ताकि प्रदेश को न हो जल संकट का सामना
अभी तक अटल भूजल योजना उत्तर प्रदेश के 10 जिलों तक सीमित थी, लेकिन योगी सरकार प्रदेश में भूजल के गिरते स्तर को देखते हुए इसे पूरे यूपी में लागू करने पर काम कर रही थी। अब इसे यूपी के बाकी 65 जिलों में भी लागू करने का फैसला किया गया है। योजना के तहत सरकार जहां जल संरक्षण पर जोर देगी और इसके नए उपाय करेगी वहीं खेत की सिंचाई में लगने वाले पानी के लिये भी वैकल्पिक स्रोत तलाशे जाएंगे, ताकि आने वाले समय में प्रदेश को जल संकट जैसी भयावाह स्थिति का सामना न करना पड़े।
पानी बचाने और सहेजने की कवायद
योजना के तहत इसकी शुरुआत बेसलाइन सर्वे के साथ होगी, जिसमें जिलों के भूजल स्तर का विस्तृत अध्ययन होगा। हर ब्लाॅक में ऐसे पाॅजीमीटर बनाए जाएंगे जो डिजिटल वाटर लेवल रिकाॅर्डर से लैस होंगे। इनसे टेलीमेट्री के जरिये रियल टाइम ग्राउंड वाटर लेवल का पता लगाया जा सकेगा। इसके जरिये पिछले पांच सालों के ग्राउंड वाटर लेवल का आंकलन किया जाएगा। भूजल अध्ययन के लिये एक बड़ा माॅनिटरिंग नेटवर्क विकसित किया जाएगा। जल संचयन और प्रबंधन पर विशेष फोकस होगा।
भूजल स्तर पर निर्भरता बढ़ी
उत्तर प्रदेश में जल संपदा से परिपूर्ण राज्य रहा है। हालांकि तेजी से बढ़ती आबादी और खेती की जरूरतों के चलते लगातार हुए भूजल दोहन के चलते प्रदेश में भूमिगत जल स्तर में गंभीर गिरावट देखी गई। वैकल्पिक जल स्रोतों के धीरे-धीरे समाप्त होने के चलते यह संकट और बढ़ता गया है। सरकारी रिपोर्ट की मानें तो सूबे में भूजल पर निर्भरता काफी बढ़ चुकी है। नमामि गंगे और ग्रामीण जलापूर्ति विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी सिंचाई, 80 फीसदी पेयजल और औद्योगिक क्षेत्र की जरूरतों के लिये 85 प्रतिशत निर्भरता भूजल पर ही है।
चिंतित करने वाले भूजल स्तर के आंकड़े
भूजल संसाधन आंकलन 2017 के आंकड़े भूजल स्तर की चिंता को और बढ़ाने वाले थे। इसमें जहां सन 2000 तक प्रदेश में भूजल सुरक्षित विकास खंडों की संख्या 745 थी वहीं 2017 में यह तेजी से घटकर 540 क जा पहुंची। यूपी के 82 विकास खंड अतिदोहित, जबकि 47 क्रिटिकल और 151 विकास खंड सेमीक्रिटिकल की श्रेणि में दर्ज किय गए। 2017 के भूजल संसाधन आंकलन में पहली बार राजधानी लखनऊ समेत अलीगढ़, मुरादाबाद, गाजियाबाद, मेरठ, बरेली, वाराणसी, प्रयागराज और कानपुर अतिदोहित दर्ज किए गए हैं, जबकि आगरा को क्रिटिकल श्रेणी में रखा गया है।