लखनऊ

चाय पार्टी में होता है जजों का सेलेक्शन, जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने PM मोदी को लिखी हैरान करने वाली चिट्ठी

– इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने रंगनाथ पांडेय PM मोदी को लिखा पत्र
– न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद व जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त
– चाय की दावत में वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी से जजों की नियुक्ति का लगाया आरोप
– अधिवक्ताओं (वकीलों) के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं

लखनऊJul 03, 2019 / 02:08 pm

नितिन श्रीवास्तव

चाय पार्टी में होता है जजों का सेलेक्शन, जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने PM मोदी को लिखी हैरान करने वाली चिट्ठी

लखनऊ. न्यायिक जवाबदेही पर तमाम चर्चाओं के बीच मद्रास हाईकोर्ट के जज जीआर स्वामीनाथन ने अपने कामकाज का रिपोर्टकार्ड जारी करते हुए अपनी उपलब्धियां और नाकामी गिनाईं, तो उनके इस कदम की देश में चर्चा शुरू हो गई। लेकिन इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के न्यायाधीश ने जजों की नियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक खत लिखकर बहस को नया रुख दे दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस और प्रमुख सचिव न्याय रह चुके रंगनाथ पांडेय (Justice Rangnath Pandey) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र लिखकर एक गंभीर मामले की शिकायत की है। पीएम को लिखे खत में उन्‍होंने हाईकोर्ट (High Court) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जजों की नियुक्ति पर हावी वंशवाद और जातिवाद के का मुद्दा उठाया है। जस्टिस रंगनाथ पांडे ने लिखा है कि तीन स्‍तंभों में से सबसे ज्यादा महत्‍वपूर्ण न्‍यायपालिका इन दिनों वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्‍त है। जिसके चलते देश की न्याय व्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंच रहा है। जज रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को लिखे खत में न्यायपालिका को वंशवाद व जातिवाद से मुक्ति दिलाने की दिशा में कड़े कदम उठा जाने की मांग की है।


परिवारवाद और भाई-भतीजावाद ही अकेला मापदंड

जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने पत्र में लिखा है कि न्‍यायाधीशों के परिवार का सदस्‍य होना ही अगला न्‍यायाधीश होना सुनिश्चित माना जाता है। उनका कहना कि कई प्रतियोगी परीक्षाओं में अनेक मापदंड हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में ऐसी कोई कसौटी निश्चित नहीं की गई है। यहां केवल परिवारवाद और भाई-भतीजावाद ही अकेला मापदंड निर्धारित किया गया है। जस्टिस पांडेय ने पत्र में लिखा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर किया जाता रहा है।

 

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जस्टिस पांडेय के पत्र में लिखी ये बातें…

जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को भेजे खत में लिखा है कि न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद व जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त है। यहां न्यायधीशों के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है। राजनीतिक कार्यकर्ता का मूल्यांकन उसके कार्य के आधार पर चुनावों में जनता के द्वारा किया जाता है। प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होता है। अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों को भी प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्यता सिद्ध कर ही चयनित होने का अवसर मिलता है। लेकिन हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति का हमारे पास कोई मापदंड नहीं है।


नहीं है संतोषजनक जानकारी

पत्र में उन्होंने लिखा है कि 34 साल के सेवाकाल में उन्हें कई बार हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों को देखने का अवसर मिला। उनका विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं है।’ पीएम को भेजे पत्र में जस्टिस ने लिखा है कि जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग (एनजेएसी) की स्थापना का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था। जस्टिस ने बीते साल में हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद व अन्य मामलों का हवाला देते हुए लिखा है कि न्यायपालिका की गुणवत्ता व अक्षुण्णता लगातार संकट की स्थिति में है। उन्होंने पीएम से गुजारिश की है कि न्यायपालिका की गरिमा को पुर्नस्थापित करने के लिए न्याय संगत कठोर निर्णय लिए जाएं। उन्होंने आगे लिखा कि कई न्यायधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान व अध्ययन तक उपलब्ध नहीं था। कई अधिवक्ताओं (वकीलों) के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं है। कलीजियम के सदस्यों के पसंदीदा होने की योग्यता के आधार पर न्यायाधीश नियुक्ति कर दिए जाते हैं। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।


चाय पीते-पीते फाइनल होते हैं जज

जस्टिस पाण्डेय ने पत्र में आगे लिखा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर किया जाता रहा है। इस प्रक्रिया में गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है। प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा करने जैसी है। न्यायिक चयन आयोग के स्थापित होने से न्यायाधीशों को अपने पारिवारिक सदस्यों की नियुक्ति करने में बाधा आने की संभावना बलवती हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट की इस विषय में अति सक्रियता हम सभी के लिए आंख खोलने वाला प्रकरण सिद्ध होता है।

 

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