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बच्चे को गोद लेने के लिए जैविक पिता की अनुमति जरूरी नहीं : हाईकोर्ट

locationलखनऊPublished: Oct 07, 2017 10:11:02 am

हाईकोर्ट के अनुसार बच्चे की मां ने कोर्ट से मांग की कि उसके बच्चे को उसके दूसरे पति को गोद लेने की अनुमति दे दी जाए।

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लखनऊ. अब बच्चे को गोद लेने के लिए जैविक पिता की अनुमति जरूरी नहीं होंगी। मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट के अनुसार बच्चे की मां ने कोर्ट से मांग की कि उसके बच्चे को उसके दूसरे पति को गोद लेने की अनुमति दे दी जाए। जिसमें बच्चे का हित निहित है। लेकिन मामले में निचली अदालत ने अनुमति देने से इंकार कर दिया था। निचली कोर्ट का यह कहना था कि बिना जैविक पिता की अनुमति के बच्चे को दूसरे पिता को गोद नहीं दिया जा सकता। लेकिन जब यह मामला हाईकोर्ट के जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय के सामने यह तो उन्होंने बच्चे के हित को देखते हुए मौजूदा कानून की व्याख्या इस प्रकार की कि उससे बच्चे का हित हो।


जस्टिस उपाध्याय ने कानून की लकीर को पकड़ कर चलने से इतर उसकी व्याख्या की और बच्चे को बिना जैविक पिता की सहमति ही दूसरे पिता को गोद देने की अनुमति बच्चे की मां को दे दी। कोर्ट के अनुसार मां और गोद लेने वाले दूसरे पिता के बीच बच्चे को गोद लेने के समारोह के आयोजन के बाद बाकायदा उसकी लिखा-पढ़ी की जाए।

बता दें कि अनुपमा गुप्ता (परिवर्तित नाम) की शादी 15 जून 2006 को राहुल गुप्ता (परिवर्तित नाम) के साथ हिन्दू रीति रिवाज से हुई। दोनों के मेल से 17 सितंबर 2009 को मास्टर अपूर्व (परिवर्तित नाम) का जन्म हुआ। इस बीच पति पत्नी के बीच अनबन शुरू हो गई। अंततः 27 मई 2015 को दोनों के बीच आपसी सहमति से तलाक हो गया।

तलाक के समय दिए शपथपत्र में जैविक पिता राहुल गुप्ता ने कहा कि वह बच्चे को नहीं रखना चाहता और यह कि बच्चे की पूरी जिम्मेदारी मां अनुपमा ही निभाएगी। यहां तक जैविक पिता राहुल ने बच्चे को जन्म से कभी देखा भी नहीं। तलाक के बाद अनुपमा ने आईआईटी रूड़की से इंजीनियर और ऑस्ट्रेलिया में कार्यरत संजय नाम (परिवर्तित नाम) से 31 जुलाई 2016 को विवाह कर लिया।

संजय का भी अपनी पहली पत्नी से तलाक हो गया था और उसकी कोई संतान नहीं थी। दूसरे विवाह के बाद मां अनुपमा ने लखनऊ की एक अदालत में अर्जी देकर बच्चे को दूसरे पिता संजय को कानूनन गोद देने की अनुमति मांगी। जिससे कि बच्चे का भविष्य अच्छा बन सके। लेकिन, अदालत ने हिन्दू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम की धारा 9 के उपबंधों को हवाला देकर कि बिना जैविक पिता की अनुमति के बच्चे को गोद नहीं दिया जा सकता।

3 जुलाई 2017 केा मां की अर्जी खारिज कर दी। जिससे पीड़ित होकर मां ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने यचिका को मंजूर कर लिया। कोर्ट ने कहा कि वास्तव में समझा जाए तो जिस पिता ने अपने बच्चे मास्टर अपूर्व को कभी देखा तक न हो तो यह स्पष्ट है कि उसने उसे परित्यक्त कर दिया है। ऐसे में बच्चे के हित के मद्देनजर मां अकेले उसे दूसरे पिता को गोद देने की हकदार है।

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