अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट 8 फरवरी दिन बुधवार को फाइनल सुनवाई हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों ने मिलकर अयोध्या विवाद की सुनवाई की। जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा बेंच की अध्यक्षता सम्भाली और कहा कि इस मुद्दे को एक जमीनी विवाद की तरह देखा जाए। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को 2 सप्ताह में सभी दस्तावेज तैयार करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही सुनवाई की तारीख को बढ़ाकर 14 मार्च कर दिया है और यह भी कहा है कि पिछले 7 सालों से लंबित इस मामले को और अब नहीं टाला जाएगा। इसके साथ ही 8 फरवरी से पहले सभी पक्ष अनुवाद, आपस में उनके लेन-देन की प्रक्रिया पूरी कर लेने के निर्देश दिए हैं।
अयोध्या विवाद के जड़ की शुरूआत तब हुई थी जब 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा की इजाजत देते हुए कोर्ट ने ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया था। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया था। 06 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं द्वारा विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भडक़ाए गए थे, जिसमें करीब 2,000 ज्यादा लोग मारे गए थे।
भगवान रामलला विराजमान के नाम से किया गया मुकदमा
सन 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुसलमानों और हिंदुओं को अलग अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दी। फिर सन 1885 में यह मामला पहली बार अदालत पहुंचा महंत रघुवर दास ने फैजाबाद अदालत ने मंदिर के निर्माण के लिए अपील दायर की तथा 5 दिसंबर 1950 को महंत परमहंस रामचंद्र दास ने बाबरी मस्जिद में राम मूर्ति रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया फिर 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दी और दोबारा ताला खोले गए तथा 1 जुलाई 1989 को इस मामले में भगवान रामलला विराजमान के नाम से एक मुकदमा किया गया यह पांचवा मुकदमा था।
आडवाणी ने निकाली थी रथ यात्रा
25 दिसंबर 1990 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात से सोमनाथ उत्तर प्रदेश तक अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली 6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचा दिया इसके बाद देश के तमाम हिस्सों में तनाव फैल गया तथा 16 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने की जिम्मेदारियों की जांच के लिए दान आयोग का गठन किया गया तथा जनवरी 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अपने कार्यालय में अयोध्या को शुरू किया। सन 2002 में अयोध्या में शिला दान का कार्य क्रम रखा जो की यह शिला दान राम जन्मभूमि तक न पहुंचकर दिगंबर आखाड़े में ही किया गया।
अप्रैल 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की तथा सितंबर 2003 में एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले 7 हिंदुओं नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए जुलाई 2009 में लिब्रहान आयोग ने एक गठन के करीब 17 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी 28 सितंबर 2010 में सर्वोच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज की 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा एक हिस्सा राम मंदिर दूसरा तीसरा निर्मोही अखाड़ा को मिला।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
9 मई 2011 को इस मामले में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के आदेश दिए उसके बाद जुलाई 2016 को बाबरी मामले से सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का पंचानवे साल की उम्र में निधन हो गया वह थे 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति के विवाद सुलझाने की बातचीत के बाद दोनों तरफ से शुरू हुई अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में कई नेताओं के खिलाफ अपराध चलाने का आदेश दिया 11, 2017 को सुप्रीम कोर्ट से जुड़े सभी को अंग्रेजी में अनुवाद करने के आदेश दिए।
दीवानी अपीलों को 2019 के चुनाव बाद रखा जाए।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं- कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने पिछली सुनवाई को दलील दी थी कि अयोध्या विवाद में 30 सितम्बर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा तथा रामलला के बीच बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। दीवानी अपीलों को या तो पांच या सात न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा जाए या इसे इसकी संवेदनशील प्रकृति तथा देश के धर्म निरपेक्ष ताने-बाने और लोकतंत्र पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए 2019 के चुनाव बाद के लिए रखा जाए। इसके खिलाफ 14 पक्षकारों ने शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर की है।