लखनऊ ,माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत के समान होता है। माँ का दूध शिशु की सभी पोषक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। आधुनिक विज्ञान व तकनीकि ऐसा कोई भी खाद्य उत्पाद का निर्माण नहीं कर पाया है जो कि माँ के दूध से बेहतर हो। माँ का दूध सुपाच्य होता है, उसमें प्रोटीन अधिक घुलनशील रूप में होता है जो कि शिशु के द्वारा असानी से अवशोषित व पचाया जाता है।
इसी प्रकार से वसा व कैल्शियम भी आसानी से अवशोषित हो जाता है। माँ के दूध में उपलब्ध शर्करा – लेक्टोस उर्जा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त इसका एक भाग आंत में लैक्टिक एसिड में परिवर्तित हो जाता है जो कि वहां पर उपस्थित हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है व कैल्शियम व अन्य खनिज पदार्थों के अवशोषण में मदद करता है। माँ के दूध में उपलब्ध विटामिन सी, विटामिन ए व थायमिन की मात्रा माँ द्वारा लिया जा रहे पोषण पर निर्भर करती है। सामान्य परिस्थतियों में माँ के दूध में उचित मात्रा में विटामिन्स होते हैं।
क्या डिब्बे का दूध माँ के दूध की जगह ले सकता है डिब्बे का दूध माँ के दूध की कभी भी बराबरी नहीं कर सकता है। माँ का दूध ही बच्चे के लिए सबसे अच्छा होता है।
किन परिस्थियों में स्तनपान के स्थान पर शिशु आहार दिया जा सकता है
• अगर माँ की मृत्यु हो गयी हो।
• अगर माँ एच॰आई॰वी॰/एड्स से पीड़ित हो।
• किसी कारण से शिशु को स्तनपान न करा पा रही हो।
• यदि शिशु परित्यक्त या गोद लिया हुआ हो।
• अगर माँ की मृत्यु हो गयी हो।
• अगर माँ एच॰आई॰वी॰/एड्स से पीड़ित हो।
• किसी कारण से शिशु को स्तनपान न करा पा रही हो।
• यदि शिशु परित्यक्त या गोद लिया हुआ हो।
अगर डिब्बे वाला दूध लाभदायक नही है तो इसको रोकने के लिए शासन ने क्या कदम उठाये हैं माँ के दूध के स्थान पर डिब्बा बंद पाउडर बनाने वाली कंपनियों ने विज्ञापन द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश करी। इससे स्तनपान और पूरक आहार का महत्व समाज में घटता गय। इसलिए भारत सरकार ने 1992 में शिशु दुग्धाहार विकल्प, दुग्धपान बॉटल एवं शिशु आहार( उत्पादन आपूर्ति, एवं वितरण का नियमन ) अधिनियम, 1992 पारित किया गया जो कि 1 अगस्त 1993 को लागू किया गया तथा 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
अधिनियम की विशेषताएं
• 2 साल से कम आयु के बच्चों को तैयार किये गए डिब्बा बंद अन्न पदार्थ का विज्ञापन या प्रोत्साहन देने पर पाबन्दी है।
• किसी भी प्रसार माध्यम से माँ के दूध का पर्याय समझाकर डिब्बा बंद पाउडर का प्रचार वर्जित है।
• प्रसव पूर्व देखभाल और शिशु आहार के सम्बन्ध में शैक्षणिक सामग्री विज्ञापन हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गए हैं।
• माँ और स्वास्थय सेवक की भेंट, वस्तु या अन्न पदार्थ के मुफ्त नमूने देने को वर्जित किया गया है।
• शैक्षणिक साहित्य और बाल आहार के डिब्बे को सैंपल या डोनेशन के रूप में देने पर पाबंदी है।
• बाल आहार के डिब्बों पर बच्चों या माँ के चित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• स्वास्थय संस्था को किसी भी प्रकार का डोनेशन देने के लिए इन कंपनियों पर पाबंदी है।
• इस प्रकार की सामग्री की बिक्री के लिए कर्मचारियों को कोई भी प्रोत्साहन रुपी रकम पर पाबन्दी लगायी गयी है।
• सभी शिशु दुग्ध विकल्प व Feeding Bottles पर यदि इंग्लिश में कहना चाहते हैं तथा स्थानीय भाषा में लिखा होना चाहिए कि “स्तनपान सर्वोत्तम है।
• लेबल्स पर किसी भी महिला, शिशु व ऐसे की भी वाक्य का प्रयोग नहीं करना जो कि एस प्रकार के उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देते हों।
• पोस्टर्स के द्वारा विज्ञापन पर मनाही।
• 2 साल से कम आयु के बच्चों को तैयार किये गए डिब्बा बंद अन्न पदार्थ का विज्ञापन या प्रोत्साहन देने पर पाबन्दी है।
• किसी भी प्रसार माध्यम से माँ के दूध का पर्याय समझाकर डिब्बा बंद पाउडर का प्रचार वर्जित है।
• प्रसव पूर्व देखभाल और शिशु आहार के सम्बन्ध में शैक्षणिक सामग्री विज्ञापन हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गए हैं।
• माँ और स्वास्थय सेवक की भेंट, वस्तु या अन्न पदार्थ के मुफ्त नमूने देने को वर्जित किया गया है।
• शैक्षणिक साहित्य और बाल आहार के डिब्बे को सैंपल या डोनेशन के रूप में देने पर पाबंदी है।
• बाल आहार के डिब्बों पर बच्चों या माँ के चित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• स्वास्थय संस्था को किसी भी प्रकार का डोनेशन देने के लिए इन कंपनियों पर पाबंदी है।
• इस प्रकार की सामग्री की बिक्री के लिए कर्मचारियों को कोई भी प्रोत्साहन रुपी रकम पर पाबन्दी लगायी गयी है।
• सभी शिशु दुग्ध विकल्प व Feeding Bottles पर यदि इंग्लिश में कहना चाहते हैं तथा स्थानीय भाषा में लिखा होना चाहिए कि “स्तनपान सर्वोत्तम है।
• लेबल्स पर किसी भी महिला, शिशु व ऐसे की भी वाक्य का प्रयोग नहीं करना जो कि एस प्रकार के उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देते हों।
• पोस्टर्स के द्वारा विज्ञापन पर मनाही।
अधिनियम का उल्लंघन प्रावधान का उल्लंघन करने पर न्यूनतम 6 माह से लेकर अधिकतम 2 साल तक की जेल व न्यूनतम 2000 रुपये से लेकर अधिकतम 5000 रुपये तक का जुर्माना। इस सम्बन्ध में अवन्तीबाई अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि “ माँ के दूध के अलावा कोई भी ऊपरी प्रोडक्ट, डिब्बे का दूध या वस्तु 6 माह से नीचे के बच्चों को नहीं दें। कोई भी निजी कंपनी से गिफ्ट आदि लेने से बचें। डॉक्टरों से अपील है कि अपने क्लिनिक या चैम्बर के बाहर अन्दर ऐसा कोई भी प्रचार न करे जिससे टॉप फीडिंग से सम्बंधित निजी उत्पादों को प्रोत्साहन मिले।