सत्र अदालत के समक्ष राज्य सरकार की ओर से एवं वादी की ओर से सजा बढ़ाने के लिए दाखिल अलग-अलग अपीलों पर एक साथ बहस हुई। अपर सत्र न्यायाधीश मोहिंदर कुमार के समक्ष सरकार की ओर से दाखिल अपील पर सहायक अभियोजन अधिकारी दिनेश कुमार जायसवाल एवं वादी जयराम यादव की ओर से दाखिल अपील पर अधिवक्ता आर के यादव ने अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। दोनों ही अपीलों पर जोर देकर कहा गया कि निचली अदालत द्वारा यद्यपि पूरे प्रकरण मेंअभियुक्ता सर्वेश कुमारी को दोषी करार दिया गया है परंतु उसे उसके द्वारा किए गए आरोपों के अनुसार दंडित नहीं किया गया है।
निचली अदालत की पत्रावली के अनुसार घटना की रिपोर्ट वादी जयराम यादव द्वारा 13 जुलाई 2007 कोअभियुक्ता सर्वेश कुमारी के विरुद्ध थाना विकास नगर में दर्ज कराई गई थी। थाने पर दर्ज रिपोर्ट में कहा गया था कि वादी का पुत्र कृष्णकांत यादव सेना में सिपाही/ एंबुलेंस असिस्टेंट के पद पर कार्यरत था। बहस के दौरान कहा गया कि सर्वेश कुमारी के बाबा रामस्वरूप एवं वादी दोनों ही सेना में कार्यरत थे। जिसके कारण वह लोग एक दूसरे से परिचित थे। यह भी कहा गया कि कृष्णकांत यादव का स्थानांतरण जम्मू हो गया था तथा उसे 13 जनवरी 2007 को अपनी ड्यूटी पर जाना था। लेकिन वह ड्यूटी पर जाने के पहले अपने घर विकास नगर लखनऊ आ गया।
बहस के दौरान कहा गया है कि 8 जनवरी 2007 को सर्वेश कुमारी की मदद से उसके बाबा रामस्वरूप यादव ने अपने बेटे रमेश चंद्र यादव की लाइसेंसी बंदूक से कृष्णकांत यादव की हत्या कर दी थी। जिसकी रिपोर्ट थाना गोमती नगर में लिखाई गई थी। आरोप है कि कृष्णकांत की हत्या के बाद सर्वेश कुमारी ने फर्जी दस्तावेज कूट रचित करके फर्जी विवाह प्रमाण पत्र के आधार पर कृष्णकांत की पत्नी दर्शा कर उसके स्थान पर नौकरी तथा संबंधित विभाग में उसके नाम जमा फंड, पारिवारिक लाभ, पेंशन एवं अन्य देय फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर अवैधानिक तरीके से प्राप्त करना चाहा। जिसके लिए उसने संबंधित विभाग से लाभ पाने हेतु आवेदन किया था।
सत्र अदालत के समक्ष अपील पर बहस के दौरान कहा गया कि सर्वेश कुमारी ने कृष्णकांत यादव के साथ अपनी शादी 13 जून 2006 को कम्युनिटी सेंटर सेक्टर 4 विकास नगर लखनऊ में होना दिखाया है। कहा गया है कि वादी को इसकी जानकारी 24 फरवरी 2007 को हुई तब उसने नगर आयुक्त नगर निगम लखनऊ के समक्ष एक प्रार्थना पत्र दिया। नगर निगम के अनुसार 13 जून 2006 को कम्युनिटी सेंटर सेक्टर 4 विकास नगर लखनऊ में अभिलेखों के अनुसार उस दिन किसी प्रकार की शादी का कोई आवेदन नहीं किया गया। इसी प्रकार अन्य जो प्रार्थना पत्र के साथ प्रमाण पत्र दाखिल किए गए उनमें जे पी सिंह अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग को राजपत्रित अधिकारी दिखाया गया वह भी फर्जी था। जिसकी जानकारी में आया कि जे पी से नाम का कोई भी अधिशासी अभियंता कार्यरत नहीं है।
साक्ष्य के आधार पर आरोपों की पुष्टि होने पर 22 सितंबर 2016 को विशेष अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट( अयोध्या प्रकरण) निर्भय प्रकाश ने सर्वेश कुमारी को मात्र धोखाधड़ी (धारा 420 भारतीय दंड संहिता) के अंतर्गत 5 वर्ष के कठोर कारावास एवं 5 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी। निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि जुर्माने की धनराशि अदा न करने पर उसे 15 दिन का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
दंड को कम दिए जाने का आधार लेकर दाखिल अपीलों में कहा गया है किअभियुक्ता द्वारा कूट रचित दस्तावेज तैयार कर उन्हें वास्तविक दस्तावेज के रूप में प्रयोग करके धोखाधड़ी की है । जिसके कारण उसे धारा 420 भारतीय दंड संहिता के अतिरिक्त धारा 467, 468 एवं 471 भारतीय दंड संहिता में भी दंडित किया जाना न्यायोचित है। अदालत ने दोनोंअपीलों को स्वीकार करते हैं अभियुक्ता सर्वेश कुमारी को धारा 420 भारतीय दंड संहिता के अतिरिक्त धारा 467 में 6 वर्ष का कठोर कारावास एवं 10 हजार रुपया जुर्माना, धारा 468 में 3 वर्ष का कठोर कारावास एवं 5 हजार रुपया जुर्माना तथा धारा 471 में 1 वर्ष का कठोर कारावास एवं 3 हजार रुपया जुर्माने से दंडित किया है। अदालत ने कहा है कि जुर्माने की धनराशि अदा न करने पर अभियुक्ता सर्वेश कुमारी को एक माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।