जिसमें चौदह रत्न निकले। भक्त को पीडि़त देखकर देवताओं ने भगवान शंकर की आराधना किया तब भगवान शंकर ने अपने दासों पर कृपा बरसाते हुये कालकोट विष का पान कर लिया। विश्वनाथ मन्दिर के 27वें स्थापना दिवस के मौके पर श्रीरामलीला पार्क सेक्टर-’ए’ सीतापुर रोड़ योजना कालोनी में स्थित मन्दिर परिसर में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन मंगलवार को संसार के कल्याणार्थ भगवान का भक्तों पर अनुग्रह का वर्णन करते हुये कथाव्यास आचार्य वरूण श्यामजी महाराज ने कहाकि जिस समय वामन भगवान बलि की यज्ञशाला में पहुंचे तो बलि की बहन रत्नमाला ने भगवान को देखकर सोचा कि ऐसा पुत्र मुझे भी प्राप्त हो जाये।
भगवान ने रत्नमाला की मनः स्थिति को समझकर आशीर्वाद दे दिया। फिर जिस समय वामन भगवान ने विकराल रूप धारण किया तो उसी रत्नमाला ने भगवान को विष पिलाने की बात सोंची तो भगवान ने उसे भी स्वीकार कर लिया।
वही रत्नमाला द्वापर में पूतना नाम से विख्यात हुई। ‘‘देखकर रामजी को जनकनंदनी बाग में यों खड़ी की खड़ी रह गई, राम ने देखा सिय और सिय ने राम को, चारों अंखियां लड़ी का लड़ी रह गई..........’’ आचार्य वरूण श्यामजी महाराज ने कहाकि जिस समय पुष्प वाटिका में भगवान राम पहुंचे तो और सीताजी देवी पूजन के लिये पहुंची तो दोनों एक दूसरे को देखकर स्तब्ध रह गये।