पढ़ी-लिखी महंत लखनऊ की एकमात्र महिला महंत देव्यागिरी घर से निकली थीं मुंबई जाकर पढ़ाई करने और कारोबार करने के लिए। लेकिन, वह लखनऊ की एक बड़ी मंदिर की महिला महंत बन गईं। इनकी कहानी बड़ी रोचक है। वह बाराबंकी में पैदा हुईं। वही पढ़ाई-लिखाई की। वह बताती हैं कि उनके मन में शुरू से ही था कि कुछ अलग करूं । ताकि,सबका हित पूरा किया जा सके। कोई दुखी न रहे। सबका सम्मान हो। इसी सोच के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई और कारोबार जमाने के लिए मुंबई जाने की सोची। क्योंकि, मन में यही भाव था कि मुंबई ही ऐसी जगह है जहां कुछ अलग कार्य किया जा सकता है। वह ‘पैथालॉजिस्ट’ बन कर अपनी ‘पैथालॉजी’ खोलना चाहती थीं। इसीलिए मुंबई जाना चाहती थीं।
भोले बाबा के दर्शन ने बदल दी दिशा
भोले बाबा के दर्शन ने बदल दी दिशा
महंत देव्यागिरी ने बताया कि जब उन्होंने पैथालॉजिस्ट की पढ़ाई पूरी की और मुंबई जाने को तैयार हुईं, तभी मन में ख्याल आया कि क्यों न एक बार भोले बाबा के दर्शन कर सफर शुरू करें। इसलिए वह राजधानी लखनऊ के सबसे पुराने मंदिर मनकामेश्वर पहुंचीं। यहां जब उन्होंने शिवलिंग के दर्शन किए तब उस समय कुछ देर के लिए उनके सामने अंधेरा छा गया। वह बताती हैं कि सब कुछ शून्य सा हो गया। अंदर से एक आवाज आयी। कहीं नहीं जाना। यही रहना है। बस उस दिन से वह बाबा की शरण में आ गयीं। इसके बाद तो उनकी पूरी दुनिया ही बदल गयी।
सहना पड़ा विरोध मंहत ने बताया कि कोई भी महिला जब समाज में कुछ भी नया करना चाहती है तब उसे सपोर्ट देने के लिए कोई आगे नहीं आता। बहुत ही कम लोग हैं जो महिलाओं को उनके कार्य के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे कहती हैं मैं भी उसी श्रेणी में आती हूं। महिला हूं और उस पर भी महंत। इसको लेकर मेरा भी बहुत विरोध हुआ। हमें क्या-क्या नहीं कहा गया। लेकिन, उन्होंने किसी की बातों की परवाह नहीं की। सिर्फ अपना कर्म करती रहीं। वे कहती हंै मैं आगे भी मानव सेवा का कार्य करती रहूंगी। क्योंकि, कहावत है कि ‘कांटे बिछे हैं राहो में, बच-बच के निकलना है। मंजिल दूर नहीं हैं, लेकिन गुजरना कांटो से है।
अपनी पहचान बनाएं और आगे बढ़ें वे कहती हैं कि मेरा हर महिला से यही कहना है कि वह अपनी शक्ति को पहचाने और आगे बढ़े। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ेगीं,जितने भी लोग बुरा कहते हैं वे सब साथ देने के लिए आगे आते जाएंगे। शास्त्रों में भी लिखा है कि जहां महिला का सम्मान नहीं होता वहां भगवान का वास नहीं होता। वैसे भी महिला हर हाल में खुश रहती है और सबको खुश रखती है। इसलिए खुश रहें। महिलाओं का सम्मान करें। अपने कर्म में मन लगाकर करें। सफलता अवश्य मिलेगी।
उन्होंने बतायाकि महिला जब समाज में कुछ भी करना चाहती हैं उसको स्पोर्ट देने के लिए कोई नहीं आता बहुत ही कम लोग ही होंगे जो महिलाओं को उनके कार्य के लिए प्रोत्साहित करते होंगे उसी श्रेणी में मैं भी आती हूँ महिला हूँ और उस पर महंत , मेरा भी बहुत विरोध हुआ , क्या क्या नहीं कहा गया मैंने किसी की बातो की परवाह नहीं कि सिर्फ अपना कर्म किया है और वही आगे भी करती रहूँगी क्योकि इतना तो जान चुकी हूँ कि ‘काटे बिछे है राहो में बच बच के निकलना हैं मंजिल दूर नहीं हैं लेकिन गुजरना काटो से हैं ‘
इसीलिए मेरा हर महिला से यही कहना हैंकि वो अपनी शक्ति को पहचाने और आगे बढे जैसे जैसे वो आगे बढ़ेगी उसके जो लोग बुरा कहते हैं वो अपने आप ही उसका साथ देने के लिए आगे आएंगे | हमारे शास्त्रों लिखा है कि जहा पर महिला का सम्मान नहीं होता वहाँ भगवान का वास नहीं होता इसलिए महिला हर हाल में भी खुश रहती हैं और सबको खुश रखती हैं