भाजपा के लिए 2019 में यूपी आसान नहीं होगा, जाने कैसे
यूपी की राजनैतिक पटल पर कांग्रेस अभी भी गंभीर चर्चा से बाहर ही है।

ritesh singh
लखनऊ। लोकसभा चुनाव को लेकर 2019 में राजग और विपक्ष की जंग का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश माना जा रहा है।2014 के लोकसभा चुनाव में यहां की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीट भाजपा और उसके सहयोगियों के पास थी।2019 आते-आते भाजपा को तीन लोकसभा क्षेत्रों से हाथ धोना पड़ा। गोरखपुर लोकसभा से यूपी में मुख्यमंत्री बने योगी और फूलपुर लोकसभा के सांसद से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश सरकार में आने के बाद अपनी सीटों से त्यागपत्र देना पड़ा।
उपचुनाव में भी भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा।
दोनों सीटों पर उपचुनाव हुआ तो विपक्ष की अधोषित गठबंधन और भाजपा कार्यकर्ताओं में नेतृत्व के अहंकारी रवैये से उपजा गुस्सा भाजपा के विजय रथ को न सिर्फ रोका बल्कि विपक्ष के लिए अपराजेय बनी भाजपा को हराने के हथियार ईजाद हो गया। फिर क्या शामली के सांसद हुकुम सिंह के निधन से रिक्त हुई सीट के उपचुनाव में भी भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा।
इस बीच कानपुर देहात की एक विधानसभा सीट के उपचुनाव को छोड़ दें तो भाजपा को अधिकतर विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर पराजय का मुंह देखना पड़ा। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने रणनीति के तहत गोरखपुर में निषाद पार्टी के प्रत्यासी को समर्थन दिया। फूलपुर में अपने पार्टी का प्रत्यासी दिया और शामली में राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्यासी को समर्थन देकर अपनी रणनीति का लोहा मनवाया।
राहुल "यूपी को ये जोड़ी पसंद है" के जाल में फंस गए।
मायावती का साथ पकड़ने के लिए अखिलेश यादव ने बड़े बेदर्दी से कांग्रेस को अलग कर दिया। अखिलेश ने 2017 के विधानसभा चुनाव में अपने प्रति उपजे गुस्से का साझीदार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल को बना लिया। 27 साल यूपी बेहाल का नारा दे कर 2017 के विधानसभा चुनाव का श्रीगणेश करने वाले राहुल "यूपी को ये जोड़ी पसंद है" के जाल में फंस गए।
कांग्रेस अभी भी गंभीर चर्चा से बाहर ही है
परिणामस्वरूप कांग्रेस को विधानसभा में अब तक के इतिहास में मात्र 7 सीटों पर सिमट जाना पड़ा। जब 2019 में अखिलेश ने मायावती से नजदीकी बधाई तो राहुल को बाहर का रास्ता दिखा दिया। जबकि राहुल ने तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भाजपा से छीन कर अपनी ताकत का लोहा मनवाया है। लेकिन यूपी की राजनैतिक पटल पर कांग्रेस अभी भी गंभीर चर्चा से बाहर ही है। फिलहाल अभी तक कांग्रेस को कोई यूपी में सीरियस नहीं ले रहा है। इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से अभी तक यूपी में भाजपा अपने सहयोगियों अपना दल(एस) और भारतीय समाज पार्टी को नाराज करके रखी है। जबकि 2014 में विखरा विपक्ष लगातार संगठित होता दिख रहा है।
2014 और 2017 जैसी अनुकूलता 2019 में यूपी में अभी तक नहीं दिख रही है
यूपी के राजनैतिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक जानकार दिवस दुबे ने यूपी के वर्तमान राजनैतिक स्थित पर टिप्पड़ी करते हुये कहते हैं कि भाजपा के लिए 2014 और 2017 जैसी अनुकूलता 2019 में यूपी में अभी तक नहीं दिख रही है। भाजपा को अपने हठी छवि से बाहर आकर मित्रों के सामने उदारवादी बनाना पड़ेगा। समय रहते भाजपा मित्र दलों से अपनी हेकड़ी छोड़ विनम्र नहीं हुआ तो यूपी से 73 की कौन कहे 37 लोकसभा सीट भी मिलना मुश्किल होगा
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