पिता ने बताया कि कैसे हुई घटना बच्ची के पिता मुन्ना ने घटना की
report 5 सितम्बर 2012 को लखनउ के मोहनलालगंज थाने पर Report लिखायी थी। रिपेर्ट में पिता ने कहा था कि उसकी बेटी एक दिन पहले शाम को शौच के लिए अकेली घर से निकली थी। जब वह काफी देर तक नहीं लौटी तो वे सब उसे ढूढ़ने निकले परंतु वह नहीं मिली। अगले दिन उसका नग्न शव एक खेत में मिला । शव की दशा से ही लग रहा था कि उसके रेप किया गया है और उसके बाद उसे मारा गया है। पिता ने अपनी Report में किसी को नामजद नहीं किया था।बाद में पुतई व दिलीप के आचरण से मृतक बच्ची व पुलिस को शक हुआ तो जाचं की दिशा उस दिशा में गयी । तब पता चला कि रात में जब बच्ची शौच के लिए गयी थी तो वहीं पास मे मचान में बैठकर खेत की रखवाली करने वाले पुतई ने दिलीप के साथ मिलकर पहले उसका गैंग रेप किया और बाद में पुतई ने उसका गला घोंटकर उसे मार डाला । बाद में उसकी लाश दूसरे के खेत में फेंक दी ।
गवाह ने दी गवाही विवेचना के दौरान घटना स्थल पर पायी गयी एक कंघी को डाग स्क्वायड सूंघते हुए दिलीप के घर पहुचां । वहीं गांव के ही एक गवाह ने पुतई को घटनास्थल से आते हुए देखा था। विचारण के बाद अपर सत्र न्यायालय कोर्ट नंबर 13 लखनऊ ने पुतई को रेप और हत्या का दोषी पाकर उसे फांसी की सजा सुनायी थी और सीआरपीसी की धारा 366 के तहत फांसी की सजा पर मुहर लगाने के लिए मामला हाई कोर्ट के संदर्भित कर दिया था। गौरतलब हो कि बिना हाई कोर्ट से कन्फर्म हुए सत्र अदालत द्वारा सुनायी गयी किसी भी फांसी की सजा पर अमल नहीं किया जा सकता है। सत्र अदालत ने पुतई के साथ रेप करने का दोषी पाकर दिलीप को उम्र कैद की सजा सुनायी थी। उधर देनें ने अपनी अपनी सजा को अपीलें दायर कर हाई केर्ट में चुनौती दे रखी थी।
संदर्भ एवं अपीलों पर एक साथ फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने सदंर्भ मंजूर कर लिया और दोनों अपीलें खारिज कर दीं। court ने शासकीय अधिवक्ता विमल कुमार श्रीवास्तव के तर्के के स्वीकार करते हुए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित इस केस पर अपना फैसला सुनाया। श्रीवास्तव ने कई दिन चली अपनी बहस में पुतई व दिलीप के वकीलों के तर्को को धाराशायी कर दिया कि अपीलार्थी निर्दोष हैं।