हाथ में रुद्राक्ष, संगम में डुबकी, मंदिर यात्राएं और अब किसान और पिछड़ों की पंचायत। बीते कुछ हफ्तों से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में लगातार सुर्खियों में बनी हैं। राष्ट्रीय स्वंय संघ और भाजपा की नजर गंगा पर है तो कांग्रेस की नजर गंगा किनारे रहने वाली जातियां पर। यही वजह है प्रियंका गांधी केवट, निषाद, मछुआरों और बिंद जैसी अति पिछड़ी को लुभाने के लिए गंगा तीरे घूम रहीं हैं। केवट ने राम की नैया पार लगायी थी। प्रियंका को भी लगता है केवट, निषाद जैसी अति पिछड़ी जातियां ही उनकी अब खेवनहार हैं। इसलिए वे नाव चला रहीं हैं तो जाति और वर्ग, दोनों को संभालते हुए राजनीति को नयी दिशा दे रही हैं। प्रयागराज और पूर्वांचल उनकी सियासत के केंद्र में हैं।
पश्चिमी उप्र भाजपा के लिए थोक वोट का आधार रहा है। पिछले चुनावों में खाप पंचायतों के चौधरी और जाट मतदाताओं ने भाजपा को भरपूर सर्मथन दिया था। लेकिन, नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर यहां कि किसान अब भाजपा से मुंह फुलाए बैठे हैं। भाजपा किसानों को मनाने के लिए उनके खेत की मेड़ का चक्कर लगा रही है। इसी क्रम में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान शामली में खाप चौधरियों से मिलने पहुंचे। लेकिन, विरोध की वजह से उन्हें वापस लौटना पड़ा। ऐसे में पश्चिम की भरपाई के लिए भाजपा पूर्वी उप्र के राजभरों को अपने पाले में करने के लिए बहराइच में सुहेलदेव म्यूजियम, टूरिस्ट सर्किट और ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने जैसे एजेंडे पर काम कर रही है। पश्चिमी यूपी में 17 प्रतिशत जाट हैं जबकि पूर्वी यूपी के 18 प्रतिशत राजभर। इनका आर्शीवाद पार्टी को मिले इसलिए हर जतन किए जा रहे।
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अखिलेश की नजर बसपा में उपेक्षित दलित और पिछड़े नेताओं पर
सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने परंपरागत वोटों को सहेजने के साथ ही इन दिनों बसपा और कांग्रेस के उन नेताओं को अपने पाले में लाने में जुटे हैं। बसपा में दलितों और पिछड़ी जातियों के अपने-अपने क्षत्रप रहे हैं। लेकिन, पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग नीति की वजह से ब्राह्मण और अन्य सवर्ण जातियों को जब ज्यादा तवज्जो मिली तो इनकी पार्टी में पूंछ परख कम हो गयी। अखिलेश इन दिनों इसी तरह के नेताओं को अपने पाले में करने के अभियान में जुटे हैं। आरके चौधरी समेत अन्य नेता हाल ही में सपा में शामिल हुए हैं। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी सहित अन्य मुस्लिम नेताओं को पार्टी से जोड़कर मुस्लिम यादव समीकरण को और मजबूत करने की कवायद जारी है।
बसपा प्रमुख मायावती उप्र में अपने परंपरागत वोट बैंक को सहेजने में जुटी हैं। हाल के दिनों में पार्टी ने अपने सभी मंडल प्रभारियों को बदल दिया है। नए सिरे से क्षेत्रीय क्षत्रपों को जिम्मेदारी दी गयी है। पार्टी की कोशिश है दलित और अति पिछड़ी जातियां पार्टी से जुड़ी रहें। इसी को ध्यान में रखते हुए बसपा जातीय आधार पर अपने कोआर्डीनेटरों को जिम्मेदारियां सौंप रही है। कोरोना संक्रमण कम होने के बाद अब मायावती लगातार लखनऊ में जातिवार पार्टी पदाधिकारियों की बैठकें कर रही हैं और जातीय कील कांटे मजबूत करने के गुर सिखा रही हैं।