भारतेन्दु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष रविशंकर खरे ने कहा कि ऐसी बैठकी में सम्मिलित होना उनके लिए सुखद अनुभूति है। संस्थान के अध्यक्ष केवल कुमार ने कहा कि फाग की गायन शैली में वैविध्य है और यह दीर्घकाल से लोगों की कंठहार रही है। डेढ़ ताल, चौताल, आड़ा चौताल आदि पारम्परिक फाग को संरक्षित करने, नये कलाकारों को मंच प्रदान करने के उद्देश्य से संस्थान द्वारा होली संगीत बैठकी की श्रृंखला आरंभ की गई और लोगों ने उत्साहपूर्वक इसमें प्रतिभाग किया।
लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने कहा कि बसन्त पंचमी से शीतलाष्टमी तक कुल चालीस दिन तक फगुवा गाने की परम्परा रही है। इस बार हम लोगों ने अवधविद् योगेश प्रवीन के आवास समेत लखनऊ के विभिन्न क्षेत्रों में चिन्हित बीस स्थानों पर होरी संगीत बैठकी की। अगले वर्ष होरियारों की अलग अलग टोलियां बनाकर चालीस दिनों तक लगातार फाग गायकी परम्परा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया जायेगा।
बैठकी में होरी विरह गीत ‘नन्दलाल बिना कैसे खेलूं मैं होली, ऐसी होली में लग जाए आग’, ‘फगुनवा में रंग रसे रसे बरसे’, ‘खेलें मसाने में होरी दिगम्बर’, ‘बाबा काशी विश्वनाथ गौरा संग खेलत होली’, ‘होली खेलें सियाराम अवध मा’, ‘आज बिरज में होरी रे रसिया’, ‘मोर खोय गयो बाजूबंद होरी में’ जैसे गीतों पर लोग झूम उठे। जगदीश शर्मा ने मनोहारी भाव नृत्य प्रस्तुत किया।