लखनऊ

लोकसभा चुनाव- भाजपा का चटक भगवा रंग क्यों पड़ गया फीका

भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं को किया गया हासिए पर

लखनऊApr 08, 2019 / 09:35 pm

Anil Ankur

BJP

अनिल के. अंकुर
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा का चुनाव उबाल पर है, लेकिन भगवा का चटक रंग फीका है। अशोक सिंघल के निधन के बाद विश्व हिन्दू परिषद शांत है। बजरंगदल निष्क्रिय है और भाजपा ने हिन्दुत्ववादी रुख से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है। यही कारण है कि अयोध्या के संतों ने भाजपा की नीति और रीति की आलोचना करनी शुरू कर दी है।
साक्षी महराज अपने में फंस कर रह गए
अब देखिए उन्नाव से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे साक्षी महराज ही ऐसे नेता हैं जो कभी कभार अपने बयानों से भगवा रंग को चटक करने की कोशिश करते रहते हैं। पर उन्हें भाजपा नेताओं की संगत उनके इस राग में नहीं मिल पाती। ऐसा ही कुछ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी साथ है, जो भगवा राजनीति को चटकारने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की बड़ी जिम्मेदारी के चलते उनके बयान संतुलित भाषा में होते हैं।
कहां गए 90 के दशक के भगवा नेता
90 के दशक में भाजपा के पास भगवा नेताओं की श्रंखला थी। यह श्रंखला अभी भी है, पर हासिये पर। कल्याण सिंह, उमाभारमी, साध्वी ऋतम्भरा, विनय कटियार, स्वामी चिन्मयानन्द, स्वामी सुरेशानंद , रामविलास वेदान्ती, कौशलेंद्र गिरि अब भाजपा के भगवा कलर की वकालत करते नहीं दिखते। उनकी पहचान ‘भगवा राजनीतिÓ करने वालों की ही श्रेणी में हुआ करती थी, लेकिन समय काल और स्थान को देखते हुए मंदिर आंदोलन के ये सारथी इतिहास के पन्ने में समिटते जा रहे हैं।

आडवाणी का रथ, कल्याण का हट और उमा की बोली
याद दिला दें कि भाजपा को संजीवनी देने वाले लालकृष्ण आडवानी ने जब रथ यात्रा निकाली तो वे चर्चा में आ गए। बाबरी विध्वंस के समय कल्याण का हट देखने लायक था। राम मंदिर और हिन्दुत्व को लेकर विनय कटियार के फायरी भाषण लोग आज भी याद करते हैं। साध्वी उमा भारती की बेबाक वाणी पर भाजपा के वरिष्ठ नेता मंत्रमुग्ध हो कर रह गए थे। राम भक्त के रूप में उमाभारती और साध्वी ऋतम्भरा के भाषण के कैसटों की धूम मचने लगी थी।
कहां गए हिन्दुत्चव के फायर ब्रांड नेता
भाजपा के फायरब्रांड नेता विनय कटियार की भाषायी आग अब मंद पड़ गई है। मंदिर आंदोलन के कारण ही वह बजरंग दल से भाजपा में शामिल होकर फैजाबाद से तीन बार सांसद बने थे, पर अब वे हासिए पर हैं। भाजपा के मौजूदा तंत्र की इस धारा में हिन्दुत्व के ये फायर ब्रांड नेता कहां गए, इसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि अब अयोध्या के संत भी भाजपा की नीति और रीति पर सवाल उठाने लगे हैं। हालत यह हुई कि विश्व हिन्दू परिषद के तोगडिय़ा को अपना नया संगठन बनाना पड़ा और वे भाजपा के सामने ही अपने उम्मीदवार उतारने के लिए मजबूर हो गए।
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