लखनऊ

मुलायम की राह चले अखिलेश यादव, इस खास रणनीति से बीजेपी को देंगे मात

– Phoolan Devi के बहाने सपा की नजर अति पिछड़ा मतदाताओं पर- OBC जातियों की गोलबंदी पर पार्टी का ध्यान- Akhilesh Yadav ने पूर्व सांसद को श्रद्धांजलि अर्पित कर प्रदेशभर में किया गया याद

लखनऊJul 28, 2020 / 07:03 pm

Hariom Dwivedi

मुलायम की राह चले अखिलेश यादव, इस खास रणनीति से बीजेपी को देंगे मात

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. यूपी की राजनीति (UP POlitics) में एक बार फिर फूलन देवी (Phoolan Devi) जिंदा हो उठी हैं। तीन दिन पहले फूलन देवी की पुण्यतिथि थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने फूलन को सामंतवाद के प्रति संघर्ष का प्रतीक बताया। उन्होंने एक वृत्तचित्र भी इस मौके पर साझा किया। अब यह वृत्त चित्र सोशल मीडिया (Social Media) पर वायरल हो रहा है। गांव-गांव में इसके बहाने फूलन पर हुई ज्यादती और फिर उनके संघर्ष की कहानी को दोहराया जा रहा है। चर्चा है कि आगामी विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha 2022) में भाजपा को मात देने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अपने पिता मुलायम सिंह यादव के पदचिन्हों पर चल पड़े हैं। सूबे की जिन अति पिछड़ी जातियों के सहारे मुलायम (Mulayam Singh Yadav) सत्ता सिंहासन पर विराजमान होते रहे, उसी रणनीति से अखिलेश यूपी में साइकिल दौड़ाने की तैयारी में हैं।
25 जुलाई को फूलन देवी की पुण्यतिथि पर अखिलेश यादव न पहली बार उन्हें न केवल श्रद्धांजलि अर्पित की, बल्कि उनके जीवन पर आधारित वृत्तचित्र का प्रोमो साझा कर अति पिछड़ा समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की। इस दिन सपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश भर में फूलनदेवी को श्रद्धांजलि अर्पित कर सामंतवादियों के खिलाफ उनके संघर्ष की सराहना की। मल्लाह समुदाय से आने वाली फूलन देवी काछी, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय थीं। मौका देखकर मुलायम सिंह ने न केवल उन्हें जेल से छुड़वाया, बल्कि उन्हें वर्ष 1996 में मिर्जापुर से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़वाया। वह जीतीं और संसद पहुंची। तब से मल्लाह समुदाय और उससे जुड़ी उपजातियां समाजवादी पार्टी की परम्परागत वोटर बन गईं। 2014 के आम चुनाव से लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पिछड़ों और अति पिछड़ों के वोट के दम पर सत्ता में वापसी की। अब अखिलेश यादव की नजर पार्टी के अपने पुराने वोटबैंक पर है।
निषाद पार्टी भी बनी
अखिलेश यादव ने एक वर्ष पहले (2019) में फूलन देवी की बहन रुक्मणी देवी निषाद को पार्टी में शामिल कराया था और अब फूलन देवी की पुण्यतिथि के बहाने स्पष्ट संदेश दिया है कि आगामी चुनाव में उनकी पार्टी आक्रामक तरीके से जातीय कार्ड खेलेगी। इसी रणनीति के तहत अब सपा ने फूलन देवी के सहारे काछी, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के साथ अति पिछड़ा वोटर को साधने की कवायद शुरू कर दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव जान चुके हैं कि पिछड़ों और अतिपिछड़ों का भरपूर समर्थन मिलने के बाद ही वह यूपी की सत्ता में वापसी कर सकते हैं।
कई विधानसभा सीटों पर प्रभुत्व
गंगा पट्टी या नदियों के किनारे बसे गांवों में निषाद, बिंद और केवट आदि जातियों की संख्या बहुत बड़ी है। फतेहपुर , प्रयागराज और मिर्जापुर से लेकर बलिया, गाजीपुर और गोरखपुर तमाम ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां चुनावी समीकरण इन्हीं जातियों के आसपास घूमता है। 2016 में निषाद पार्टी की स्थापना डॉ. संजय निषाद इसी के मददेनजर की थी। उनके बेटे प्रवीण निषाद ने उपचुनाव में सपा संग मिलकर सांसदी का चुनाव भी जीता था। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में निषाद पार्टी बीजेपी के साथ हो ली।
निषादों में हैं कई उपजातियां
निषादों में 15-16 उपजातियां शामिल हैं, जिनमें केवट, मल्लाह, बिन्द, कश्यप, धीमर, मांझी, कहार, मछुआ, तुरैहा, गौड़, बाथम, मझवार, महार,जलक्षत्री, धुरिया आदि प्रमुख हैं।

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