रदेश सरकार पर केन्द्रीय योजनाओं के लिए पैसों का इंतजाम करने का भी दबाव होता है। इसलिए इस बजट में जन कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी अलग से पैसे की उम्मीद राज्य सरकार कर रही है।
पिछले तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश में गन्ने का दाम नहीं बढ़ा है। तमाम कोशिशों और करीब 83 हजार करोड़ रुपये देने के बावजूद केन एरियर अभी बचा हुआ है। किसानों को एक तरफ जहां मूल्य बढ़कर नहीं मिल रहा है, वहीं उनका पुराना एरियर भी बचा हुआ है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के करीब 130 गन्ना चीनी मिलों के लिए स्पेशल पैकेज की भी जरूरत है। इसलिए प्रदेश सरकार को उम्मीद है कि अगर बजट में इसका कुछ अलग से इंतजाम होगा तो उससे गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान भी किया जा सकेगा।
सिद्धार्थ कलहंस ने कहा, जब आर्थिक हालात खराब होती है तो आम आदमी को राहत देने का सबसे अच्छा तरीका होता है कि उसे टैक्स में थोड़ी छूट दे दी जाए। आजकल टैक्स रिफॉर्म की बात भी चल रही है, हालांकि पिछली बार भी टैक्स में कुछ सुधार किया गया था। इस बार ये सुझाव दिया गया है कि पांच लाख तक की कमाई पर 5 फीसदी का एक नया टैक्स स्लैब की शुरुआत की जाए। इस नये स्लैब का सबसे ज्यादा फायदा उत्तर प्रदेश के लोगों को मिलेगा, क्योंकि प्रदेश के नौकरीपेशा लोगों की जो औसत आय है वो इस पांच लाख में कवर हो जाएगी। फिर वो चाहे निजी क्षेत्र के हों या फिर सार्वजनिक क्षेत्र के नौकरीपेशा लोग हों।
उत्तर प्रदेश को डिफेंस कॉरीडोर से भी बेहद उम्मीद है। हालांकि, उत्तर प्रदेश को डिफेंस कॉरीडोर की सौगात भी निर्मला सीतारमण ने दी उस समय दी थी जब वो रक्षामन्त्री थीं। इसमें यह प्रावधान है कि प्रदेश के छोटे और मझोले उद्यमी इसमें अपनी इकाई स्थापित करेंगे। अब उद्यमियों की उम्मीद ये है कि सरकार इस बार के बजट में कुछ ऐसे प्रावधान करे कि डिफेंस कॉरीडोर में जो भी उद्योग लगाये जाएंगे। उनके उत्पादों को सरकार प्राथमिकता देकर खरीदे। हालांकि, राज्य सरकार ने इस सम्बन्ध में एक प्रार्थना पत्र भी केन्द्र के पास भेज रखा है।