सडक़ हादसों की वजह से हुई मौतों के इन आंकड़ों को सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के साथ साझा किया है। इन आंकड़ों से उजागर होता है कि गड्ढों के चलते उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 987 लोगों की मौते हुईं।
वर्ष 2017 में महाराष्ट्र में 726 लोगों को सडक़ पर गड्ढों होने की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी। 2016 की तुलना में महाराष्ट्र में गड्ढों के चलते होने वाली मौतों का यह आंकड़ा दोगुना रहा। इस मामले में यूपी के बाद सबसे ज्यादा खराब रिकॉर्ड हरियाणा और गुजरात का है। दिल्ली में 2017 में गड्ढों के चलते आठ लोगों की जान गई, जबकि 2016 में गड्ढों के चलते यहां एक भी इस तरह का मामला सामने नहीं आया।
रिपोर्ट के मुताबिक सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की सबसे बड़ी वजह गलत डिजाइन, खराब रख-रखाव और सडक़ समस्याओं को सुलझाने की अनदेखी भी है। दूसरे उप्र में अधिकतर सडक़ें डामर की बनती हैं जो बारिश में उधड़ जाती हैं। कांक्रीट की सडक़ें बनें तो कम हादसे होंगे और सडक़ें भी कम टूटेंगी।
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का दावा है कि योगी सरकार के गठन के तीन महीने के भीतर ही रिकॉर्ड 75 हजार किलोमीटर सडक़ों को गड्ढामुक्त कर दिया गया था। इनमें से 85 हजार किलोमीटर सडक़ गढ्ढों वाली थीं। इस तरह राज्य की 63 फीसदी सडक़ें गड्डा मुक्त हो गई थीं। पिछले साल 15 जून तक प्रदेश की सडक़ों को गड्ढामुक्त करने का लक्ष्य रखा गया था। साल 2018 तक प्रदेश की 90 प्रतिशत से अधिक की सडक़ें गड्ढामुक्त कर दी गयी हैं। प्रदेशगौरतलब है कि लोक निर्माण विभाग में दो लाख से अधिक किलोमीटर की सडक़ें हैं।
ऑल इंडिया रोड कांग्रेस के सदस्य आरके श्रीवास्तव का कहना है कि राज्य सरकार गड्ढा मुक्त सडक़ के नाम पर जनता को बे वकूफ बना रही है। डामर की सडक़ें हर बारिश में तालाब बन जाती हैं। इसलिए इनकी जगह कांक्रीट की सडक़ बननी चाहिए तभी यातायात सुगम होगा।