राममंदिर निर्माण की कोशिश में जुटी है भगवा ब्रिगेड हिंदुत्व का रंग चटख करने के लिए सबसे आसान राह है रामलला जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण। इस मकसद को हासिल करने के लिए भगवा टोली जी-तोड़ कोशिश में जुटी है। राजनीतिक गलियारों की चर्चाओं पर यकीन करें तो अंदरखाने सरकारी कोशिश भी जारी है कि राममंदिर निर्माण के लिए सभी पक्षकारों को अदालत के बाहर रजामंद कर लिया जाए। संभवत: इसी कोशिश का नतीजा है शिया वक्फ बोर्ड का सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा। गौरलतब है कि शिया वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद को शिया मस्जिद बताते हुए खुद को पक्षकार बनाने की अर्जी लगाई है। साथ ही सुझाव दिया है कि संपूर्ण विवादित क्षेत्र मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं को सौंप दिया जाए। मस्जिद बनाने के लिए आसपास कोई अन्य स्थान उपलब्ध कराया जाए। शिया कमेटी की इस पहल का नतीजा यह हुआ कि सुन्नी वक्फ बोर्ड भी बातचीत के लिए सशर्त तैयार हो गया।
मंदिर का रास्ता साफ हुआ तो भाजपा को रोकना मुश्किल राजनीति के जानकारों और सियासी समीकरणबाजों के मुताबिक, राममंदिर ऐसा मुद्दा है, जोकि हिंदुओं की आस्था के साथ-साथ अस्मिता का विषय भी बन चुका है। ऐसे में राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने वाले राजनीतिक दल के लिए हिंदू समाज में सहज सहानुभूति और लगाव पैदा होना स्वाभाविक है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक पाण्डेय के मुताबिक, भाजपा इसी सहानुभूति और लगाव को वर्ष 2019 के आम चुनाव में ट्रंप कार्ड के रूप में टटोल रही है। आम रजामंदी से मंदिर निर्माण होगा तो सहयोगी दलों के छिटकने का खतरा भी नहीं रहेगा।
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर भी सवाल उठाने शुरू किए राममंदिर निर्माण की कोशिश के बीच भाजपा की टोली ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य की भाजपा इकाई ने बीते दिनों कहाकि अब वक्त आ चुका है, जब राज्य के लोगों को विशेष दर्जे को बॉय-बॉय बोलना होगा। पार्टी के राज्य प्रवक्ता प्रोफेसर वीरेंद्र गुप्ता का कहना है कि विशेष दर्जे से जम्मू-कश्मीर को कोई खास लाभ नहीं हुआ है, बल्कि वह देश की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ चुका है। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के लिए संविधान की धारा 370 को समाप्त करना होगा, जोकि फिलहाल मुश्किल दिखता है। बावजूद पार्टी इस मुद्दे को उठाकर हिंदुत्व का ज्वर तेज करना चाहती है। इसी प्रकार भगवा टोली समान नागरिक आचार संहिता को लागू कराने की फिराक में है। अल्पसंख्यक समाज को तमाम योजनाओं और राजनीतिक वरीयता मिलने से हिंदू समाज में रोष रहता है। इसके अतिरिक्त दो बच्चों की सैद्धांतिक नीति पर भी अल्पसंख्यक समुदाय यकीन नहीं करता है, जबकि लाभ लेने में बराबर की हिस्सेदारी रहती है।
मदरसों का अनुदान बंद, जामिया मिलिया को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं! अल्पसंख्यकों की तमाम योजनाओं पर कैंची लगाकर भाजपा की राज्य एवं केंद्र सरकार ने हिंदू बिरादरी का खैरख्वाह होने का मंचन शुरू कर दिया है। इसी परिपेक्ष्य में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार और महाराष्ट्र में फडनवीस सरकार ने तमाम अल्पसंख्यक योजनाओं को खत्म कर दिया। यूपी में मुस्लिमों के लिए निकाह का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य कर दिया गया है। उधर, तीन तलाक पर कोर्ट के फैसले के इंतजार में बैठी केंद्र सरकार ने तीन तलाक को अवैध ठहराने के लिए कानून का मसौदा बना लिया है। इसके अतिरिक्त बीते सप्ताह केंद्र सरकार ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से इंकार कर दिया है।