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लखनऊ

यूपी में लड़कियों की जान को खतरा, 45 प्रतिशत बढ़े एसिड अटैक के मामले

 एसिट अटैक के मामले तो अनगिनत है और सिर्फ यूपी में ही साल भर के अंदर इन मामलों में 45 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है।

लखनऊSep 11, 2016 / 12:06 pm

Abhishek Gupta

Acid Attack

Acid Attack

लखनऊ. एसिड अकैट के जरिए एक लड़की को जिंदा लाश जैसी हालत में छोड देने से भयावह दर्द और क्या होगा। भारत में एसिड अकैट के मामले तमाम हैं, लेकिन शायद ही किसी पीडित को न्याय मिला है। वहीं हाल ही में एसिड अटैक में प्रीति राठी की मौत के मामले में फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद ऐसे मामलों में कमी आने की उम्मीद जगी है। खासकर यूपी में जहां देश में सबसे ज्यादा एसिड अटैक की वारदातें सामने आई हैं। इस पर चर्चा करने से पहले हम आपको बताते हैं एसिड अटैक के दो भयावह मामले-

नशे में धुत पति ने पत्नी व बच्चों की जिंदगी कर दी बर्बाद
शाहजहांपुर की सबीना के पति वसीम को स्मैक की लत थी। 2014 में स्मैक के लिए पैसे लेकर पत्नी से तकरार होने पर उसने बाल्टी भर तेजाब से सो रही सबीना और तीन बच्चों को जला दिया। 3 साल के सोहैल का पैर घुटनों तक गल गया तो 4 साल की मुस्कान की रीढ़ तक नजर आने लगी। सबसे बड़ी बेटी रानी का सीना झुलस गया।

सबीना का तो आधा चेहरा अब चेहरा नहीं रहा, ठोड़ी गरदन से चिपक गई। घटना के एक साल बाद सरकार से मदद के लिए लखनऊ बुलाया गया। मजदूर पिता ने कर्ज की व्यवस्था कर लखनऊ पहुंचाया। मगर 2015 में अंतिम समय में सहायता सूची से उसका नाम हटा दिया गया। आखिरकार 2016 में मदद मिल सकी।

नाबालिग ने प्यार ठुकराया तो अधेड़ ने छीन ली रोशनी
बिजनौर के 55 साल के कपिल शर्मा ने पड़ोस की नाबालिग पर प्यार करने का दबाव डाला। बाल-बच्चेदार कपिल की घटिया सोच को भांप कर नाबालिग ने उसे दूर रहने की सलाह दी। यह कपिल को इतना नागवार गुजरा कि उसने नाबालिग को एसिड से जला दिया। पीड़िता की एक आंख की रोशनी चली गई।

दूसरी आंख की रोशनी भी कम हो गई। कहती है, ढाई साल में कई सर्जरियां हुईं, मगर मैं जानती हूं, अब पहले जैसी नहीं रहूंगी। सरकार ने उन्हें आर्थिक सहायता और इलाज की सुविधा दी है, लेकिन इलाज के चलते परिवार पर 5 लाख का कर्ज हो चुका है।

90 फीसदी मामलों में महिलाएं ही बनी शिकार
उक्त दो घटनाएं सिर्फ उदाहरण है। एसिट अटैक के मामले अनगिनत है और सिर्फ यूपी में ही साल भर के अंदर इन मामलों में 45 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2014 में जहां एसिड अटैक के 42 मामले थे वहीं 2015 में ये संख्या बढ़कर 61 हो गई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सबसे ज्यादा 90 फीसदी मामलों में महिलाएं ही शिकार बनी हैं।

प्रदेश सरकार भले ही एसिड पीड़िताओं के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता, इलाज का खर्च व अन्य सरकारी सुविधाएं दे रही हो, लेकिन इन मामलों पर कोई रोकथान नहीं हो रही और पीड़िताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

ज्यादातर एकतरफा प्रेम के चलते एसिट अटैक के मामले सामने आए हैं। इसके अलावा घरेलू हिंसा और जमीन-जायदाद के मामलों में भी गुनहगार एसिड को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते देखें गए हैं।

वर्ष 2013 में इलाहाबाद में छात्राओं से छेड़छाड़ का विरोध करने पर दो दरिंदों ने बृजरानी देवी को एसिड से जला दिया था। उनका कहना है कि एसिड फेंकने वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती है, इसलिए घटनाएं भी नहीं रूक रहीं। वे कहती हैं कि उनका गुनहगार बीरबल जमानत पर रिहा हो चुका है जबकि उसके दिए दर्द की सजा तो उन्हें जिंदगी भर काटनी है।

शामली की कमर जहां भी यही कहती हैं। कमर और उनकी दो बहनों को उनके ही समुदाय के लोगों ने सिर्फ इसलिए तेजाब से जला दिया था कि वे परिवार चलाने के लिए प्राइवेट स्कूलों में पढ़ातीं थीं। उनके गुनहगार आज तक गिरफ्तार नहीं किए जा सके हैं।

वे कहती हैं कि सरकार ने आर्थिक सहायता दी है, लेकिन समुदाय के कुछ लोग कहते हैं कि इन बहनों ने खुद ही पर तेजाब फिंकवाया। ऐसी सोच और नजरिए से मुख्यधारा में लौटने के लिए उन्हें भारी दुश्वारियों से गुजरना पड़ रहा है।
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