पिछले साल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने पर्सनल लॉ बोर्ड पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने गांव और शहरों में काजी (शरई जज) की नियुक्त पर सवाल खड़े किए थे। काजी की नियुक्ति को गैरसंवैधानिक बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। तब पर्सनल लॉ बोर्ड ने रिजवी के आरोपों का पुरजोर खंडन किया था। लेकिन, इस विरोध का असर यह हुआ कि गुरुवार को लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह में खत्म हुई बोर्ड की तीन दिनी दारुलकजा कांन्फ्रेंस में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि दारुलकजा को हर भाषा-जबान में अब दारुलकजा ही लिखा और बोला जाएगा। इसके लिए इस्लामी अदालत या फिर शरई अदालत जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं होगा। इसके अलावा मदरसों में कजा व इफ्ता के पाठ्यक्रमों में भारत के संविधान के वे अनुच्छेद जिनका सीधा संबंध मुसलमानों से है उसको शामिल किया जाएगा।
दारुलकजा के बारे में क्या हैं मौलाना
बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी के मुताबिक दारुलकजा काउंसलिंग के जरिए पारिवारिक मामलों को हल करने का काम कर रहा है। यह कोई कोर्ट नहीं है। यहां किसी भी तरह के फौजदारी मामले नहीं लिए जाते। दारुलकजा कमेटी के संयोजक मौलाना काजी अतीक अहमद ने बताया कि हमारे देश में हर दौर में कजा का निजाम रहा है। गैर मुस्लिम राजाओं ने काजियो की कानूनी हैसियत को स्वीकार किया और माना था। पर्सनल लॉ पर अमल करने का हक आजाद हिंदुस्तान में मुस्लिमों को मिला हुआ है। ईदगाह के मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली के अनुसार दारुलकजा मुस्लिम समाज की बुराइयों को दूर करने का जरिया भर है। यहां 90 प्रतिशत महिलाएं अपने मामले ला रही हैं और कम खर्च में, कम समय में न्याय पा रही हैं।
विरोध की वजह
शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के मुताबिक जिस मुल्क में शरीयत के तहत इस्लामिक हुकूमत होती है, वहां की हुकूमत ही काजी नियुक्त करती है। हिंदुस्तान में शरईया हुकूमत नहीं बल्कि भारत का संविधान है जिसे सभी धर्म के लोग फॉलो करते हैं। लिहाजा, यहां काजी नियुक्त किया जाना गैर संवैधानिक है। इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
दारुलकजा पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट
पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक देशभर में 80 से ज्यादा शरई अदालतें चल रही हैं। मुसलमान काजी की मदद से अपने दीनी मामले यहां हल करते हैं। बहरहाल, शरई अदालतों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करने वाली एक याचिका उच्चतम न्यायालय में सितंबर 2018 में स्वीकार की गयी थी। अभी इस पर फैसला आना बाकी है। मालूम हो कि शरीयत का अरबी शब्द है। जिसका मतलब होता है इस्लामिक कानून। या यूं कहें कि शरीयत मोटे तौर पर कुरान और पैंगबर साहब की बतायी बातों पर आधारित है जिसे हदीस कहते हैं। दारुल कजा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 7 जुलाई 1914 को एक फैसला सुनाया था जिसमें कहा था कि यह कोई अदालत नहीं है। यह एक तरह से बीच बचाव काउंसलिंग केंद्र है। इसके आदेश की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।