अपने स्वतंत्रता सेनानी पति आदित्य की प्रतीक्षा करती इस उसकी कल्पना में है कि इन्कलाब जिंदाबाद के नारों के बीच, भीड़ से घिरे आदित्य को पुलिस ससम्मान घर लेकर आएगी। किंतु शाम होते-होते जेल में यातनाओं से टूटा और तपेदिक से ग्रसित आदित्य अकेला घर पहुंचता है। घर पहुंच कर आदित्य अपने पुत्र प्रकाश को भी एक वीर स्वतंत्रता सैनानी बनाने का वचन लेकर करुणा की बांहों में संसार त्याग देता है।
बड़ा होकर प्रकाश यूं तो एक कुशाग्र एवं मां से स्नेह करने वाला पुत्र है किंतु देश सेवा एवं सामाजिक कार्यों में उसकी कोई रुचि नहीं होती। यहां तक कि वो मां की इच्छाओं के विरुद्ध, अंग्रेजी सरकार के वजीफे पर, उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत भी चला जाता है। पुत्र की इस अवहेलना और जीवन के संघर्षों से व्यथित करुणा धीरे-धीरे टूटती चली जाती है। प्रकाश को पति की आशाओं व वचन के अनुरूप न ढाल सकने से आहत करुणा, अपने को आदित्य का दोषी मान प्रकाश से अपने सारे संबंध तोड़ लेती है।
यहां तक कि उसके द्वारा भेजे पत्रों को भी बिना पढ़े फाड़कर फेंक देती है। किन्तु पुत्र प्रेम से विचलित करुणा एक रात प्रकाश के फाड़े हुए पत्र को जोड़ने का प्रयास करते-करते सो जाती है। स्वप्न में वह उसको मजिस्ट्रेट के रुप में अंग्रेजी सरकार से विद्रोह के आरोप में अपने पिता को मृत्युदंड सुनाते हुये देखती है। इस भयानक स्वप्न से आहत करुंणा चीखकर उठ बैठती है और रात भर में जोड़े हुए पत्र को पुनः फाड़कर अपने पुत्र को मृत्यु दण्ड सुनाती है।