आयोग ने दो महीने 10 दिनों तक प्रदेश के जिलों में घूमकर ओबीसी की स्थिति का आकलन किया। उसने दो प्रमुख सिफारिशें की। पहला, सीटों के आरक्षण में त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू की जाए। मेयर की सीट प्रदेश स्तर, नगर पालिका परिषद अध्यक्ष की सीटें मंडल और नगर पंचायत अध्यक्ष की सीटें जिला स्तर पर आरक्षित की जाएं।
दूसरी, साल 2017 के निकाय चुनाव को प्रीवियस माना जाए। मतलब, उसे शून्य मानते हुए नए सिरे से सीटों का आरक्षण किया जाए। राज्य सरकार ने इसके आधार पर सामान्य नगरीय निकाय-2023 उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 और नगर निगम अधिनियम-1959 में इसका प्रावधान करने के लिए अध्यादेश लाते हुए कानून में संशोधन किया। इसीलिए पुरानी समाप्त करते हुए नई व्यवस्था लागू की गई, जिससे जनरल वर्ग की सीटें कम हो गईं।
त्रिस्तरीय व्यवस्था से सबसे अधिक फायदा महिलाओं और SC-ST वर्ग को हुआ है। दिसंबर-2022 की अपेक्षा महिलाओं की सीटें 255 थी, जो बढ़कर 288 हो गई। महिलाओं को कुल 33 सीटों का फायदा हुआ है। इसी तरह SC को 8 और ST को एक सीट का फायदा मिला है। अभी तक मात्र एक सीट ही एसटी के कोटे में जाती थी।
भाजपा निकाय चुनाव को मिशन-2024 के रिहर्सल के तौर पर ले रही है। प्रदेश में 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका और 544 नगर पंचायतों पर चुनाव होने हैं। फिलहाल 760 निकायों में चुनाव हो रहे हैं। यह निकाय प्रदेश के सभी 80 लोकसभा क्षेत्रों को कवर करते हैं।
पार्टी एक ओर जहां बूथ सशक्तिकरण अभियान में जुटी है तो दूसरी ओर युवा, महिला, किसान और विभिन्न वर्गों के लाभार्थियों को साधने की रूपरेखा भी तय की गई है। पहली बार प्रदेश के कुछ मुस्लिम बाहुल्य निकायों में पार्टी अल्पसंख्यक प्रत्याशी उतारने का भी प्रयोग भी करने जा रही है। गुरुवार को घोषित आरक्षण सूची में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़कर तकरीबन 38 फीसदी हो गई है। सीटों के हिसाब से देखें तो यह संख्या 288 है।
आंकड़ों से समझें फर्क