अखिलेश यादव ने एक वर्ष पहले (2019) में फूलन देवी की बहन रुक्मणी देवी निषाद को पार्टी में शामिल कराया था और अब फूलन देवी की पुण्यतिथि के बहाने स्पष्ट संदेश दिया है कि आगामी चुनाव में उनकी पार्टी आक्रामक तरीके से जातीय कार्ड खेलेगी। इसी रणनीति के तहत अब सपा ने फूलन देवी के सहारे काछी, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के साथ अति पिछड़ा वोटर को साधने की कवायद शुरू कर दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव जान चुके हैं कि पिछड़ों और अतिपिछड़ों का भरपूर समर्थन मिलने के बाद ही वह यूपी की सत्ता में वापसी कर सकते हैं।
गंगा पट्टी या नदियों के किनारे बसे गांवों में निषाद, बिंद और केवट आदि जातियों की संख्या बहुत बड़ी है। फतेहपुर , प्रयागराज और मिर्जापुर से लेकर बलिया, गाजीपुर और गोरखपुर तमाम ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां चुनावी समीकरण इन्हीं जातियों के आसपास घूमता है। 2016 में निषाद पार्टी की स्थापना डॉ. संजय निषाद इसी के मददेनजर की थी। उनके बेटे प्रवीण निषाद ने उपचुनाव में सपा संग मिलकर सांसदी का चुनाव भी जीता था। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में निषाद पार्टी बीजेपी के साथ हो ली।
निषादों में 15-16 उपजातियां शामिल हैं, जिनमें केवट, मल्लाह, बिन्द, कश्यप, धीमर, मांझी, कहार, मछुआ, तुरैहा, गौड़, बाथम, मझवार, महार,जलक्षत्री, धुरिया आदि प्रमुख हैं।