ऐशबाग की रामलीला का इतिहास 500 साल से भी अधिक पुराना है, लेकिन इसका पंजीकरण 19वीं शताब्दी में श्रीरामलीला समिति ऐशबाग के नाम से कराया गया था। पहली बार इस रामलीला का मंचन साधुओं ने किया था। इसके बाद से निरंतर हर साल रामलीला का मंचन किया जाता है। ऐशबाग रामलीला मैदान के बारे में बताया जाता है कि जब गोस्वामी तुलसीदास पूरे अवध क्षेत्र में घूम-घूमकर रामायण का पाठ करते थे। उस समय लखनऊ में वह छांछी कुंआ मंदिर या फिर ऐशबाग अखाड़े (अब रामलीला मैदान) में ही रुकते थे।
ऐशबाग की रामलीला का भव्य मंचन कमेटी और कलाकारों की कड़ी मेहनत का नतीजा होता है। 1860 में रामलीला समिति बनी। रामलीला का मंचन करने के लिए कलाकार देश के कई कोनों से आते हैं। 250 से ज्यादा कलाकार रामलीला में अभिनय करते हैं, जिसमें देश के दूसरे शहरों से 60 नामी कलाकार इस रामलीला में अभिनय करने आते हैं।
मंच पर आग लगने से गई कलाकार की जान
ऐशबाग के रामलीला के कलाकारों की तारीफ हर साल होती है। दर्शक कलाकरों के अभिनय में खो जाते हैं और मंचन करने वाले कलाकार भी उसमें खो जाते हैं। इसी कारण रामलीला के दौरान एक दुखद हादसा भी हो गया था। समिति के संयोजक पंडित आदित्य द्विवेदी के मुताबिक करीब 60 साल पहले जटायु का किरदार निभाने वाले सूरजबली अपने किरदार में इतना रम गए कि वह आग लगने पर भी मंच पर डटे रहे और उनकी जान चली गई। आज भी रामलीला शुरू होने से पहले उनको नमन किया जाता है।