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सपा नेता रामगोपाल की गैर मौजूदगी से अखिलेश समर्थक बेचैन

locationलखनऊPublished: Oct 13, 2018 03:14:48 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

शिवपाल रोज कर रहे हैं धमाका लेकिन गायब हैं सपा के चाणक्य रामगोपाल -जानिए क्या है वजह, नेता की गैर मौजूदगी से कैसे बेचैन हैं अखिलेश समर्थक

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सपा नेता रामगोपाल की गैर मौजूदगी से अखिलेश समर्थक बेचैन

लखनऊ. सपा की राजनीति में इन दिनों उथल-पुथल मची है। पार्टी टूट चुकी है। शिवपाल सिंह यादव हर रोज सपा के सूरमाओं को समाजवादी सेक्युलर मोर्चा में शामिल करवा रहे हैं। लेकिन, न तो सपा मुखिया अखिलेश यादव का कोई बयान आ रहा है और न ही सपा के चाणक्य यानी रामगोपाल यादव की पार्टी में मौजूदगी का कोई अहसास हो रहा है। इससे सपा नेताओं में बेचैनी है।
इन दिनों समाजवादी सेक्युलर मोर्चा रोज एक धमाका कर रहा है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अलग पार्टी बना चुके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के मंच पर नजर आ रहे हैं। अखिलेश यादव के छोटे भाई प्रतीक की बहू अपर्णा यादव भी शिवपाल खेमे में नजर आ रही हैं। लेकिन इन खास मौकों पर सपा महासचिव और पार्टी के रणनीतिकार रामगोपाल यादव का न तो कोई बयान आ रहा है और न ही कहीं उनकी कहीं कोई मौजूदगी दिख रही है। हाल ही में समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर लोहिया ट्रस्ट में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचकर मुलायम सिंह यादव ने सपाइयों की धुकधुकी बढ़ा दी। जबकि गुरूवार को ही जय प्रकाश नारायण की जन्म शती पर आयोजित कार्यक्रम में अखिलेश संग पार्टी के शीर्ष नेता मौजूद दिखे नहीं आए तो मुलायम और रामगोपाल यादव । ऐसे में समाजवादी पार्टी के महासचिव और राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव की अनुपस्थिति पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गयी है। पार्टी कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि आखिर 2019 के चुनावों का सामना कैसे किया जाएगा।
कार्यक्रमों में राम गोपाल यादव अनुपस्थित

राम गोपाल यादव हर संकट में अखिलेश के पक्ष में खड़े रहे हैं। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुए पारिवारिक विवाद में राम गोपाल यादव ने अखिलेश का समर्थन किया था। यहां तक कि राम गोपाल मुलायम से भी इसके लिए बैर मोल लिए। बहरहाल, आज वह दिल्ली में समाजवादी पार्टी का चेहरा हैं और अखिलेश की तरफ से पार्टी की बैठकों और विपक्षी नेताओं की बैठकों में भाग लेते रहे हैं। लेकिन, इधर सपा के कई कार्यक्रमों में रामगोपाल यादव की अनुपस्थिति ने अखिलेश और उनके समर्थकों की बेचैनी बढ़ा दी है। इस बीच उनका कोई बयान भी नहीं आया है।
सपा के प्रमुख कार्यक्रम में भी नहीं आए

राजधानी लखनऊ में बुधवार को सपा द्वारा आयोजित की जयप्रकाश नारायण की जयंती कार्यक्रम में बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा व पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा पहुंचे। लेकिन राम गोपाल यादव कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे। हालांकि, शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा ने बीजेपी के खिलाफ जमकर निशाना साधा और कहा कि दिल्ली की सरकार को उखाड़ फेंकना है। इसी तरह शुक्रवार को राम गोपाल राम मनोहर लोहिया की जयंती पर भी लखनऊ में किसी भी समारोह में शामिल नहीं हुए।
जन्मदिन पर खत्म होती दिखी थी दूरियां

गौरतलब है कि 29 जून, 2018 को इटावा में रामगोपाल यादव के जन्मदिन के दौरान शिवपाल सिंह यादव भी मौजूद थे। तब शिवपाल गुट और रामगोपाल गुट एकसाथ नजर आया था। हालांकि, तब अखिलेश यादव जन्मदिन पर मौजूद नहीं थे।
शिवपाल की वजह से बढ़ रही दूरियां

सपा परिवार में पारिवारिक विवाद कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी पार्टी में अपने पद को लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच घमासान हो चुका है, जिससे दोनों के बीच दूरियां हो गई थीं। हालांकि, पार्टी और परिवार का विवाद मुलायम सिंह यादव ने बाद में खत्म करवा दिया था लेकिन मन में थोड़ी बहुत उलझन अब भी बाकी थी। अपना धैर्य जवाब दे जाने के बाद आखिर शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ बना डाली।
इस वजह से हुआ था झगड़ा

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच टिकट बंटवारे को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। दोनों ही अपने-अपने खेमे के नेताओं को टिकट देना चाहते थे। तब शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष थे और उनका दावा था कि टिकटों का बंटवारा उनकी मर्जी से होना चाहिए। लेकिन, अखिलेश यादव का कहना था कि वे यूपी के मुख्यमंत्री हैं और जनता के बीच उन्हें जाना है। इसके बाद झगड़ा गायत्री प्रसाद प्रजापति के लेकर शुरू हुआ, जो पहले तो पारिवार की चहारदीवारी तक सीमित था लेकिन बाद में मंच पर भी इसका असर दिखने लगा। तब अखिलेस के पक्ष में उस समय ज्यादातर विधायक थे, जिनके दम पर उन्होंने पार्टी के कार्यकाल और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर कब्जा कर लिया था। कुल मिलाकर कहा जाए, तो यादव परिवार में शांत विवाद शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के गठन के बाद से दोबारा शुरू हो गया। समाजवादी परिवार में शुरू झगड़े का असर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा।
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